बच्चा हो या बूढ़ा, महिला हो या पुरूष आजकल सभी कुत्तों का शिकार हो रहे हैं. गली-मोहल्ले और कलोनियों में कुत्तों का झुंड पहले अकेले पा कर घेर लेता है और फिर हमला कर जान ले रहा है. नोएडा-ग्रेटर नोएडा, अलीगढ़, सीतापुर, बिजनौर आदि जगहों पर कुछ इसी तरह के हमले हुए. अभी कुछ दिन पहले ऐसी ही एक घटना में कुत्तों ने बड़े कारोबारी की जान ले ली. हाल ही में पशुपालन मंत्रालय ने जानकारी दी है कि विश्व में रेबीज से होने वाली मौतों की 36 फीसदी मौत भारत में हो रही हैं.
हालांकि आक्रामक होती कुत्तों की संख्यान पर नियंत्रण पाने के लिए मंत्रालय की ओर से कुत्तों की नसबंदी कार्यक्रम चलाया जा रहा है. साल 2021 से नेशनल रेबीज कंट्रोल प्रोग्राम भी चलाया जा रहा है. एंटी रेबीज का टीका खरीदने के लिए केन्द्र सरकार की ओर से राज्यों के पशुपालन विभागों को बजट भी जारी किया जा रहा है.
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केन्द्रीय पशुपालन मंत्रालय की रिपोर्ट के मुताबिक साल 2022 में कुत्तों द्वारा इंसानों को काटने के 22 लाख केस सामने आए हैं. साल 2021 के मुकाबले कुत्तों द्वारा काटने के मामले में 2022 में बढ़ोतरी हुई है. 2021 में 17 लाख मामले सामने आए थे. जबकि 2022 में 21.80 लाख मामले दर्ज किए गए हैं. लेकिन साल 2018 से 2020 तक के आंकड़ों पर नजर डाले तो वो नंबर बहुत ज्यादा है. 2018 में 75 लाख, 2019 में 72 लाख और 2020 में 46 लाख केस दर्ज किए गए थे.
डॉ. अश्वनी कुमार शर्मा ने किसान तक को बताया कि खासतौर पर गर्मी के मौसम में कुत्ते बहुत आक्रामक हो जाते हैं. उसकी वजह ये है कि 40 से 45 डिग्री तापमान होने पर उनकी यह गर्मी और बढ़ जाती है. इंसानों की तरह से कुत्तों की गर्मी पसीने की तरह से नहीं निकलती है. मुंह के रास्ते ली जाने वाली सांस से वो अपने शरीर की गर्मी को मेंटेन करते हैं. जब गर्मी बहुत बढ़ जाती है तो ऐसा करने में उन्हें बहुत तकलीफ होती है. इसके चलते उनके अंदर चिढ़ चिढ़ापन आ जाता है.
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आसपास घने पेड़ न होने के चलते उन्हें छांव भी नहीं मिल पाती है. घर के आसपास ठंडी जगह में हम उन्हें बैठने नहीं देते हैं. कार के नीचे बैठें तो हम उन्हें मारने लगते हैं. ऐसे वक्त न तो उन्हें खाना ही मिल पाता है और ना ही पानी. ऐसा भी नहीं होता है कि कोई उनके बदन पर पानी डाल दे तो उन्हें कुछ राहत मिले. जागरुकता की कमी के चलते लोग गली के कुत्तों की परेशानी को समझ नहीं पाते हैं.
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