मछली देश के लोगों का एक प्रमुख व्यवसाय है. खास कर तटीय इलाकों में रहने वाले लोग मछ्ली पालन के जरिए ही अपनी आजीविका चला रहे हैं. केरल के तटों पर किसान मुख्य रूप से सार्डिन मछली को पकड़ते हैं. बाजार में इस मछली की कम या अधिक आवक मछली की कीमतों को प्रभावित करती है. तटीय इलाकों के मछुआरे अब फिर से इसकी मांग बढ़ने की उम्मीद कर रहे हैं. मछली व्यापारियों ने भी बाजार से आ रही इसकी मांग को पूरा करने के लिए तैयारी कर ली है.
मछली पकड़ने वाले लोगों से जुड़े सूत्रों ने बताया कि जिस जगह से सार्डिन मछली पकड़ कर लाई जाती है, वहां पर इस मछली की भारी कमी महसूस की जा रही है. इस समय सार्डिन मछली 300-350 रुपये प्रति किलोग्राम की दर से बिक रही है. अन्य समुद्री किस्म की मछलियों की बात करें तो सार्डिन के अलावा मैकरेल, एंचोविस जैसी मछलियां केरल के तटों में गहराई वाले क्षेत्रों में बहुतायत में पाई जाती हैं. खास कर इनकी संख्या तब बढ़ी है, जब इनके शिकार पर प्रतिबंध लगा दिया गया था. इस मछली को पकड़ने पर 52 दिनों के लिए प्रतिबंध लगाया गया था.
ये भी पढ़ेंः Dairy Business: सिर्फ एक लाख रुपये से शुरू कर सकते हैं डेयरी, जानिए कम बजट में तगड़ी कमाई का फॉर्मूला
केरल के तटीय इलाके में यह मछली नहीं मिल पाने के कारण खुदरा बाजार में इस मछली की आपूर्ति करने वालों को पड़ोसी राज्य तमिलनाडु और कर्नाटक पर निर्भर रहना पड़ रहा है. केरल मत्स्य समिति थोझेलाली एक्य वेदी से जुड़े चार्ल्स जॉर्ज के अनुसार, सार्डिन मछली की कमी का समाज पर गहरा प्रभाव पड़ता है क्योंकि केरल के अधिकांश मछली व्यापारी अपनी आजीविका के लिए इसी मछली पर निर्भर रहते हैं. उन्होंने कह कि इस साल की शुरुआत से ही केरल में अन्य मछलियों की तुलना में सार्डिन मछली की कमी महसूस की जा रही है.
ये भी पढ़ेंः Sugarcane Farming: यूपी में तीन वजहों से गन्ने की फसल पीली होकर सूख रही है, कृषि विभाग ने बचाव के उपाय सुझाए
ऑल केरल फिशिंग बोट ऑपरेटर एसोसिएशन के जोसेफ जेवियर कलापुरक्कल ने कहा कि सार्डिन मछली में कमी आने के कई कारण हैं. इनमें जलवायु परिवर्तन, अवैध तरीकों से मछलियों का शिकार करना और अधिक क्षमता वाले जाल के साथ फिशिंग बोट की संख्या में बढ़ोतरी प्रमुख कारण हैं. आईसीएआर-सीएमएफआरआई के निदेशक ग्रिंनसन जॉर्ज ने कहा कि पिछले लंबे समय से भारतीय सार्डिन मछली की उपलब्धता में लगातार कमी देखी जा रही है. इस मछली अधिक मात्रा में उपलब्ध होना पर्यावरण की स्थिति पर भी निर्भर करता है.
Copyright©2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today