देशभर में मीठी सुपारी का व्यापार बड़े पैमाने पर चलता है. कई बड़ी कंपनियां इस कारोबार में शामिल है. लेकिन, महाराष्ट्र में राज्य सरकार ने लंबे समय से फ्लेवर्ड सुपारी (मीठी सुपारी) जैसे उत्पादों पर प्रतिबंध लगा रखा है. अब इस प्रतिबंध को हटाने की मांग उठ रही है. दरअसल, सेंट्रल सुपारी एंड कोको मार्केटिंग एंड प्रोसेसिंग को-ऑपरेटिव लिमिटेड (कैंपको) के अध्यक्ष ए किशोर कुमार कोडगी ने महाराष्ट्र के सीएम देवेंद्र फडणवीस को पत्र लिखा है, जिसमें उन्होंने 2013 में महाराष्ट्र में सुगंधित सुपारी उत्पादों पर लगे बैन को हटाने की अपील की है. कोडगी ने पत्र में दावा किया है कि कैंपको की फ्लेवर्ड सुपारी उत्पादों में खाद्य सुरक्षा और मानकों का पूरी तरह से पालन किया जाता है. यह तंबाकू, गुटखा या पान मसाला जैसे हानिकारक उत्पादों से एकदम अलग है.
'टाइम्स ऑफ इंडिया' की रिपोर्ट के मुातबिक, कोडगी ने अपने पत्र में कहा कि हमारा उत्पाद सभी नियामक मानकों का पालन करता है और इसे कानूनी अनुमति प्राप्त है. यह पूरे भारत में बिकता है, लेकिन महाराष्ट्र में प्रतिबंध के कारण इसकी बिक्री नहीं हो पा रही है, जिसके कारण किसानों, व्यापारियों और छोटे व्यवसायों को नुकसान उठाना पड़ रहा है. कैंपको ने पत्र में कहा कि सुपारी का भारत में सांस्कृतिक और आर्थिक महत्व है. खासकर ग्रामीण समुदायों में लोग इसके व्यापार और खेती पर आश्रित हैं.
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कोडगी ने कहा कि महाराष्ट्र में 3,000 हेक्टेयर से ज्यादा क्षेत्र में सुपारी की खेती होती है. इस रकबे से सालाना लगभग 5,000 मीट्रिक टन सुपारी की पैदावार हासिल होती है. लेकिन फ्लेवर्ड सुपारी पर बैन के कारण इन किसानों की आजीविका पर बुरा असर पड़ता है. कोडगी ने कहा कि हमें सीएम की लीडरशिप पर पूरा भरोसा है.
कोडगी ने पान मसाला और फ्लेवर्ड सुपारी में अंतर को भी समझाया. उन्होंने कहा कि जीएसटी टैरिफ के तहत परिभाषा में 'पान मसाला' में चूना, कत्था या तंबाकू के साथ सुपारी शामिल है. वहीं, फ्लेवर्ड सुपारी में, सुपारी का पाउडर होता है. इसकी सुपारी के रूप में ही पहचान की गई है और इसमें चूना, कत्था या तंबाकू नहीं होता है. उन्होंने कहा कि पान मसाला में मैग्नीशियम कार्बोनेट और अन्य एजेंट का इस्तेमाल होता है, जबकि फ्लेवर्ड सुपारी में मैग्नीशियम कार्बोनेट या किसी भी प्रतिबंधित एजेंट का इस्तेमाल नहीं किया जाता है.
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