आमतौर पर धान की रोपाई के लिए उचित समय पर मजदूरों की पर्याप्त उपलब्धता एक बड़ी समस्या बन जाती है. जिस वजह से किसानों को फसल की बुवाई करने में काफी समय लगता है. साथ ही अधिक पैसे देकर मजदूरों को बुलाना पड़ता है. जिस वजह से किसानों को काफी नुकसान उठाना पड़ता है. जिस वजह से धान की खेती की लागत बढ़ जाती है. ऐसे में किसानों ने खेतों में छिटकवा विधि से धान की सीधी बुआई करने का फैसला लिया है. यह विधि अन्य विधि से जहा काफी आसान है. वहीं इसके कई नुकसान भी हैं. इस विधि में समय और पैसा दोनों की बचत होती है. लेकिन छिटकवा विधि की वजह से खेत में एक ही जगह पर धान जमा हो जाता है. जिसका असर पैदावार पर देखने को मिल सकता है.
किसान अधिकतर क्यारियों में छिटकवां विधि से बीज बोते हैं. इससे बीज समान रूप से नहीं गिरते और जमाव के कारण पौधे कहीं-कहीं घने हो जाने से तने पतले एवं लम्बे हो जाते हैं. कई पौधे बहुत दूर-दूर उगते हैं. तने की लम्बाई अधिक होने तथा पत्तियों का वजन अधिक होने के कारण पौधे जड़ से गिरने लगते हैं और जो पौधा बनता है वह पतला और लम्बा होता है. रोपण के बाद यह मुख्य खेत में ठीक से विकसित नहीं हो पाता है, जिस वजह से उत्पादन में असर दिखाई देता है. यदि छिड़काव विधि से पौध तैयार करनी है तो इस बात का ध्यान रखें. लगभग 1.0 सें.मी. की दूरी पर बुआई करें या पौधे जमाव के बाद 1.0 सें.मी. की दूरी पर पौधे छोड़कर अन्य को उखाड़ दें.
उर्वरकों का प्रयोग मिट्टी परीक्षण के आधार पर करें. यदि मिट्टी का परीक्षण नहीं किया गया हो तो उर्वरकों का उपयोग इन तरीकों से करें. जल्दी पकने वाली किस्मों के लिए नाइट्रोजन 80-90 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर, फास्फोरस 30-40 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर, पोटाश 30-40 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से दें. मध्यम अवधि में अधिक उपज देने वाली प्रजातियों के लिए नाइट्रोजन 100-120 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर, फास्फोरस 50-60 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर, पोटाश 50-60 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग किया जाता है. नाइट्रोजन का एक चौथाई भाग तथा फास्फोरस एवं पोटाश की पूरी मात्रा बुआई के समय, शेष नाइट्रोजन का दो-चौथाई भाग कल्ले निकलते समय तथा शेष एक-चौथाई भाग बालियाँ बनने की प्रारम्भिक अवस्था में प्रयोग करें.
Copyright©2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today