क्या है ERCP, क्यों इस चुनाव में किसानों की एक योजना वोट के मामले में भारी पड़ती दिख रही?

क्या है ERCP, क्यों इस चुनाव में किसानों की एक योजना वोट के मामले में भारी पड़ती दिख रही?

इसी साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनावों में ईआरसीपी एक बड़ा मुद्दा बनकर आ रहा है. क्योंकि इस योजना से प्रदेश की बड़ी आबादी प्रभावित है. इसीलिए यह पहली बार है कि किसानों का कोई प्रोजेक्ट चुनावों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने जा रहा है.

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क्या है ERCP, क्यों इस चुनाव में किसानों की एक योजना वोट के मामले में भारी पड़ती दिख रही?गहलोत ने फिर छेड़ा ERCP का मुद्दा, बोले- राष्ट्रीय परियोजना घोषित करे केन्द्र सरकार

जैसे-जैसे राजस्थान के विधानसभा चुनाव नजदीक आ रहे हैं. ईआरसीपी यानी पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना भी चुनावी मुद्दा बनता जा रहा है. एक बार फिर से मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने इस मुद्दे को हवा दी है. सीएम ईआरसीपी में 53 बांधों को शामिल करने पर धन्यवाद देने आए प्रतिनिधिमंडल से अपने घर पर मिले. गहलोत ने लोगों से मिलने पर कहा कि ईआरसीपी पूर्वी राजस्थान के अब 20 (पहले 13, क्योंकि नए जिले बनने के बाद संख्या बढ़ी है) जिलों के लिए महत्वपूर्ण योजना है. इससे इन जिलों की करीब तीन करोड़ की आबादी को पेयजल और खेतों के लिए सिंचाई का पानी मिलेगा. इसीलिए हम केन्द्र सरकार से बार-बार मांग कर रहे हैं कि इसे राष्ट्रीय परियोजना घोषित किया जाए.

गहलोत ने यह भी कहा कि अगर केन्द्र सरकार ऐसा नहीं करती तो राज्य सरकार अपने संसाधनों से इस परियोजना को पूरा करेगी. अब तक राज्य सरकार ने ईआरसीपी के लिए 14 हजार करोड़ रुपये स्वीकृत किए हैं. गहलोत ने कहा कि पूर्वी राजस्थान के लोगों को एकजुट होकर केन्द्र सरकार पर ईआरसीपी को राष्ट्रीय परियोजना का दर्जा देने का दबाव बनाना चाहिए.
बता दें कि हाल ही में राजस्थान सरकार ने ईआरसीपी में 53 बांधों को शामिल किया था. पहले यह संख्या 26 ही थी. इस तरह अब योजना के दायरे में कुल 79 बांध आ गए हैं. गहलोत मुख्यमंत्री निवास पर दौसा, करौली, सवाई माधोपुर, भरतपुर एवं अलवर जिलों के 53 बांधों को ईआरसीपी से जोड़ने पर धन्यवाद देने आए प्रतिनिधिमण्डल से भी मिले. 

विधानसभा चुनावों में बड़ा मुद्दा है ईआरसीपी

इसी साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनावों में ईआरसीपी एक बड़ा मुद्दा बनकर आ रहा है. क्योंकि इस योजना से प्रदेश की बड़ी आबादी प्रभावित है. इसीलिए यह पहली बार है कि किसानों का कोई प्रोजेक्ट चुनावों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने जा रहा है. इसके अलावा कांग्रेस पार्टी की तरफ से एक संदेश जनता में लगातार दिया गया है कि केन्द्र सरकार जानबूझकर इसे अटका रही है. वहीं, कांग्रेस की गहलोत सरकार योजना को लेकर लगातार मोदी और जलशक्ति मंत्री गजेन्द्रसिंह शेखावत पर हमलावर रहे हैं. साथ ही अपने स्तर पर भी करीब 14 हजार करोड़ रुपये परियोजना में दिए हैं. 

इसी की बानगी है कि पिछले दिनों गंगापुर सिटी आए गृहमंत्री अमित शाह की सभा में ईआरसीपी की मांग को लेकर झंडे-बैनर दिखाए गए. वहीं, इससे कुछ दिन पहले भी जलशक्ति मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत को करौली में युवा कांग्रेस के लोगों ने काले झंडे दिखाकर काफिला रोक लिया. 

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ये है पूर्वी राजस्थान में विधानसभा सीटों का गणित

पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना (ERCP) 20 जिलों में सिंचाई और पेयजल की योजना है. ये जिले भरतपुर, डीग, अलवर, धौलपुर, करौली, सवाई माधोपुर, दौसा, जयपुर, टोंक, बारां, बूंदी, कोटा, अजमेर और झालावाड़ हैं. इन जिलों में राजस्थान की कुल 200 में से आधी से कुछ कम यानी 83 विधानसभा सीटें आती हैं जिनकी करीब तीन करोड़ आबादी है. 

ये राजस्थान की कुल आबादी का 41.13 प्रतिशत है. ये जिले प्रदेश के हाड़ौती, मेवात, ढूंढाड़, मेरवाड़ा और ब्रज क्षेत्र में आते हैं.  2018 के विधानसभा चुनावों में 13 जिलों की 83 विधानसभा सीटों में से 61 फीसदी यानी 51 सीटें कांग्रेस ने जीती थीं. साथ ही कुछ और सीट पर उसके समर्थित निर्दलीय, बहुजन समाज पार्टी (BSP) और अन्य पार्टियों का कब्जा है. 

वहीं, इन 13 जिलों में से सात जिलों में कांग्रेस बहुत अच्छी स्थिति में है. अलवर, भरतपुर, धौलपुर, करौली, टोंक, सवाई माधोपुर, दौसा जिले में 39 विधानसभा सीट हैं. 2018 के विधानसभा चुनावों में पार्टी ने 25 सीट इन जिलों में जीती थी. बाकी पांच बीएसपी, चार निर्दलीय और एक आरएलडी के खाते में गई. 

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सरकार बनने के बाद बीएसपी का कांग्रेस में विलय हो गया. निर्दलीय और आरएलडी विधायकों का समर्थन भी कांग्रेस को मिला. इस तरह 39 में से 35 सीटों पर कांग्रेस का कब्जा हो गया. इसीलिए इन जिलों में कांग्रेस काफी मजबूत स्थिति में है. इसी साल विधानसभा चुनावों को देखते हुए कांग्रेस चाहेगी कि यह स्थिति इसी तरह मजबूत बनी रहे. 

ईआरसीपी पर गहलोत सरकार गंभीर नहींः बीजेपी 

वहीं, इन तमाम आरोपों के जवाब में बीजेपी का कहना है कि गहलोत सरकार ईआरसीपी को लेकर गंभीर नहीं है. वह सिर्फ इस मुद्दे को राजनीतिक बना रही है. करौली में शेखावत के विरोध के बाद उन्होंने सवाई माधोपुर में गहलोत को ईआरसीपी पर खुली बहस की चुनौती भी डे डाली थी.

वहीं, बीजेपी के तमाम नेता कई मौकों पर यह कहते आए हैं कि इस योजना में कई तकनीक पेच हैं. इन्हीं पेचों को गहलोत सरकार सुलझाना नहीं चाहती.

 

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