खाद्य तेलों के मामले में भारत का बिगड़ा हुआ गणित और सरसों समेत अन्य तिलहनी फसलों की खेती करने वाले किसानों की परेशानियां किसी से छिपी नहीं है. असल में भारत खाद्य तेलों की अपनी घरेलू जरूरतों को पूरा करने के लिए कुल खपत का 60 फीसदी खाद्य तेल इंपोर्ट करता है, जिसके तहत सबसे अधिक पॉम आयल इंपोर्ट किया जाता है, जिसके बाद सूरजमुखी और सोयाबीन जैसे दूसरे खाद्य तेल हैं, लेकिन पाॅम आयल के इंपोर्ट की इस नीति से देश के सरसों किसानों की परेशानियां बढ़ जाती हैं.
मसलन, सरसों के भाव न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) से नीचे रहते हैं. कुछ ये ही हाल अन्य तिलहनी फसलों के भी रहते हैं. सरसों समेत अन्य तिलहनी फसलों के किसानों की परेशानियों को कम करने के लिए कृषि व मूल्य लागत आयाेग (CACP) का क्या मानना है! ये जरूरी है. CACP देश में फसलों पर MSP की सिफारिश करने वाला आयोग है. चलिए आइए जानते हैं कि खाद्य तेलों की मौजूदा इंपोर्ट नीति क्या है, इससे कैसे किसानों की मुश्किलें बढ़ जाती हैं और किसानों की इन मुश्किलों को कम करने के लिए CACP क्या सिफारिशें करता है.
देश में खाद्य तेलों की कमी है. जाहिर तौर पर इन हालातों में भारत में पैदा होने वाली सरसों, सोयाबीन जैसी तिलहनी फसलों को दाम अधिक मिलना चाहिए, लेकिन इसके उलट देश की प्रमुख तिलहनी फसल सरसों के दाम MSP से नीचे रहते हैं.
केंद्र सरकार ने 2023-24 के लिए सरसों की MSP 5450 रुपये क्विंटल तय किए हैं, लेकिन इस पूरे साल सरसों के दाम पिटे रहे और किसानों को सरसों MSP से नीचे बेचना पड़ा. आखिर ऐसा क्या है. इसके पीछे मुख्य कारण देश की पॉम आयल इंपोर्ट नीति है.
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असल में केंद्र सरकार खाद्य तेलों के दामों में नियंत्रण के लिए बड़े स्तर पर पॉम आयल इंपोर्ट करती है, एक आंकड़े के अनुसार कुल इंपोर्ट में पॉम आयल की हिस्सेदारी 70 फीसदी अधिक है, लेकिन परेशानी सिर्फ पॉम आयल इंपोर्ट की नहीं है. असली समस्या ड्यूटी फ्री पॉम आयल इंपोर्ट की है.
केंद्र सरकार की तरफ से संंसद में दी गई जानकारी के अनुसार क्रूड पॉम आयल, सोयाबीन और सूरजमुखी इंपोर्ट में कोई शुल्क नहीं लगता है. पहले 2.5 फीसदी इंपोर्ट ड्यूटी लगती थी, लेकिन उसे बीते साल हटा दिया गया है. इसी तरह 21 दिसंबर 2021 को रिफाइंड पाॅम आयल से इंपोर्ट् ड्यूटी 17.5 फीसदी से घटाकर 12.5 फीसदी कर दी गई थी, जिसकी समयावधि बीते दिनों 31 मार्च 2025 तक कर दी गई है. वहीं इसी साल 15 जनवरी को खाद्य तेल इंपोर्ट से एग्री सेस 20 फीसदी से घटाकर 5 फीसदी कर दिया गया है.
खाद्य तेलों के इंपोर्ट की इस उदार नीति से किसानों को नुकसान उठाना पड़ता है. मसलन, बाजार में सरसों जैसी तिलहनी फसलों का दाम अस्थिर रहता है, नतीजतन सरसों MSP से नीचे बिकती है और सरसों किसानों को कम दाम में फसल बेचने के लिए मजबूर होना पड़ता है.
पाॅम ऑयल की इस इंपोर्ट नीति से सरसों समेत अन्य तिलहनी फसलों के किसानों को होने वाली परेशानियों से CACP अवगत नजर आता है. CACP ने रबी मार्केटिंग सीजन 2024-2025 की फसलाें के MSP को लेकर जो सिफारिशों की रिपोर्ट दी है, उसमें CACP ने स्वीकारा है कि तिलहीन फसलों के उत्पादन से अधिक घरेलू मांग बढ़ने से इंपोर्ट की मजबूरियां बढ़ी है, जिसे ध्यान में रखते हुए CACP ने तिलहनी फसलों का उत्पादन बढ़ाने को कहा है.
साथ ही CACP ने खाद्य तेलों के इंपोर्ट से सरसों समेत अन्य घरेलू तिलहनी फसलों पर पड़ रहे असर पर भी बात की है, इस असर से सरसों समेत अन्य घरेलू तिलहनी फसलाें को सुरक्षित रखने के लिए CACP ने खाद्य तेलों की ग्लोबली कीमतें, मांग- आपूर्ति, खाद्य तेलाें की घरेलू कीमतें और MSP से जुड़ा हुआ एक डायनेमिक टैरिफ स्ट्रक्चर बनाने की सिफारिश की है.
इस स्ट्रक्चर को लेकर CACP ने खुल कर नहीं कहा है, लेकिन माना जाता है कि इस तरह के स्ट्रक्चर के अस्तित्व में आने से खाद्य तेलों में जारी खेल पर लगाम लगाई जा सकती है. क्याेंकि मौजूदा समय में जारी खाद्य तेलों के इस खेल में आम उपभोक्ता को महंगा खाद्य मिलता है तो किसानाें को उनकी उपज का दाम कम मिलता है.
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