पराली जलाने से होने वाले पर्यावरणीय नुकसान को ध्यान में रखते हुए केंद्र और राज्य सरकारों की सख्ती और प्रोत्साहन नीति का असर अब स्पष्ट रूप से दिखने लगा है. इसके लिए सरकार ने निगरानी तंत्र को भी मजबूत किया है.इसके चलते सकारात्मक प्रभाव भी सामने आ रहा है. सरकार की तरफ से उपग्रह और ड्रोन के माध्यम से इन घटनाओं की सख्ती से निगरानी की जा रही है.अंतरिक्ष से कृषि पारिस्थितिकी तंत्र की निगरानी प्रणाली, जिसे IARI पूसा के कृषि भौतिकी विभाग द्वारा संचालित किया जाता है, देश में सैटेलाइट रिमोट सेंसिंग के माध्यम से पराली जलाने की घटनाओं पर नज़र रखती है. इनके आंकड़ों के अनुसार, 15 सितंबर से 3 अक्टूबर 2024 तक छह राज्यों में कुल 333 पराली जलाने की घटनाएं दर्ज की गईं, जबकि पिछले साल इसी अवधि में 800 घटनाएं हुई थीं. इस प्रकार, इस साल पराली जलाने की घटनाओं में 59 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई है.
पंजाब और उत्तर प्रदेश में सख्ती और प्रोत्साहन की नीति का असर साफ़ तौर पर दिख रहा है. इस साल पंजाब में 179 पराली जलाने की घटनाएं दर्ज की गईं, जबकि पिछले साल यह आंकड़ा 561 था. हरियाणा में इस साल 110 घटनाएं दर्ज की गईं, जबकि पिछले साल 137 घटनाएं हुई थीं. उत्तर प्रदेश में इस साल 22 घटनाएं दर्ज की गईं, जबकि पिछले साल 56 घटनाएं सामने आई थीं. दिल्ली में इस साल अब तक कोई घटना नहीं हुई, जबकि पिछले साल 1 घटना दर्ज की गई थी. राजस्थान में इस साल 9 घटनाएं दर्ज की गईं, जबकि पिछले साल यह संख्या 23 थी. मध्य प्रदेश में इस साल 13 घटनाएं हुईं, जबकि पिछले साल इसी अवधि में 35 घटनाएं दर्ज की गई थीं. पंजाब में पराली जलाने की घटनाओं में पिछले साल की तुलना में 68 प्रतिशत की कमी आई है. उत्तर प्रदेश और राजस्थान में भी पराली जलाने की घटनाओं में 60 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई है, जबकि मध्य प्रदेश में यह कमी 73 प्रतिशत रही. इसी तरह हरियाणा में 20 प्रतिशतकी गिरावट दर्ज की गई है.
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पिछले चार सालों में पराली जलाने की घटनाओं में 88 प्रतिशत तक की कमी देखी गई है, जो केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा लागू की गई नीतियों की सफलता को दर्शाता है. अगर पिछले चार साल के 15 सितंबर से 3 अक्टूबर तक के आंकड़ों पर नजर डालें, तो पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और राजस्थान में पराली जलाने की घटनाओं में लगभग 80 प्रतिशत की कमी आई है. 2020 में इस अवधि में 1716 घटनाएं दर्ज की गई थीं, जबकि 2024 में यह संख्या घटकर 333 रह गई है, जो कि 88 प्रतिशत की कमी आई है.
साल 2020 में पंजाब में 1441 घटनाएं दर्ज की गई थीं, जो इस साल 68 प्रतिशत की कमी के साथ घटकर 179 रह गई हैं. उत्तर प्रदेश में भी पराली जलाने की घटनाओं में 68 प्रतिशतकी कमी आई है, जहां 2020 में 67 घटनाएं दर्ज की गई थीं, जबकि 2024 में यह संख्या 22 रह गई है. हरियाणा में मामूली 17 प्रतिशतकी कमी देखी गई है. 2020 में यहां 131 घटनाएं हुई थीं, जबकि इस साल 110 घटनाएं दर्ज की गई हैं. केंद्र और राज्य सरकारों ने पराली जलाने की घटनाओं को कम करने के लिए एक व्यापक और प्रभावी नीति अपनाई है, जिसमें कई योजनाओं और कार्यक्रमों को शामिल किया गया है. सरकार की नीति मुख्य रूप से तीन प्रमुख पहलुओं पर आधारित है: सख्त निगरानी, आर्थिक सहायता, और जागरूकता कार्यक्रम का असर साफ दिख रहा है.
पराली जलाने को रोकने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों की सख्त नीतियों और प्रोत्साहन योजनाओं ने अहम भूमिका निभाई है. किसानों को पराली प्रबंधन के लिए आवश्यक मशीनों, जैसे स्ट्रॉ मैनेजमेंट सिस्टम (SMS), सुपर सीडर, हैप्पी सीडर, रोटावेटर, बायो-चार यूनिट, और मल्चर का बड़े पैमाने पर वितरण किया गया. इन मशीनों की मदद से किसान फसल अवशेषों को पुनः खेत में उपयोग कर सकते हैं, जिससे न केवल पराली जलाने की आवश्यकता खत्म होती है, बल्कि मिट्टी की उर्वरकता भी बढ़ती है. उत्तर प्रदेश सरकार ने किसानों को इन मशीनों की खरीद पर 50 प्रतिशत से 80 प्रतिशत तक की सब्सिडी प्रदान की, ताकि वे आसानी से इनका उपयोग कर सकें. उत्तर प्रदेश सहित कई राज्यों में यह पहल किसानों के लिए काफी फायदेमंद साबित हुई है. इसके साथ ही, सरकार ने पराली जलाने के खतरों और वैकल्पिक उपायों के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन किया. कृषि विज्ञान केंद्रों (KVKs) के माध्यम से किसानों को प्रशिक्षित किया गया है.
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सरकार ने अपने कृषि विशेषज्ञों के जरिये किसानों को बताया कि पराली को खेत में छोड़ने से मिट्टी की जैविक गुणवत्ता बढ़ती है, जिससे उर्वरक की लागत में भी कमी आती है. इसके अतिरिक्त, पंजाब, उत्तर प्रदेश और हरियाणा सरकारों ने पराली जलाने पर कठोर प्रतिबंध लगाए और नियमों का उल्लंघन करने पर जुर्माने का प्रावधान भी रखा. निगरानी तंत्र को सशक्त करते हुए, सरकार ने उपग्रह और ड्रोन की मदद से पराली जलाने की घटनाओं पर नज़र रखी. सख्ती के साथ-साथ, किसानों को पराली जलाने से बचने के लिए प्रोत्साहन योजनाएं भी लागू की गईं, जो किसान पराली का सही तरीके से उपयोग कर रहे हैं, उन्हें पुरस्कार और आर्थिक सहायता दी गई. इसका नतीजा यह हुआ कि पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में पराली जलाने की घटनाओं में भारी कमी आई है. इस नीति के चलते किसानों ने पराली का उपयोग खाद, पशु चारे और ऊर्जा उत्पादन के लिए भी शुरू कर दिया, जिससे पराली जलाने की घटनाएं और कम हो गईं. यह पहल न केवल पर्यावरण संरक्षण में सहायक साबित हुई, बल्कि किसानों की आय और कृषि उत्पादन में भी सकारात्मक बदलाव लेकर आई है.
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