दालों की फॉरवर्ड ट्रेडिंग के चलते यह सेक्टर मुसीबत में है. ग्लोबल ग्रेन्स एंड पल्सेस काउंसिल की ओर से एक्यूरो एआई के साथ मिलकर आयोजित किए दालों पर वर्चुअल एग्रीकल्चर राउंडटेबल डिस्कशन में व्यापारियों ने अपनी पीड़ा बताई. दालों की फॉरवर्ड ट्रेडिंग से मतलब है कि आज किसी दाल का भाव तय कर काॅन्ट्रैक्ट किया जाता है, लेकिन इसकी पेमेंट बाद में होती है. यह फॉरवर्ड कॉन्ट्रैक्ट भी कहलाता है. राउंडटेबल में व्यापारियों और विशेषज्ञों ने कहा कि बाजार संतुलन और बुनियादी बातों को बिना ध्यान में रखकर सौदे किए जा रहे हैं. फॉरवर्ड ट्रेडिंग ने इसमें सबसे ज्यादा परेशानी बढ़ा रखी है.
'बिजनेसलाइन' की रिपोर्ट के मुताबिक, चर्चा के दौरान मुंबई बेस्ड सनराज ग्रुप के पार्टनर हितेन कटारिया ने कहा कि फॉरवर्ड ट्रेड से व्यापारियों को भारी नुकसान हो रहा है, लेकिन वे अभी भी बाजार में व्यापार करना चाहते हैं. मैं इस प्रकार के कदमों को बढ़ावा देने के लिए किसी कैसीनो में नहीं हूं.
राउंडटेबल की अध्यक्षता करने वाले कृषि अर्थशास्त्री दीपक पारीक ने कहा कि व्यापारियों को आत्मनिरीक्षण करने की जरूरत है, जबकि हमने 2024 जैसा साल पहले कभी नहीं देखा. 2024 में पहली बार बहुत सारे डिफॉल्ट हुए और व्यापारियों को नुकसान उठाना पड़ा. उन्होंने चर्चा में पूछा कि बिना बुवाई के आंकड़ों के अफ्रीकी फसलों को फॉरवर्ड में पेश किया जाता है. क्या इसका कोई तर्क है?
फॉरवर्ड ट्रेडिंग फ्यूचर्स या डेरिवेटिव्स से एकदम अलग है. इसमें किसी कमोडिटी (यहां कोई भी दाल) को भविष्य में बताए गए समय पर डिलीवर करने के लिए कॉन्ट्रैक्ट किया जाता है. अगर साधारण भाषा में कहें तो सितंबर से नवंबर के दौरान लगाई जाने वाली फसलों के लिए फरवरी-मार्च में ही फॉरवर्ड कॉन्ट्रैक्ट साइन किए जाते हैं.
रिपोर्ट के मुताबिक, सिंगापुर स्थित वैलेंसी इंटरनेशनल प्राइवेट लिमिटेड के प्रॉफिट सेंटर हेड हिमांशु पांडे ने अफ्रीकी फॉरवर्ड ट्रेड ऑफर पर बात करते हुए कहा कि फॉरवर्ड ट्रेडिंग से चीजें गड़बड़ा गई हैं. इसमें बुनियादी बातों को बिल्कुल अनदेखा किया जा रहा है. उन्होंने उदहारण देते हुए बताया कि अगस्त में दिवाली के बाद डिलीवर किए जाने वाले चने की फसल 920 डॉलर प्रति टन के भाव से बेची गई, लेकिन बाद में कीमतें गिर गईं, जिससे व्यापारी असमंजस में पड़ गए.
वहीं, म्यांमार के अरवी इंटरनेशनल के सीईओ श्याम नारसरिया ने कहा कि म्यांमार के लिए अरहर (तुअर) के व्यापार को लेकर सबसे बढ़िया बात यही रही है कि यहां किसी प्रकार की फॉरवर्ड ट्रेडिंग नहीं हुई. फॉरवर्ड ट्रेडिंग में बुनियादी बातों के मायने खो जाते हैं.
पिछले साल 1,300 डॉलर प्रति टन की बढ़िया कीमतों के चलते म्यांमार में किसान ने अरहर की बुवाई में और दिलचस्पी ली है. आईग्रेन इंडिया के निदेशक राहुल चौहान ने कहा कि म्यांमार और ब्राजील से पर्याप्त सप्लाई के चलते 2021 से दालों के आयात में बढ़ोतरी हुई है. यही वजह है कि भारत के किसान उड़द की बजाय अब मक्का की खेती की ओर रुख कर रहे हैं.
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