मौजूदा समय में खानपान की दुनिया थोड़ी बदल सी गई है. दुनियाभर के लोगों के खानपान के तरीके में एक नया टर्म काफी मशहूर हो रहा है, वो है प्लांट बेस्ड मीट. यानी पौधे से मिलने वाला मांस. ये एक शाकाहारी फूड है जो दिखने में बिल्कुल मांस जैसा होता है. ये फूड आजकल उन लोगों के बीच तेजी से प्रचलित हो रहा है जो डायबिटीज, हाई बीपी और मोटापे से परेशान हैं. प्लांट बेस्ड मीट पूरी तरह से शाकाहारी है, इसमें आर्टिफिशियल कलर्स और एडेड प्रिजर्वेटिव डाले जाते हैं, जिससे ये मांस जैसा होता है. यह प्लांट बेस्ड मीट सब्जी और अनाजों से बनाया जाता है.
इसकी खुशबू, रंग और बनावट मांस जैसी होती है. कई लोग हेल्थ रीजन से मांसाहार छोड़कर इसे खाना पसंद कर रहे हैं. लेकिन अब आप सोच रहे होंगे कि ये किन पौधों से बनाया जाता है तो आपको बता दें कि प्लांट बेस्ड मीट को पौधों से मिलने वाले फूड जैसे फलियां, दाल, किनोवा, नारियल का तेल, गेहूं के ग्लूटेन, सोयाबीन, मटर, चुकंदर के रस के अर्क से तैयार किया जाता है. साथ ही इसमें पशुओं के दूध के बजाय ओट्स और बादाम के दूध का भी इस्तेमाल होता है.
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किसी भी जानवर या पक्षी के मांस में कैलोरी, सैचुरेटेड और कोलेस्ट्रॉल काफी अधिक मात्रा में होता है, जबकि प्लांट बेस्ड मीट में ये चीजें न के बराबर होती हैं. प्लांट बेस्ड मीट फाइबर और हेल्दी प्रोटीन से भरपूर होता है. मांसाहार की जगह प्लांट बेस्ड मीट को खाने से हाई बीपी, मोटापा, कैंसर और लॉन्ग टर्म क्रॉनिक डिजीज की संभावना कम हो जाती है. ये फूड हार्ड डिजीज और डायबिटीज का खतरा भी कम करता है. वहीं, प्लांट बेस्ड मीट पूरी तरह से इको फ्रेंडली है, यानी पर्यावरण के लिहाज़ से भी ये फ़ायदेमंद है.
ओमेगा 3 फैटी एसिड, प्रोटीन और अन्य तत्व जो जानवरों के मांस में प्रचुर मात्रा में होते हैं, वे पौधे आधारित आहार में नहीं मिलते हैं. ऐसे में कई बार इस शाकाहारी मीट को असल मीट का रूप-रंग देने के लिए केमिकल वाले रंगों का भी इस्तेमाल हो सकता है. इसलिए इसे खरीदने से पहले इसका ध्यान रखें. साथ ही इसे अधिक खाने से बचें. हेल्थ एक्सपर्ट के मुताबिक, प्लांट बेस्ड मीट को दिन में 60 ग्राम से ज़्यादा बिल्कुल नहीं खाना चाहिए.
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