
नीम के पेड़ को हर बीमारी को ठीक करने की दवा और तेज धूप में सुकून देने वाले के तौर पर जाना जाता है. कोई भी तकलीफ हो बस नीम का पाउडर या पत्तियों के प्रयोग की सलाह दी जाती है. जो पेड़ अपनी एंटीसेप्टिक खूबियों के लिए लंबे समय से जाना जाता रहा है, अब खुद मुसीबत में आ गया है. एक रिपोर्ट के अनुसार तेलंगाना में 60 प्रतिशत से ज्यादा नीम के पेड़ फोमोप्सिस अजादिराचटे (Phomopsis Azadirachtae) नाम के खतरनाक फंगस से इन्फेक्टेड हो गए हैं.
इस बीमारी को आम तौर पर 'डाईबैक बीमारी' भी कहा जाता है. इस इन्फेक्शन का नाम 'डाईबैक' इसलिए पड़ा है क्योंकि यह टहनियों के सिरों से शुरू होता है और तने की तरफ नीचे फैलता है, जिससे पत्तियों से क्लोरोफिल खत्म हो जाता है. यूं तो नीम के पेड़ काफी दूरी पर लगाए जाते हैं लेकिन यह बीमारी इतनी तेजी से फैल रही है कि अब पेड़ों पर संकट हो गया है. पक्षी इसके सबसे बड़े कैरियर होते हैं और वो इसके स्पोर्स को फैलाते हैं. यह फंगस इंसानों या दूसरे पौधों को नुकसान नहीं पहुंचाता लेकिन छोटे नीम के पौधे इसके शिकार हो सकते हैं.
नीम में एंटीबैक्टीरियल, एंटीफंगल और दूसरी कई तरह की प्रॉपर्टी होती हैं. इसके बावजूद नीम के पेड़ कीड़ों और बीमारियों से बच नहीं पाते हैं.साल 2022 में भी इस बीमारी को देखा गया था. इससे पहले 2021 में भी राज्य के वारंगल, हैदराबाद, रंगारेड्डी, मेडचल, महबूबनगर, गडवाल और दूसरे जिलों में हजारों पेड़ इसी बीमारी का शिकार हो गए थे. एक बार जब फंगस पेड़ को संक्रमित कर देता है, तो नीम का पेड़ सूखने लगता है और उसकी पैदावार पर असर पड़ता है.
विडंबना यह है कि नीम, जो अपनी टहनियों, पत्तियों, फूलों, छाल, बीजों और फलों के जरिए दूसरे पेड़ों, जानवरों और इंसानों को अच्छी सेहत देने का पर्याय बन गया है, वह एक दुर्लभ कीट के कारण मर रहा है. इस कीट की पहचान करीब तीन दशक पहले हुई थी. नीम एक प्राकृतिक कीटनाशक है और अब यह उस कीट का शिकार हो गया है जो सिर्फ़ नीम के पेड़ों पर हमला करता है.
डेक्कन क्रोनिकल की रिपोर्ट के अनुसार पिछले कुछ सालों में हजारों नीम के पेड़ सूख चुके हैं. इन पेड़ों को तेलंगाना में स्वास्थ्य और विरासत के प्रतीक माना जाता है. अब मुलुगु में स्थित फॉरेस्ट कॉलेज एंड रिसर्च इंस्टीट्यूट (FCRI) इसके बचाव में आगे आया है. इंस्टीट्यूट की तरफ से इस विनाशकारी 'डाईबैक बीमारी' बड़े स्तर पर वैज्ञानिक जांच शुरू की गई है.
इंस्टीट्यूट के डीन वी. कृष्णा, जिन्होंने पहले GHMC के ग्रीन सिटी प्रयासों का नेतृत्व किया था, ने कहा कि नीम के पेड़ पर्यावरण और संस्कृति के लिए अनमोल हैं. वहीं विशेषज्ञ डॉक्टर जगदीश एक लॉन्ग-टर्म स्टडी को गाइड कर रहे हैं जो मैप्स का इस्तेमाल करके सूख रहे पेड़ों को ट्रैक करती है, उस फंगस पर स्टडी करती है जो इसका कारण बन रहा है. साथ ही यह जांच करेगी कि प्रदूषण और कठोर मिट्टी कैसे स्थिति को कैसे और खराब कर रहे हैं. इसके बाद वह सॉल्यूशंस को टेस्ट करेंगे.
इंस्टीट्यूट की तरफ से मजबूत किस्मों को उगाने और हरियाली बढ़ाने के लिए वन, कृषि, NGO और नागरिकों से सहयोग मांगा गया है. डीन कृष्णा ने कहा, 'हम चिंता को कार्रवाई में बदल रहे हैं.' उन्होंने इंस्टीट्यूट के इस प्रयास को भारत में नीम संरक्षण के लिए एक ब्लूप्रिंट बताया है.
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