PM Modi US Visit: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इन दिनों अमेरिका दौरे पर हैं. इस दौरान बीते दिनों पीएम मोदी ने अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन से मुलाकात की थी. बुधवार रात को हुई इस मुलाकात और इसके एजेंडे के इतर पीएम मोदी के तोहफों ने देशभर में सुर्खियां बटोरी है. असल में पीएम मोदी ने 1000 पूर्णिमा के चंद्रमा देख चुके (80 साल 8 महीने पूर्ण कर चुके ) अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन को भारतीय परंपराओं के अनुरूप 10 वस्तुओं का दान दिया, जिसमें पीएम मोदी ने गौदान से लेकर भूदान, तिलदान तक किया. अपनी इस पहल से पीएम मोदी ने जहां भारतीय पंरपराओं को वैश्विक स्तर पर नई ऊंचाईयां दी तो वहीं इस दानपेटी में शामिल अन्न दान (धान्य दान) के जरिए उन्होंने पाकिस्तान को इंटरनेशन मोर्चे पर मात दी है.
असल में पीएम मोदी ने अमेरिका राष्ट्रपति जो बाइडेन को अन्न दान में उत्तराखंड में उगने वाले लंबे दाने वाले चावल तोहफे में दिए. बेशक, ये बात बेहद ही सामान्य सी लगती है, लेकिन किसान तक ने अपनी पड़ताल के बाद इस निष्कर्ष पर पहुंचा है कि पीएम मोदी ने अन्न दान के लिए उत्तराखंड के लंबे दाने वाले चावलों का चयन कर इंटरनेशन डिप्लोमेसी में भारत का कद बढ़ाते हुए पाकिस्तान को मात देने की कोशिश की है.
अमेरिकी राष्ट्रपति को अन्न दान के सहारे पाकिस्तान को मात देने की कूटनीतिक चाल को समझने से पहले जरूरी है कि उत्तराखंड के लंबे दाने वाले चावल (पीएम मोदी का बाइडेन को अन्न दान) की पहचान की जाए. इसकी पहचान के लिए किसान तक ने उत्तराखंड सरकार से संपर्क करने की कोशिश की, लेकिन उत्तराखंड सरकार पूरी तरह से अनभिज्ञ है कि ये कौन सा चावल है. हालांकि उत्तराखंड के कृषि मंत्री गणेश जोशी का मानना है कि अन्न दान में दिया गया चावल बासमती है.
वहीं इस मामले को लेकर किसान तक ने देश के प्रमुख कृषि वैज्ञानिक डॉ एमएस स्वामीनाथन के शिष्यों में से एक पद्मश्री डॉ वीपी सिंह से जानकारी जुटानी चाही. उत्तराखंड स्थित रूड़की के मूल निवासी डॉ वीपी सिंंह IARI में अपनी सेवाएं पूरी कर रिटायर्ड हो चुके हैं. उन्हें गुणवत्तापूर्ण और अधिक पैदावार वाली बासमती किस्मों का जनक कहा जाता है. उनके इन सेवाओं के चलते भारत सरकार उन्हें देश के सर्वोच्च सम्मानों में शुमार पद्मश्री से सम्मानित कर चुकी है. पद्मश्री डॉ वीपी सिंह अन्न दान में दिए गए उत्तराखंड के लंबे दाने वाले चावल की पहचान को लेकर कहते हैं कि अगर पीएम माेदी चावल ही तोहफे में दे रहे थे तो पूर्वी यूपी का काला नमक चावल भी दे सकते थे तो वहीं कतरनी चावल भी दे सकते थे. अगर उन्होंने उत्तराखंड के लंबे दाने वाले चावल को तोहफे में दिया है तो लंबे दाने वाले चावल की पहचान के आधार पर कहा जा सकता है कि ये बासमती चावल है. वह कहते हैं कि ये 100 फीसदी तय है कि उन्होंने अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन को धान्य दान के तौर पर पूसा बासमती 1121 दिया है. डॉ वीपी सिंह कहते हैं कि संभवत: पीएम मोदी ने तोहफे में जैविक बासमती चावल दिया है.
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असल में उत्तराखंड के तीन जिले मैदानी हैं. तो बाकी 10 जिले पहाड़ी हैं. पहाड़ी जिलों की पहचान लाल चावल से है, तो वहीं देहारादून समेत ऊधमसिंह नगर और हरिद्वार में लंबे दाने वाले चावल के तौर पर बासमती चावल ही उगाया जाता है. यहीं से असली कहानी शुरू होती है, जिसके किरदारों में बासमती, भारत सरकार, पाकिस्तान सरकार और ऑस्ट्रलिया की सरकार है.
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन को अन्न दान कर पाकिस्तान को मात देने के इस समीकरण को समझने के लिए बासमती की मॉर्डन कहानी समझनी होगी. यहां पर मॉर्डन यानी आधुनिक कहानी कहना बेहद ही जरूरी है. असल में बासमती की उत्पत्ति हिमालय के तलहटी वाले क्षेत्रों में पाई जाती है, जो पहले तक एक सुंगधित चावल के तौर पर पहचाना जाता था. बासमती चावल की इस मॉर्डन कहानी को विस्तार से समझाते हुए एपीडा में प्रधान वैज्ञानिक और बासमती चावल की कई किस्में विकसित कर चुके डॉ रितेश शर्मा कहते हैं कि दुनिया के सामने पहली बार बासमती चावल 1933 में आया. मसलन, खुशबूदार चावल की एक किस्म को बासमती 370 के तौर पर 1933 में बाजार में उतारा गया. डॉ रितेश शर्मा कहते हैं कि अंग्रेजों के अधीन अविभाजित भारत में काला साह काकू (पंजाब), लड़काना (सिंघ) और नगीना (तब का संयुक्त प्रांत और अब का यूपी) में बासमती केंद्र हुआ करते थे. पंजाब केंद्र ने 1933 में बासमती पहली किस्म 370 को बाजार में उतारा था, पंजाब केंद्र आजादी के बाद पाकिस्तान में चला गया तो पहली किस्म की पहचान भी पाकिस्तान चली गई. इसके साथ ही लड़काना केंद्र भी पाकिस्तान में चला गया, जबकि नगीना बासमती केंद्र भारत में रहा.
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यहीं से शुरू होती है बासमती चावल को लेकर मौजूदा जंग की कहानी. असल में बासमती को भौगौलिक पहचान (GI TAG) मिली हुई है, जिसमें भारत के साथ ही पाकिस्तान के बासमती को भी जीआई टैग मिला हुआ है, लेकिन इंटरनेशनल स्तर पर बासमती पर अधिकार को लेकर भारत और पाकिस्तान आमने- सामने हैं.
असल में दुनिया के सामने पहला बासमती राइस काला साह काकू (पंजाब) केंद्र ने जारी किया था, जो बासमती में पाकिस्तान के दावे को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मजबूत करता है. हालांकि यहां ये जानना जरूरी है कि 370 बासमती किस्म को देहरादून बासमती माना जाता है.
एपीडा में बासमती चावल के नोडल अधिकारी डॉ रितेश शर्मा कहते हैं कि बासमती एक जीआई उत्पाद है. मसलन, भारत के 7 राज्यों और पाकिस्तान के 14 जिलों में उत्पादित होने वाले खुशबुदार चावल को बासमती के तौर पर जीआई टैग मिला हुआ है. पाकिस्तान के ये 14 जिले पंजाब प्रांत के हैं, जबकि भारत के 7 राज्यों में पंजाब, हरियाणा, हिमाचल, उत्तराखंड, दिल्ली, जम्मू के 3 जिले और वेस्टर्न यूपी के 30 जिलों में होने वाले खुशबुदार चावल को बासमती जीआई टैग मिला हुआ है. इसका मतलब ये है कि इन्हीं जगह का खुशबूदार चावल दुनिया में बासमती के नाम से ट्रेड यानी व्यापार किया जा सकता है. बासमती चावल का इंटरनेशनल लेवल पर व्यापार ही भारत और पाकिस्तान के बीच जंग का माहौल बनाए हुए है, जिसका मैदान ऑस्ट्रेलिया बना है.
'ऑस्ट्रेलिया ने भारतीय चावल को जीआई टैग देने से किया इनकार, पाकिस्तानी लॉबिंग पर शक' इस शीर्षक की हेडिंग के साथ 22 अप्रैल 2023 को कई पोर्टलों पर खबरें प्रकाशित हुई थी. खबरों की मानें तो ऑस्ट्रेलिया ने भारतीय बासमती को जीआई टैग देने से इसलिए मना कर दिया कि सिर्फ बासमती भारत में ही नहीं उगाया जाता है. मसलन, बासमती का उत्पादन पाकिस्तान में होता है. इस मामले को लेकर एपीडा ने ऑस्ट्रेलिया के संघीय न्यायालय के समक्ष एक अपील भी दायर भी की हुई है. भारत ने 2019 में ऑस्ट्रेलिया में जीआई टैग के लिए आवेदन किया था.
कुल मिलाकर बासमती चावल के स्वामित्व को लेकर भारत और पाकिस्तान के बीच बौद्धिक संपदा विवाद चल रहा है, जिसको लेकर हुई सुनवाई में ऑस्ट्रेलियाई अधिकारियों ने भारत के मुद्दे का समर्थन नहीं किया था. बेशक ऑस्ट्रेलिया में सिर्फ 1 फीसदी बासमती ही एक्सपोर्ट होता है, लेकिन बासमती के मामले में पाकिस्तान के समर्थन के पीछे की कहानी को लेकर माना जा रहा था कि ऑस्ट्रेलिया इस मामले पर कूटनीतिक स्तर पर माइलेज लेना चाह रहा है.
असल में कई देशों में जीआई टैग लेने के लिए भारत को अलग से आवेदन करना होगा. ऐसे में अगर ऑस्ट्रेलिया भारतीय बासमती को जीआई टैग देने से मना करता है तो बासमती पर भारत का स्वामित्व संबंधी दावा इंटरनेशन स्तर पर कमजोर पड़ सकता है. यहीं से शुरू होती है पीएम मोदी की अन्न दान डिप्लोमेसी. असल में पीएम मोदी ने अन्न दान के तौर पर अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन को उत्तराखंड के लंबे दाने वाला चावल दिया है, जिसे बासमती चावल माना जा रहा है. अपने इस डिप्लोमेसी ने पीएम मोदी ने सीधे तौर पर दुनिया के सबसे ताकतवर देश के राष्ट्रपति आवास में बासमती की सुखद एंट्री कराई है.माना जा रहा है कि बासमती चावल की व्हाइट हाउस में एंट्री से दुनिया के अन्य देशों में भी भारतीय बासमती चावल की एंट्री आसान होगी. इससे दुनियाभर में बासमती चावल में भारतीय स्वामित्व का रास्ता आसान होगा.
बासमती चावल पर पाकिस्तान के दावे को खारिज करते हुए कृषि वैज्ञानिक पद्मश्री डॉ वीपी सिंह कहते हैं कि भारत में ही बासमती चावल की उत्पति है. वह कहते हैं कि बेशक बासमती चावल की उत्पत्ति हिमालय की तलहटी वाले क्षेत्रों में हुई है, लेकिन ये इसका मतलब ये बिलकुल नहीं है कि बासमती पाकिस्तान का है. वह बासमती शब्द की उत्पति समझाते हुए कहते हैं कि बासमती संस्कृत के वस और मयूप से मिलकर बना है. वस का मतलब खुशबू से है और मयूप से मती बनता है. इस तरह से बासमती शब्द बना है. उर्दू, अरबी, फारसी में कहीं भी बासमती शब्द का जिक्र नहीं है. वह कहते हैं कि वह 1910 में प्रकाशित Races of rice india किताबें के हवाले से कह सकते हैं कि बासमती चावल की उत्पत्ति भारत में ही हुई है.
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