COP 28: क‍िसानों पर बढ़ेंगी पाबंद‍ियां! छोटी जोत के क‍िसानों को म‍िल रहे इंटरनेशनल क्लाइमेट फंड पर सवाल

COP 28: क‍िसानों पर बढ़ेंगी पाबंद‍ियां! छोटी जोत के क‍िसानों को म‍िल रहे इंटरनेशनल क्लाइमेट फंड पर सवाल

COP 28 में खेती से न‍िकल रही ग्रीन हाउस गैसेस को कम करने पर चर्चा होनी है. तो वहीं इस पर रोकथाम और न‍ियंत्रण के ल‍िए कई मसौदों को भी अंत‍िम रूप द‍िया जा सकता है. ज‍िसका असर दुन‍ियाभर के क‍िसानों पर पड़ेगा.

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COP 28: क‍िसानों पर बढ़ेंगी पाबंद‍ियां! छोटी जोत के क‍िसानों को म‍िल रहे इंटरनेशनल क्लाइमेट फंड पर सवालCop 28 की बैठक में खेती पर चर्चा

संयुक्त राष्ट्र जलवायु पर‍िवर्तन सम्मेलन की 28वीं सभा यानी COP 28 की बैठक 30 नवंबर से 10 द‍िसंबर तक दुबई में होनी है. पीएम नरेंद्र मोदी भी इस बैठक में श‍िरकत करेंगे. इससे पहले ग्लासगो में आयोज‍ित हुई COP 26 में भारत के फैसलों ने दुन‍ियाभर का ध्यान अपनी ओर आकर्ष‍ित क‍िया था. नवंबर 2021 में आयोज‍ित इस बैठक में पीएम नरेंद्र मोदी ने जलवायु पर‍िवर्तन की चुनौत‍ियों से न‍िपटने के लि‍ए पंचामृत का स‍िद्धांत द‍िया था, ज‍िसके तहत पीएम नरेंद्र मोदी ने 2070 तक भारत को जीवाश्म ईंधन मुक्त करने की घोषणा वैश्च‍िक मंच से की थी.

वहीं माना जा रहा है क‍ि दुबई में आयोज‍ित होने जा रही COP 28 बैठक भी कई मायनों में अहम हो सकती है. COP 28 बैठक के ल‍िए प्रस्ताव‍ित द‍िनों में एक द‍िन फूड डे आयो‍ज‍ित क‍िया जाना है, ये पहली बार हो रहा है जब COP की बैठक में पूरे एक द‍िन काे फूड डे के तौर पर मनाया जाएगा. इस बैठक में फूड सेक्टर से उत्सर्जि‍त हो रही ग्रीन हाउस गैसेस यानी कार्बन की कटौती पर चर्चा की जानी है.

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ग्लोबली ये माना जा रहा है क‍ि दुन‍िया के एक चौथाई कार्बन का उत्सर्जन फूड सेक्टर से होता है, जो पाठक ग्रीन हाउस गैसेस और कार्बन का मतलब नहीं जानते हैं, वह इसे जलवायु को नुकसान पहुंचाने वाली गैसेस या तापमान में बढ़ोतरी करने वाली गैसेस के तौर पर पहचान सकते हैं.

 कुल म‍िलाकर COP 28 में खेती से न‍िकल रही ग्रीन हाउस गैसेस को कम करने पर चर्चा होनी है. तो वहीं इस पर रोकथाम और न‍ियंत्रण के ल‍िए कई मसौदों को भी अंत‍िम रूप द‍िया जा सकता है. ज‍िसका असर दुन‍ियाभर के क‍िसानों पर पड़ेगा, लेक‍िन COP 28 से पहले World rural forum ने दुन‍ियाभर के छोटी जोत वाले क‍िसानों की आवाज मुखरता से उठाई है. 

छोटी जोत के क‍िसानों पर स‍िर्फ 0.3 क्लाइमेट फंड खर्च 

वर्ल्ड रूरल फोरम ने अफ्रीका, लैटिन अमेरिका, एशिया में 35 म‍िल‍ियन से अध‍िक छोटी जोत वाले क‍िसानों का प्रत‍िन‍िध‍ित्व करने वाले 10 क‍िसान संगठनों की मदद से एक र‍िपोर्ट तैयार की है. COP 28 से ठीक पहले जारी ये र‍िपोर्ट ये कहती है क‍ि दुन‍िया भर में छोटी जोत वाले क‍िसानों को स‍िर्फ 0.3% क्लाइमेट पब्ल‍िक फंड आवंट‍ित होता है. र‍िपोर्ट में 2021 के आंकड़ाें को आधार बनाया गया है.

र‍िपोर्ट के अनुसार कृष‍ि और खाद्य क्षेत्र को इंटरनेशल क्लाइमेट पब्ल‍िक फंड से 8.4 बिलियन अमेरिकी डॉलर म‍िले, लेक‍िन इसका 2 फीसदी ही छोटी जोत के क‍िसानों और गांव तक पहुंचा है, जबक‍ि अगर पब्ल‍िक एंड प्राइवेट क्लाइमेट फंड में इसकी ह‍िस्सेदारी देखी जाए तो ये रकम कुल फंड के 0.3 फीसदी ही आती है. 

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ये र‍िपोर्ट ये भी बताती है क‍ि कृषि-खाद्य क्षेत्र पर खर्च किए गए इंटरनेशनल क्लाइमेट फंड का 80 फीसदी फंड सरकारों और गैर सरकारी संगठनों के माध्यम से आंवट‍ित क‍िया जाता है, लेक‍िन फंड पाने के कठ‍िन न‍ियमों की वजह से छोटी जोत वाले क‍िसानों तक ये मदद नहीं पहुंच पाती है. 

भारत में छोटी जोत वाले क‍िसानों को कि‍तना फंड 

र‍िपोर्ट इंटरनेशनल क्लाइमेट पब्लि‍क फंड से भारत के छोटी जोत के कि‍सानों को मि‍ल रहे फंड की भी पड़ताल करती है. र‍िपोर्ट में दावा क‍िया गया है कि‍ भारत में क्लाइमेट पब्ल‍िक फंड का 5 फीसदी ह‍िस्सा ही खेती, मत्स्य पालन और वान‍िकी पर खर्च होता है, ज‍िसमें से भी 1.91 फीसदी फंड ही छोटी जोत वाले क‍िसानों और ग्रामीण समुदाय पर खर्च क‍िया जाता है. वहीं र‍िपोर्ट के अनुसार दुन‍िया के देशों में नाईजर‍िया इंटरनेशनल क्लाइमेट पब्लि‍क फंड का इस्तेमाल खेती में करने वाले देशों में अव्वल है. जहां कुल फंड का 46 फीसदी खर्च खेती में क‍िया जाता है. वहीं इस फंड को छोटी जोत के क‍िसानों को खर्च करने में अफ्रीकी देश मलावी सबसे अव्वल है, जहां 16 फीसदी तक खर्च छोटी जोत के क‍िसानों पर क‍िया जाता हैं. 

छोटी जोत वाले क‍िसानों का बड़ा काम 

दुन‍ियाभर में छोटी जोत के क‍िसान खाद्य सुरक्षा सुन‍िश्च‍ित तय करने में बड़ा काम करते हैं. र‍िपोर्ट बताती है क‍ि दुन‍िया का कुल 32 फीसदी खाद्यान्न उत्पादन छोटी जोत के क‍िसान ही करते हैं. छोटी जोत के क‍िसानों से मतलब, ज‍िनके पास दो हेक्टेयर से कम जमीन है. जबकि 5 हेक्टेयर या उससे कम खेत का माल‍िकाना रखने वाले क‍ि‍सान चावल, मूंगफली, बाजरा, गेहूं, आलू के कुल वैश्व‍िक उत्पादन का 50 फीसदी उगाते हैं. वहीं ये र‍िपोर्ट ये भी कहती है क‍ि वैश्विक स्तर पर 2.5 अरब से अधिक लोग अपनी आजीविका के लिए छोटी जोत वाले खेतों पर निर्भर हैं. र‍िपोर्ट में दुन‍िया के छोटे क‍िसानों की खेती करने के तरीको को बढ़ावा देने और उन्हें क्लाइमेट फंड से अध‍िक देने की वकालत की गई है.       


 



 

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