सब्जी सेहत के लिए काफी फायदेमंद होती है. लोग खुद को स्वस्थ रखने के लिए हमेशा अलग-अलग तरह की सब्जियों को खाना पसंद करते हैं. ऐसे में पूरे साल मार्केट में सब्जियों की डिमांड रहती है. खास बात यह है कि सभी सब्जियों की कई अलग-अलग किस्में भी हैं. इन किस्मों की पैदावार छमता भी अलग-अलग है. अगर हम गाजर की बात करें, तो इसकी भी कई किस्में मौजूद हैं. लेकिन आज हम गाजर की सिर्फ पांच वैरायटी के बारे में बात करेंगे. अगर किसान इन किस्मों की खेती करते हैं, तो उन्हें बंपर पैदावार मिलेगी.
पूसा केसर: यह गाजर की एक खास किस्म है. इस किस्म से पैदा होने वाले गाजर का आकार छोटा और रंग गहरा लाल होता है. ये किस्म बीज रोपाई के लगभग 90 से 100 दिनों में तैयार हो जाती है. वहीं, यह किस्म पैदावार में भी बेहतर होती है. इस किस्म से प्रति हेक्टेयर तकरीबन 300 क्विंटल का उत्पादन होता है.
पूसा आसिता: गाजर की यह किस्म भी काफी अच्छी पैदावार के लिए जानी जाती है. इस किस्म को मैदानी प्रदेशों में अधिक उगाया जाता है, क्योकि यह अधिक पैदावार देती है. इस गाजर की किस्म का रंग काला होता है. ये किस्म 100 दिनों में तैयार हो जाती है. इसके साथ ये किस्म तकरीबन 200 से 210 क्विंटल की पैदावार देती है.
पूसा मेघाली: गाजर की यह किस्म सितंबर महीने के शुरुआती दिनों में उगाई जाती है. ये किस्म 100 से 110 दिनों में तैयार हो जाती है. ये किस्म प्रति हेक्टेयर 270 से 300 क्विंटल की पैदावार देती है. इस किस्म में केरोटीन की मात्रा अधिक मिलती है. इसके अंदर का गूदा नारंगी रंग का होता है.
नैंटस: गाजर की यह किस्म बेलनाकार और नारंगी रंग की होती है. ये किस्म बुवाई के 110 से 120 दिनों में तैयार हो जाती है. यह किस्म प्रति हेक्टेयर क़े हिसाब से 100 से 130 क्विंटल की पैदावार देती है. इस गाजर को काफी फायदेमंद माना जाता है.
पूसा रुधिर: गाजर की यह किस्म लाल रंग की होती है. गाजर की इस किस्म को सितंबर क़े महीने में बोया जाता है. ये किस्म दिसंबर क़े महीने में पैदावार देना शुरू कर देती है. यह किस्म प्रति हेक्टेयर क़े हिसाब से 300 क्विंटल पैदावार देती है. भारत में इस किस्म की खेती सबसे अधिक दिल्ली में की जाती है.
गाजर की खेती से पहले खेत को समतल करके 2-3 बार गहरी जुताई करनी चाहिए. फिर जुताई के बाद पाटा लगाकर मिट्टी को भुरभुरी बना लेना चाहिए. इसके बाद मिट्टी में गोबर की खाद मिला लें. वहीं, एक हेक्टेयर में गाजर की खेती के लिए करीब 4-6 किलो बीज की जरूरत होती है. इसके बाद गाजर की बुवाई पंक्ति से पंक्ति की दूरी 45 सेमी और पौधे से पौधे की दूरी 7.5 सेमी रखनी चाहिए. वहीं, गाजर की स्थानीय किस्मों की बुआई के लिए अगस्त-सितंबर का समय सबसे अच्छा होता है.
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