गेहूं की फसल को प्रभावित करने वाली सबसे खतरनाक बीमारी रतुआ रोग है. यह रोग गेहूं को सबसे अधिक नुकसान पहुंचाता है. भारत ही नहीं, उन सभी देशों में जहां गेहूं उगाया जाता है, रतुआ रोग प्रमुखता से देखा जाता है. रतुआ रोग तीन प्रकार के होते हैं - तना रतुआ, धारीदार रतुआ और पत्ती रतुआ.
एक अनुमान के मुताबिक, रतुआ रोग से गेहूं की पैदावार 30 फीसदी तक कम हो सकती है. धारीदार रतुआ उत्तर भारत में गेहूं पर हमला करता है, तना रतुआ मध्य और ऊपरी भागों में और पत्ती रतुआ भारत के लगभग सभी हिस्सों में हमला करता है. आइए जानते हैं इन तीन बीमारियों और बचाव के तरीकों के बारे में.
गेहूं में यह रोग फफूंद के कारण होता है. एक समय था जब दुनिया भर के गेहूं उत्पादक देश काले रतुआ की चपेट में थे. लेकिन बाद में इलाज के तरीके सामने आए और ये बीमारी ठीक हो गई. हालांकि, कुछ क्षेत्रों में यह बीमारी अभी भी गंभीर बनी हुई है. स्टेम रस्ट या ब्लैक रस्ट के खतरे को इस बात से समझा जा सकता है कि यह बीमारी कटाई से तीन हफ्ते पहले गेहूं में फैलती है और पूरी फसल बर्बाद हो जाती है. तना सिकुड़ जाता है और गेहूं के दाने छोटे हो जाते हैं.
फफूंदीनाश से गेहूं को रतुआ रोग से छुटकारा दिलाया जा सकता है. 250 ग्राम क्रेसोक्सिम मिथाईल 44.35% एफसी 500 लीटर पानी में मिलाकर 25 दिनों में छिड़काव करना चाहिए. भूरा और काला रतुआ रोग से बचाव के लिए सवा से डेढ़ किलो मैंकोजेब 75% डब्ल्यूपी 750 लीटर पानी में मिलाकर फसल पर छिड़काव करना चाहिए.
125 ग्राम प्रोपिकोनाजोल 25% ईसी 750 लीटर पानी में मिलाकर 30 दिन में छिड़काव करना चाहिए. पीला रतुआ रोग से बचाव के लिए 0.1875 ग्राम टेबुकोनाजोल 25% डब्ल्यूजी 50 लीटर पानी में मिलाकर 41 दिन में छिड़काव करना चाहिए.
तने में रतुआ का संक्रमण देर से बोई जाने वाली तथा देर से पकने वाली किस्मों में अधिक होता है तथा इसका प्रकोप कम ऊंचाई वाले क्षेत्रों में भी अधिक देखा जाता है. इस रोग का गंभीर प्रकोप तब होता है जब गर्म-आर्द्र जलवायु में अनुकूल परिस्थितियाँ लंबे समय तक बनी रहती हैं.
18 डिग्री तापमान पर 8 से 12 घंटे ओस पड़ने के बाद जब सूर्य की किरणें गेहूं पर पड़ती हैं, ओस सूख जाती है और अधिकतम तापमान 30 डिग्री होता है, तब इस रोग का प्रकोप बढ़ जाता है.
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