मालदा आम का स्वाद बेहद खास है. वैसे तो इसका नाता बंगाल के मालदा से रहा है, लेकिन अब इसकी बागवानी कई प्रदेशों में की जा रही है. इसमें एक नाम बिहार भी है. बिहार में जिस मालदा की खेती होती है, उसे दूधिया मालदा कहते हैं. दूधिया मालदा केवल बिहार तक ही सीमित नहीं है बल्कि इसकी मिठास अब दुनिया के कई देशों में फैल गई है.
रिपोर्ट बताती है कि दूधिया आम को भारत में पाकिस्तान से लाया गया जहां इसे अंग्रेजी में मिल्की मालदा नाम से पुकारते थे. इसका हिंदी नाम दूधिया मालदा है. यह नाम इसलिए पड़ा क्योंकि इसके पेड़ों की सिंचाई दूध से भी की जाती थी ताकि पैदावार अधिक मिले.
बिहार की बात करें तो यहां दूधिया आम को आमों का राजा कहा जाता है. यह आम खास मिठास, खास रंग, सुगंध और गूदे की प्रचुर मात्रा के लिए जाना जाता है. साथ ही इसकी गुठली और छिलके बिल्कुल पतले होते हैं. इससे यह आम खाने का स्वाद और भी बढ़ जाता है.
बिहार के दीघा में दूथिया मालदा की सबसे अधिक बागवानी होती रही है. यह पूरा जिला आम के लिए जाना जाता है. इस जिले के बारे में कहा जाता है कि सीजन में पूरी हवा हवा की सुगंध से भर जाती है. हालांकि अब यहां दूधिया आम की बागवानी तेजी से घट रही है.
एक रिपोर्ट बताती है कि कभी दूधिया आम के लिए मशहूर दीघा में अब इस आम के पेड़ बहुत कम बचे हैं. किसान आम की खेती से दूर भाग रहे हैं और स्थिति ये हो गई है कि लगभग 100 पेड़ ही दूधिया आम के बचे हैं. एक्सपर्ट बताते हैं कि आम की इस यूनिक वैरायटी को बचाने के लिए सरकारी पहल होनी चाहिए.
इतिहास के पन्नों में झांकें तो कभी फिल्म एक्टर राज कपूर और सिंगर सुरैया ने दीघा के आम बागों का दौरा किया था. दोनों दीघा से कार्टन भर कर आम भी ले गए थे. बिहार के रहने वाले पूर्व राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने इस आम को इंदिरा गांधी को भेंट किया था.
एक रिपोर्ट बताती है कि लखनऊ के नवाब फ़िदा हुसैन को मौजूदा पाकिस्तान से दूधिया आम की किस्म का पौधा लाने का श्रेय दिया जाता है. मो. इरफान ने दूधिया मालदा को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय आम प्रदर्शनियों में ख्याति हासिल की. 1997 में सिंगापुर में आयोजित आम प्रदर्शनी में दीघा के मालदा आम को उसके खास स्वाद और खुशबू के लिए नंबर एक स्थान दिया गया था.
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