सरसों रबी फसल की एक प्रमुख तिलहन फसल है. इस फसल का भारत की अर्थव्यवस्था में एक अहम योगदान है. वहीं सरसों उत्पादन और क्षेत्रफल की दृष्टि से विश्व में चीन और कनाडा के बाद भारत का स्थान है. सरसों की खेती किसानों के लिए काफी लोकप्रिय खेती है. इस फसल की खेती कम सिंचाई और कम लागत में आसानी से की जा सकती है. साथ ही सरसों के तेल की डिमांड बाजारों में हमेशा बनी रहती है क्योंकि सरसों के तेल के कई फायदे होते हैं.
सरसों के तेल का इस्तेमाल भारत के लगभग हर एक घर में किया जाता है. वहीं सरसों की खेती की बात करें तो इसके लिए दोमट या बलुई मिट्टी जिसकी जल निकासी अच्छी हो, वह अधिक उपयुक्त होती है. ऐसे में आपको सरसों के दाने बढ़ाने के लिए इन खादों का इस्तेमाल करना चाहिए.
भरपूर उत्पादन पाने के लिए रासायनिक उर्वरकों के साथ केंचुए की खाद, गोबर या कम्पोस्ट खाद का भी उपयोग करना चाहिए. सिंचित क्षेत्रों के लिए अच्छी सड़ी हुई गोबर या कम्पोस्ट खाद यानी केंचुए की खाद को बुवाई से पहले खेत में डालकर खेत की जुताई के समय अच्छी तरह मिला देना चाहिए. वहीं सरसों से भरपूर पैदावार लेने के लिए किसानों को रासायनिक उर्वरकों का संतुलित मात्रा में उपयोग करने से उपज पर अच्छा प्रभाव पड़ता है.
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साथ ही ये भी ध्यान दें कि उर्वरकों का प्रयोग मिट्टी परीक्षण के आधार पर करना अधिक उपयोगी होता है. इसके अलावा सरसों को नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश जैसे तत्वों के अलावा गंधव तत्व की आवश्यकता अन्य फसलों की तुलना में अधिक होती है. इन सभी उर्वरकों के इस्तेमाल से सरसों के दाने बढ़ाने शुरू हो जाते हैं.
सरसों की फसल में 100 क्विंटल प्रति हेक्टेयर केंचुए की खाद बुवाई के पूर्व खेत में डालकर जुताई के समय खेत में अच्छी तरह मिला लें. वहीं देशी खाद 40-50 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की दर से वर्षा के पूर्व खेत में डालें और वर्षा के मौसम में खेत की तैयारी के समय खेत में मिला लें. ऐसे संतुलित मात्रा में रासायनिक उर्वरकों और खाद का इस्तेमाल करने से सरसों की भरपूर पैदावार मिलती है. साथ ही इन खादों और उर्वरकों के इस्तेमाल से सरसों में तेल की मात्रा भी भरपूर बढ़ती है.
सरसों की खेती करने के लिए सबसे पहले एक समतल भूमि वाले खेत को तैयार कर लेना होता है. वहीं खेत के अंदर सामान्य हल से दो या तीन बार अच्छी तरह से जुताई करनी चाहिए. अगर सामान्य हल से जुताई नहीं कर पा रहे हैं तो खेत के अंदर कल्टीवेटर के द्वारा दो से तीन बार जुताई कर लें. जुताई पूर्ण हो जाने के बाद कुछ दिनों बाद सरसों की फसल की बुवाई कर देनी चाहिए.
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