भारत में उर्वरक नीति को लेकर एक अहम सिफारिश सामने आई है. कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (CACP) ने अपनी ताजा रिपोर्ट रबी मार्केटिंग सीजन 2026-27 के लिए मूल्य नीति में सुझाव दिया है कि यूरिया की कीमतों को चरणबद्ध तरीके से बढ़ाया जाए. आयोग का मानना है कि मौजूदा सब्सिडी ढांचा किसानों को सस्ती दर पर यूरिया उपलब्ध तो कराता है, लेकिन इसके कारण पोषक तत्वों का असंतुलित उपयोग हो रहा है. सीएसीपी ने कहा कि यूरिया की कीमत सरकार द्वारा तय अधिकतम खुदरा मूल्य 242 रुपये प्रति 45 किलो बैग पर उपलब्ध है. (टैक्स और नीम कोटिंग शुल्क को छोड़कर), जबकि अन्य खाद फॉस्फेट और पोटाश (P&K की लागत इसके मुकाबले ज्यादा पड़ती है. यही वजह है कि किसान यूरिया पर ज्यादा निर्भर हो गए हैं.
रिपोर्ट में कहा गया कि कुछ जिलों में प्रति हेक्टेयर 500 किलो से भी अधिक यूरिया का उपयोग हो रहा है, जो वैज्ञानिक सिफारिशों से कहीं अधिक है. इससे फसल उत्पादन पर प्रतिकूल असर, मिट्टी की उर्वरता में कमी और पर्यावरणीय समस्याएं बढ़ रही हैं. आयोग ने कहा कि यूरिया पर दी जा रही सब्सिडी को धीरे-धीरे कम कर उसकी बचत का इस्तेमाल किसानों को P&K उर्वरकों पर ज्यादा सब्सिडी देने में किया जाना चाहिए. इससे खादों का संतुलित उपयोग सुनिश्चित हो सकेगा.
भारत में लंबे समय तक यूरिया की आपूर्ति के लिए आयात पर निर्भरता रही है. हालांकि, बीते एक दशक में सरकार की नीतियों और निवेश से घरेलू उत्पादन में तेजी आई है. 2015-16 में 245 लाख टन उत्पादन से बढ़कर 2023-24 में यह 314 लाख टन तक पहुंच गया. हालांकि, 2024-25 में उत्पादन मामूली रूप से घटकर 306 लाख टन पर आ गया.
वहीं, आयात में गिरावट देखी गई है. 2015-16 में 85 लाख टन यूरिया का आयात होता था, जो 2024-25 में घटकर 56 लाख टन रह गया. 2020-21 में यह आंकड़ा 98 लाख टन के उच्च स्तर पर पहुंचा था. कुल खपत में आयात की हिस्सेदारी 2015-16 के 27.7% से घटकर 2024-25 में 14.6% रह गई है. यह दर्शाता है कि देश आत्मनिर्भरता (आत्मनिर्भर भारत) की ओर बढ़ रहा है.
सीएसीपी ने रिपोर्ट में चेताया कि भारतीय कृषि इस समय कई समस्याओं से जूझ रही है. इसमें पोषक तत्वों की कमी, मिट्टी में कार्बन की घटती मात्रा, और असंतुलित खाद उपयोग शामिल है. आयोग ने सुझाव दिया कि पूरे देश में ‘संतुलित पोषण’ पर जागरूकता अभियान चलाया जाए, जिसमें विशेष जोर सूक्ष्म पोषक तत्वों और बायो-फर्टिलाइज़र के उपयोग पर हो.
रिपोर्ट में कहा गया कि सरकार ने इस दिशा में कई कार्यक्रम शुरू किए हैं. इनमें प्रधानमंत्री-प्रणाम (PM-PRANAM), गोबरधन योजना, नैनो उर्वरकों और जैव उर्वरकों का प्रचार-प्रसार जैसे कदम शामिल हैं. आयोग ने कहा कि संतुलित खाद उपयोग के लिए मृदा परीक्षण को बढ़ावा देना बेहद जरूरी है. इसके लिए आधुनिक उपकरणों से लैस प्रयोगशालाएं बनाना, स्टाफ को ट्रेनिंग देना और किसानों को समय पर सलाह मुहैया कराना जरूरी है.
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