'एक राष्ट्र, एक लाइसेंस' सिस्टम की जरूरत का सुझाव देते हुए, भारतीय बीज उद्योग महासंघ (FSII) ने कहा है कि रेगुलेटरी अड़चनों के कारण भारतीय बीज उद्योग को सालाना 800 करोड़ रुपये से अधिक का नुकसान होता है. FSII ने कहा है कि भारत का बीज क्षेत्र, जिसका मूल्य 30,000 करोड़ रुपये ($3.6 बिलियन) से अधिक है और जो वैश्विक स्तर पर पांचवें स्थान पर है, देश के कृषि विकास और किसानों की समृद्धि का आधार है. इसमें कहा गया है, "फिर भी, यह क्षेत्र रेगुलेटरी अड़चनों का सामना कर रहा है जो कृषि में नए-नए प्रयोगों को धीमा करती है, लागत बढ़ाती है और दुनिया के बीज बाजार में अव्वल बनने की भारत की इच्छा को सीमित करती है."
भारतीय बीज क्षेत्र की चुनौतियों के बारे में, सीएम वाईके अध्ययन में कहा गया है कि कंपनियों को अलग-अलग लाइसेंस हासिल करने और कई राज्यों में प्रक्रियाओं को दोहराने के लिए मजबूर होना पड़ता है, जिससे उन्हें अलग-अलग दस्तावेज, चार्ज और समय-सीमा का सामना करना पड़ता है. इससे संसाधनों और समय की बर्बादी होती है, खासकर राष्ट्रीय स्तर पर काम करने वाली कंपनियों के लिए.
लाइसेंसिंग और किस्मों के रजिस्ट्रेशन की समय-सीमा कुछ राज्यों में 30 दिनों से लेकर कहीं-कहीं 180 दिनों से भी अधिक तक होती है. इस तरह की देरी से अक्सर रोपाई का मौसम छूट जाता है और कमर्शियल बीज तैयार करने संभावनाएं नष्ट हो जाती हैं, जिससे उद्योग को लगभग 290 करोड़ रुपये का सालाना घाटा होता है.
बीजों के किस्म परीक्षण के बारे में, अध्ययन में कहा गया है कि हर राज्य के कृषि विश्वविद्यालयों को एक खास तरह के प्रोटोकॉल की जरूरत होती है, जिससे बीज कंपनियों को आईसीएआर द्वारा किए गए परीक्षण के अलावा, प्रत्येक राज्य के लिए महंगे और समय लेने वाले परीक्षण दोबारा करने पड़ते हैं. इससे लागत बढ़ जाती है, उत्पाद लॉन्च में देरी होती है और अनुसंधान एवं विकास (आरएंडडी) निवेश में बाधा आती है.
लाइसेंसिंग, परीक्षण और दस्तावेजीकरण जैसे काम में खर्च हर साल 225 करोड़ रुपये से अधिक होते हैं, जिसका एमएसएमई और नई बीज कंपनियों पर गहरा प्रभाव पड़ता है. अध्ययन में कहा गया है कि कागज-आधारित मैन्युअल प्रक्रियाएं बीज व्यवसाय के काम में जोखिम को बढ़ाती हैं. इससे बीज निर्माण से लेकर उसके व्यवसाय तक में निवेश सीमित होता और क्षेत्र की वृद्धि धीमी होती है. इसके अलावा, आरएंडडी के लिए 200 प्रतिशत टैक्स कटौती को वापस लेने से निजी नवाचार में कमी आई है, जिससे जलवायु परिवर्तन और फसल पोषण जैसे अहम क्षेत्रों में रिसर्च में कमी आई है.
FSII ने कहा है कि अड़चनों से बीज उद्योग को सालाना 800 करोड़ रुपये से अधिक का नुकसान होता है, जिसमें से आधा देरी के कारण और बाकी का पैसा तरह-तरह के काम के बीच बंट जाता है. इस गैर-जरूरी खर्च को कम करने के लिए 'एक राष्ट्र, एक लाइसेंस' की जरूरत पर जोर देते हुए, अध्ययन में कहा गया है कि लाइसेंसिंग प्रक्रियाओं को डिजिटल किया जाए और बीज परीक्षण में अनावश्यक प्रक्रियाओं, नौकरशाही की देरी, बिक्री में कमी और प्रशासनिक खर्चों से बचने में 382-708 करोड़ रुपये की बचत हो सकती है.
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