आम हमारे देश का एक प्रमुख फल है. अलग-अलग फलों के बीच आम का अपना एक अलग स्थान है. आम में स्वाद के साथ बहुत सारे विटामिन और पोषक तत्व पाए जाते हैं. जिस वजह से आम की मांग बाजार में काफी अधिक रहती है. मौसम के शुरुआत से ही आम की मांग बनी रहती है. इस समय की बात करें तो आम की कई किस्में बाजार में आ चुकी है लेकिन कई किस्में ऐसी भी हैं जिन्हें पकने में अभी समय है. ऐसे में आम के पेड़ों पर तरह-तरह के कीटों का हमला होता है. यदि आम में लगाने वाले हानिकारक कीटों को नियंत्रित नहीं किया गया तो इससे पैदावार में काफी कमी आ सकती है और इससे आम को काफी नुकसान हो सकता है. एक दर्जन से अधिक कीट समय-समय पर आम को नुकसान पहुंचाते हैं. आम के पेड़ को प्रभावित करने वाले कीटों में मुख्य कीट हैं- आम का मघुआ कीट , दहिया कीट, आम का तना छेदक, प्ररोह पित्त और आम के फल की मक्खी. आइए जानते हैं मघुआ कीट और उसके रोकथाम के बारे में विस्तार से.
यह कीट आम की फसल को प्रभावित करने वाला प्रमुख कीट है और इसे मैंगो हॉपर भी कहा जाता है. यह कीट एक छोटा और मटमैले रंग का कीट होता है. फरवरी और अप्रैल के महीने में आम के पत्तों की निचली सतह और आम के पेड़ के तने पर वयस्क और युवा कीट बड़ी संख्या में दिखाई देते हैं. जब ये कीड़े किसी पेड़ के पास पहुंचते हैं तो बड़ी संख्या में एक साथ भिनभिनाते हुए उड़ते हैं. इस कीट के वयस्क और बच्चे दोनों ही पेड़ों की पत्तियों, मुलायम टहनियों और शाखाओं से बड़ी मात्रा में रस चूसते हैं. जिससे फूल सूख जाते हैं और फल कम बनते हैं. यही कारण है कि छोटे फल जल्द ही गिरने लगते हैं. ये कीट एक चिपचिपा पदार्थ उत्पन्न करते हैं जिस पर फफूंद की वृद्धि से आक्रमण होता है. जिससे पत्तियां पीली हो जाती हैं और फूल भी झड़ जाते हैं. फूलों में लगने वाले फल कमजोर होते हैं जिसके कारण हल्की हवा चलने पर ये फल गिर जाते हैं. मादा कीट पत्तियों की निचली सतह पर अंडे देती है जो तीन से पांच दिन में फूट जाते हैं और उनमें से बच्चे निकल आते हैं. बच्चे वयस्क कीड़ों के समान दिखते हैं लेकिन आकार में छोटे और पंखहीन होते हैं.
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इस कीट के नियंत्रण के लिए पुराने और घने पेड़ों की बेकार शाखाओं को काटकर हटा दें ताकि पेड़ के पास नमी की मात्रा कम हो जाए और पेड़ों को उचित मात्रा में रोशनी और हवा मिल सके। मंजर दिखने से पहले या जब मंजर दिखना शुरू हो जाए तब कीटनाशकों का छिड़काव करना बहुत जरूरी है। इसके लिए इमिडाक्लोप्रिड तरल दवा का 1 मि.ली. प्रति 4 लीटर पानी की दर से या वायमिथोक्मेज दानेदार दवा का (0. 008%) 1 ग्राम प्रति 3 लीटर पार्नी की दर से पहली बार छिड़काव करें. दूसरा छिड़काव मटर के दाने के बराबर फल आने पर एसीफेट दवा का आधा ग्राम प्रति लीटर पानी या एजाडिरेक्टीन 5 मि.ली. प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव करें. यदि तीसरे छिड़काव की आवश्यकता हो तो 15 दिनों के अन्तराल पर एसिफेट ½ ग्राम प्रति लीट पानी की दर से छिड़काव करें. फूल पेड़ में लगे रहने पर कोई भी कीटनाशी, दवा क छिड़काव न करें क्योंकि इससे फूलों में परागण में मदद करने वाले कीड़े भी मर सकते हैं और फलों पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है.
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