केला एक ऐसा फल है, जो देश के लगभग हर हिस्से में उगाया और पूरे साल खाया जाता है. फिलहाल केला अपने दाम की वजह से इन दिनों चर्चा में है, लेकिन जब इसके एक्सपोर्ट की बात आती है तब गुणवत्ता का विशेष ध्यान रखना पड़ता है. इसलिए उस केले की किस्म को ज्यादा वैल्यू मिलती है. असल में देश में केले की करीब तीन सौ किस्में हैं, लेकिन केले की कुछ किस्मों को ही विशेष सम्मान मिला हुआ है. इनमें सबसे अव्वल महाराष्ट्र का भुसावल केला है, जिसे जलगांव केला भी कहा जाता है, जो वर्ल्ड फेमस है. अपने स्वाद और विशेष पहचान के चलते भुसावल केले को जीआई टैग मिला हुआ है. आइए जानते हैं देश में केले की पूरी कहानी.
भुसावल जलगांव जिले का हिस्सा है. केला उत्पादन में महाराष्ट्र तीसरे स्थान पर है, लेकिन एक्सपोर्ट के मामले में नंबर वन है. क्योंकि यहां का केला बड़े पैमाने पर दुबई में एक्सपोर्ट हो रहा है. क्योंकि इसकी गुणवत्ता बहुत अच्छी है. ‘जलगांव केला’ अन्य केलों की तुलना में अधिक फाइबर और मिनरल युक्त होता है. इसी खासियत के चलते इसे 2016 में जीआई टैग दिया गया. यह टैग क्षेत्र विशेष के उत्पादों को दिया जाता है, जो उसकी विशेष भौगोलिक पहचान तय करते हैं. भुसावल केला यूं ही वर्ल्ड फेमस नहीं है. इसके अलवा महाराष्ट्र के सोलापुर जिले से भी बड़े पैमाने पर दुबई, इराक, जैसे देशों में एक्सपोर्ट होता है. अप्रैल और मई 2013 में सिर्फ 26 करोड़ रुपए के केले का एक्सपोर्ट हुआ था.अब यह बढ़कर अप्रैल और मई 2022 में रिकॉर्ड 213 करोड़ रुपए तक पहुंच गया है.
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केला एक महत्वपूर्ण एनर्जी बूस्टिंग फल है. साल 2021-22 के दौरान यहां लगभग 959000 हेक्टेयर में केले की खेती हुई थी, जिससे 35131000 टन से अधिक प्रोडक्शन हुआ. भारत दुनिया के प्रमुख केला उत्पादक देशों में से एक है. यहां वर्ल्ड का लगभग 25 प्रतिशत केला पैदा होता है.महाराष्ट्र का भुसावल पूरे देश में केला उत्पादन के लिए मशहूर है.
भारत दुनिया में पैदा होने वाले केले का अकेले 25 फीसदी केले का उत्पादन करता है. तो वहीं भारत में तकरीबन 300 किस्मों के केलों का उत्पादन किया जाता है, लेकिन इसमें से कुछ केलों को विशेष पहचान मिली हुई है. आइए जानते हैं कि केले की खास किस्मों के बारे में..
ड्वार्फ कैवेंडिश केले की एक उन्नत किस्म है और इसे अधिक उपज के लिए जाना जाता है. इसमें पनामा उक्ठा नामक रोग नहीं लगता. इसके पौधों की लंबाई कम होती है. एक घौंद का वजन औसतन 22-25 किलो तक होता है. जिसमें 160-170 फलियां आती हैं. एक फली का वजन औसतन 150-200 ग्राम तक होता है. फल पकने पर पीला और स्वादिष्ट लगता है.
यह किस्म काफी लोकप्रिय है. इसके पौधों की लंबाई ड्वार्फ कैवेंडिश से थोड़ी ज्यादा होती है. इसके एक घौंद का वजन 25-30 किलोग्राम होता है. इसका फल खूब मीठा होता है. इस किस्म के केले की फसल पनामा उकठा के प्रति प्रतिरोधी है.
इस प्रजाति के पेड़ की ऊंचाई 5 मीटर, मजबूत तना, मध्यम मोटा और गोल आकार होता है और इसका स्वाद मीठा और स्वादिष्ट होता है. यह प्रजाति इस रोग से ग्रस्त है. इस किस्म की खेती रत्नागिरी क्षेत्र में मिलती है.
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इस किस्म की ऊंचाई 4 से 5 मीटर होती है. फल बड़े होते हैं. इस किस्म के केले की छाल लाल और नारंगी रंग की होती है और फर घने होते हैं. साथ ही स्वाद मीठा होता है. प्रत्येक घौंद में 80 से 100 फल होते हैं. इसी तरह बनकेला भी काफी फेमस है. यह किस्म सब्जियों के लिए उपयोगी है. इस किस्म की खेती कोंकण क्षेत्र होती है.
इस किस्म के खानदेशी, भुसावल, वेंकेल, काबुली, मॉरीशस, राज्यपाल, लोटनम आदि नाम हैं. यह किस्म व्यापार की दृष्टि से महाराष्ट्र में सबसे खास है. महाराष्ट्र में केले के कुल क्षेत्रफल का लगभग 75 फीसदी भाग इसकी खेती के तहत है. बाजार में इसकी अच्छी मांग है. इसके फल की गुणवत्ता बहुत अच्छी है. यह नस्ल गर्म और शुष्क जलवायु के अनुकूल होती है. इस प्रजाति को हवा से कम नुकसान होता है.
इस किस्म की खेती ज्यादातर वसई क्षेत्र में की जाती है. इस प्रजाति की ऊंचाई अच्छी खासी होती है. इस किस्म की छाल बहुत मोटी होती है और फल कुंद होते हैं. यह किस्म टिकाऊ होती है. प्रत्येक घौंद में 150से 160 फल होते हैं. इसका वजन औसतन 28 से 30 किलोग्राम होता है. यह किस्म समुद्री जलवायु से प्रभावित होती है.
यह किस्म विशेष रूप से कोंकण क्षेत्र में पाई जाती है. तने का रंग लाल, लंबा पेड़, फल छोटा, पतला छिलका और स्वाद आम-मीठा और रंग पीला होता है. इस किस्म के घौंद में 200 से 225 फल लगते हैं. इनका वजन औसतन 20 से 22 किलोग्राम होता है. इस किस्म की खेती भारत में केले की अन्य किस्मों की तुलना में ज्यादा होती है.
यह भी महाराष्ट्र की फेमस किस्म है. इस किस्म के केले लंबे, पतले होते हैं. फल में बहुत छोटी और पतली छाल होती है. इसका तना मोटा होता है. प्रत्येक घौंद में करीब 180 फल होते हैं और इसका वजन 15 किलो तक होता है. इस किस्म की खेती ठाणे जिले में पाई जाती है. उत्पादन कम होता है.
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इस किस्म के केले को कई दूसरे नाम से भी जानते हैं. बौंथा, कारीबेल, बथीरा, कोठिया नाम से भी जाना जाता है. यह महाराष्ट्र के थाणे जिले में उगाई जाती है. इसकी छाल बहुत मोटी और पीली होती है. इसके फल के गुच्छों का वजन 18-22 किलोग्राम होता है, जिसमें औसतन 100-115 फल लगते हैं.
केले की यह किस्म कोंकण क्षेत्र में बड़ी संख्या में ज्यादा पाई जाती है. इस किस्म के पेड़ की ऊंचाई अच्छी मीटर है. फल बड़े और लंबे होते हैं. इनका वजन 12 से 13 किलो होता है. यानी उत्पादन कम है. इस किस्म के कच्चे फल पकाने और खाने के लिए उपयुक्त होते हैं.
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