जामुन को ब्लैक प्लम या भारतीय ब्लैक बैरी नाम से भी जाना जाता है. यह सेहत के लिए बहुत गुणकारी है, खासकर शुगर रोगियों के लिए. इसका उत्पत्ति स्थान भारत है. भारत में इसकी जंगली प्रजातियां भी मिलती हैं. देश में दक्षिण में मद्रास से लेकर उत्तर में गंगा-सिंधु के मैदानों तक इसका उत्पादन किया जाता है. इसके वृक्ष हिमालय के निकट तराई प्रदेश में लगभग 3000 फीट की ऊंचाई तक तथा कुमाऊं की पहाड़ियों पर 5000 फीट की ऊंचाई तक देखे जा सकते हैं. इसकी खेती से किसान अच्छी कमाई कर सकते हैं, लेकिन कई बार जानकारी के अभाव में किसान जामुन के पेड़ में सही खाद नहीं डाल पाते, जिसकी वजह से उन्हें अच्छा उत्पादन नहीं मिल पाता है. ऐसे में जानिए जामुन के पेड़ में कौन सी खाद डालें और इसके फूलों को तेज धूप से कैसे बचाएं कि उत्पादन अच्छा हो.
कृषि वैज्ञानिक जितेन्द्र सिंह, योगेन्द्र कुमार शर्मा, प्रेरक भटनागर, लाधूराम और योगेन्द्र सिंह के अनुसार खाद एवं उर्वरक की मात्रा को जनवरी-फरवरी में फूल आने से दो माह पूर्व थालों में डालकर 20-30 सें.मी. गुड़ाई कर मिट्टी में अच्छी तरह मिला देना चाहिए. जामुन के पेड़ों में गर्मी में फूल आते हैं और बाद में ये पक जाते हैं. गर्मी में पौधे के तने को सूर्य की तेज धूप से बचाने के लिए इसकी पुताई आवश्यक है. इस कार्य के लिए एक भाग बिना बुझा चूना एवं एक भाग नीला थोथा और 20 लीटर पानी पुताई के लिए पर्याप्त होता है.
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बाग लगाने के लिए गड्ढा खोदने का कार्य मई-जून में करना चाहिए. पौधरोपण के लिए 2 फुट लम्बा, 2 फुट चौड़ा एवं 2 फुट गहरा गड्ढा खोदना चाहिए. गड्ढा खोदने के बाद इसे तपन के लिए 15 दिन धूप में खुला छोड़ दिया जाता है. इससे मिट्टी के हानिकारक सूक्ष्मजीव समाप्त हो जाते हैं. गड्ढा भरने के लिए प्रति गड्ढा 20-30 किलोग्राम गड्ढे के ऊपरी भाग की उपजाऊ मिट्टी, 20 किलोग्राम सड़ी हुई गोबर की खाद एवं 50 ग्रा. क्यूनोलफॉस कीटनाशी धूल का प्रयोग करें. गड्ढों को जमीन से 5 सें.मी. ऊपर तक भर देना चाहिए. इसके बाद गड्ढे के बीच में खूंटी गाड़कर छोड़ देनी चाहिए. बारिश शुरू होने पर इस गड्ढे में जुलाई के महीने में पौध रोपण करना चाहिए.
पुताई हेतु घोल बनाने के लिये 1 किलो चूने को 10 लीटर पानी में तथा 1 किलो नीला थोथा 10 लीटर पानी में अलग-अलग घोलकर दूसरे दिन दोनों घोल मिलाकर पुताई के लिए तैयार कर लिया जाता है. पुताई करने वाले ब्रश से तने के 2 फुट ऊंचाई तक पुताई कर दी जाती है. ऐसा करने से तना गर्मी में झुलसने तथा छाल भक्षक कीट के प्रकोप से भी बच जाता है.
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