आजकल अधिकतर किसान बीटी कपास लगा रहे हैं. जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति (GEAC) द्वारा लगभग बी.टी. कॉटन की लगभग 250 किस्में अप्रूव्ड हैं. हमारे प्रदेश में ये सभी किस्में लगायी जा रही हैं. बीटी कपास में बीजी-1 एवं बीजी-2 दो प्रकार की किस्में आती हैं. बीजी-1 में तीन प्रकार के डेन्डू छेदक इल्लियां, चितकबरी इल्ली, गुलाबी डेन्डू छेदक एवं अमेरिकन डेन्डू छेदक के लिए प्रतिरोधकता पायी जाती है. जबकि बीजी-2 प्रजाति इनके अतिरिक्त तम्बाकू की इल्ली की भी रोक करती हैं. मध्य प्रदेश में आमतौर पर तम्बाकू की इल्ली कपास पर नहीं देखी गई, इसलिए बीजी.-1 किस्में ही लगाना ही पर्याप्त है. कपास एक कॅमर्शियल क्रॉप है. इसकी खेती से किसानों को अच्छा फायदा मिल सकता है लेकिन उसके लिए खादों का विशेष ध्यान रखने की जरूरत है.
कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि यदि पर्याप्त सिंचाई सुविधा उपलब्ध हैं तो कपास की फसल को मई माह में ही लगाया जा सकता है. सिंचाई की पर्याप्त उपलब्धता न होने पर मॉनसून की उपयुक्त वर्षा होते ही कपास की फसल लगाएं. कपास की फसल को मिट्टी अच्छी भूरभूरी तैयार कर लगाना चाहिए. सामान्य तौर पर उन्नत किस्मों का 2.5 से 3.0 किग्रा. बीज (रेशाविहीन/डिलिन्टेड) तथा संकर एवं बीटी किस्मों का 1.0 किग्रा. बीज (रेशाविहीन) प्रति हेक्टेयर की बुवाई के लिए उपयुक्त होता है. उन्नत किस्मों में चैफुली 45-60 सेमी. पर लगायी जाती हैं. संकर एवं बीटी में कतार से कतार की दूरी 90 से 120 एवं पौधे से पौधे के बीच की दूरी 60 से 90 सेमी रखी जाती है.
ये भी पढ़ें: नासिक की किसान ललिता अपने बच्चों को इस वजह से खेती-किसानी से रखना चाहती हैं दूर
कपास की सघन खेती में कतार से कतार 45 सेमी एवं पौधे से पौधे 15 सेमी पर लगाए जाते हैं. इस प्रकार एक हेक्टेयर में 1,48,000 पौधे लगते हैं. बीज दर 6 से 8 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर रखी जाती है. इससे 25 से 50 प्रतिशत की उपज में वृद्धि होती है. इसके लिए उपयुक्त किस्में एनएच 651 (2003), सूरज (2002), पीकेवी 081 (1989), एलआरके 51 (1992) , एनएचएच 48 बीटी (2013) जवाहर ताप्ती, जेके 4 और जेके 5 के नाम लिए जा सकते हैं.
उन्नत प्रजाति के कपास में प्रति हेक्टेयर 80-120 नाइट्रोजन की जरूरत पड़ेगी. इसी तरह 40-60 किलो फास्फोरस, 20-30 किलो पोटाश और 25 किलो गंधक की जरूरत होगी. जबकि संकर किस्म के कपास की खेती में प्रति हेक्टेयर 150 किलो नाइट्रोजन, 75 किलो फास्फोरस, 40 किलो पोटाश और 25 किलो गंधक की जरूर है. उपलब्ध होने पर अच्छी तरह से पकी हुई गोबर की खाद 7 से 10 टन प्रति हेक्टेयर अवश्य देना चाहिए.
बुवाई के समय एक हेक्टेयर के लिए लगने वाले बीज को 500 ग्राम एजोस्पाइरिलम एवं 500 ग्राम पी.एस.बी. से भी उपचारित कर सकते हैं. जिससे 20 किग्रा नाइट्रोजन की बचत होगी. बोनी के बाद उर्वरक को कालम पद्धति से देना चाहिए. इस पद्धति से पौधे के घेरे पर 15 सेमी गहरे गड्ढे सब्बल बनाकर उनमें प्रति पौधे को दिया जाने वाला उर्वरक डालते हैं व मिट्टी से उसे बंद कर देते हैं.
ये भी पढ़ें: Onion Export Ban: जारी रहेगा प्याज एक्सपोर्ट बैन, लोकसभा चुनाव के बीच केंद्र सरकार ने किसानों को दिया बड़ा झटका
Copyright©2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today