आलू और टमाटर के साथ-साथ प्याज भी एक अति महत्वपूर्ण सब्जी फसल है. इसकी मांग बाजार में साल भर बनी रहती है. ऐसे में किसानों को इसकी खेती से अच्छा मुनाफा मिलता है. किसान अगर इसकी खेती उन्नत तकनीकियों जैसे कि एकीकृत या समन्वित पोषक तत्व प्रबंधन विधि को अपनाकर करेंगे तो अच्छी उपज के साथ-साथ अधिक आय भी प्राप्त कर सकेंगे. प्याज एक बहुपयोगी सब्जी फसल है. इसका उपयोग हरी और पकी दोनों अवस्था में सब्जी, कच्चे सलाद, मसालों, सूप, चटनी तथा दाल को फ्राई करने इत्यादि में किया जाता है. इसमें पौष्टिक गुण जैसे कि फॉस्फोरस, कैल्शियम, कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन और विटामिन सी प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं. हालांकि इसकी खेती तभी फायदे वाली साबित हो सकती है जब इसमें खाद का अच्छा प्रबंधन हो, जब इसकी गांठें बड़ी और चमकदार हों.
कृषि वैज्ञानिक नीरज सिंह, प्रशांत कुमार, विजय कुमार और अंजना खोलिया बताते हैं कि रासायनिक खादों के अधिक प्रयोग से मृदा प्रदूषण, जल प्रदूषण व वायु प्रदूषण होता है. इसका सीधा प्रभाव हमारे एवं वातावरण के स्वास्थ्य पर पड़ रहा है. अब तो रासायनिक खादों के अत्यधिक प्रयोग के कारण उपज में स्थिरता आ चुकी है. जबकि कार्बनिक खादों के प्रयोग से न केवल आवश्यक 17 पोषक तत्वों की पूर्ति होती है, बल्कि मिट्टी की भौतिक व रासायनिक गुणों में वांछित सुधार भी होता है. कार्बनिक खाद के साथ-साथ रासायनिक खाद के प्रयोग से अधिक से अधिक गुणवत्तापूर्ण उत्पादन ले सकते हैं और वातावरण के स्वास्थ्य को भी बनाए रख सकते हैं.
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कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार कार्बनिक खादों में गोबर की खाद 20-25 टन प्रति हेक्टेयर की दर से बुवाई से 10-15 दिनों पूर्व ही खेत में मिला देनी चाहिए. ऐसा करने से फसल को रोपाई के बाद पोषक तत्व मिलने शुरू हो जाते हैं. वर्मीकम्पोस्ट को 5 टन प्रति हेक्टेयर की दर से रोपाई के समय या तुरंत पहले ही खेत में देना चाहिए. रबी प्याज में नाइट्रोजन (अमोनियम सल्फेट या यूरिया), फॉस्फोरस (सिंगल सुपर फॉस्फेट) और पोटाश (म्यूरेट ऑफ पोटाश) को 150:80:100 किग्रा/हेक्टेयर की दर से क्रमवार देना चाहिए. इसमें नाइट्रोजन की 1/2 मात्रा और फॉस्फोरस तथा पोटाश की पूरी मात्रा रोपाई के समय ही दे देनी चाहिए. आधी नाइट्रोजन की मात्रा रोपाई के 30 और 45 दिनों बाद देनी चाहिए.
नाइट्रोजन के लिए हो सके तो अमोनियम सल्फेट उर्वरक का उपयोग करना चाहिए.अगर अमोनियम सल्फेट न मिले तो आवश्यक रूप से फॉस्फोरस (सिंगल सुपर फॉस्फेट) की ही प्रयोग करना चाहिए जिससे कि फसल की सल्फर की जरूरत भी पूरी हो जाए.नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटाश के बाद गंधक चौथा महत्वपूर्ण तत्व होता है जो कई विटामिनों के उपापचय में भी सहायक होता है और मृदा में नाइट्रोजन संतुलन में भी योगदान रखता है.प्याज की गुणवत्तापूर्ण उपज के लिए भी सल्फर बहुत जरूरी होता है क्योंकि प्याज में पाई जाने वाली गंध सल्फर यौगिक डाई अलाइल डाई सल्फाइड के कारण होती है. इसलिए पोषण प्रबंधन में कार्बनिक और अकार्बनिक खाद के साथ-साथ गंधक का भी प्रयोग करना चाहिए.
प्याज में खरपतवार निकालना सबसे मुख्य प्रक्रिया होती है. यह एक उथली जड़ वाली फसल है. खेत में उथली कर्षण क्रियाएं करनी चाहिए. खरपतवार नियंत्रण के लिए खरपतवारनाशी दवा का प्रयोग किया जा सकता है. स्टाम्प का 3.3 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से 1000 लीटर पानी में घोलकर रोपाई के 3-4 दिनों बाद छिड़काव करते हैं. इसके लगभग 6 सप्ताह बाद एक बार खुरपी से भी खरपतवार निकाल देना चाहिए. इससे ज्यादा से ज्यादा खरपतवार नष्ट हो जाते हैं.
प्याज के कंदों को ऊपर से 2-3 सें.मी. छोड़कर काट देना चाहिए. फिर उनको भली-भांति छायादार स्थान पर सुखाना चाहिए. इससे कमजोर, मुलायम छिलके मजबूत हो जाते हैं और उनकी भंडारण क्षमता बढ़ जाती है. सुखाने के बाद हवादार कमरों में फैलाकर रखना चाहिए.भंडारण के पूर्व कटे व रोगी कंदों को निकाल देना चाहिए. प्रत्येक सप्ताह कटे, गले व सड़े कंदों को निकालते रहना चाहिए.
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