भारत में जलसंकट एक गंभीर समस्या है. महाराष्ट्र के मराठवाड़ा, बुन्देलखंड, राजस्थान समेत देश के कई हिस्सों में सूखा पड़ने की वजह से हर साल फसलें चौपट होती हैं. कई जगहों पर पेयजल का भी संकट है. कुल मिलाकर हालात इशारा कर रहे हैं कि आने वाले समय में जलसंकट और विकराल रूप लेगा. देश की बढ़ती आबादी के लिए पेयजल के अलावा बड़ी मात्रा में खेती के लिए पानी की जरूरत है. ऐसे में पानी के बेहतर प्रबंधन की सख्त आवश्यकता है, ताकि भविष्य में पानी के संकट का मुकाबला किया जा सके. खेती में जल संकट का सामना करने के लिए हाइड्रोजेल महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है.
कृषि वैज्ञानिक आदित्य कुमार सिंह और नरेन्द्र सिंह का कहना है कि अगर खेती को बचाना है तो ऐसे विकल्पों पर विचार करना होगा, जिनमें सिंचाई में पानी की बर्बादी न हो. इस पूरी कवायद में हाइड्रोजेल महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है. इसकी मदद से बारिश के पानी का भंडारण करके तब उपयोग में लाया जा सकता है, जब फसलों को पानी की सख्त जरूरत होती है. अब हमें सिंचाई में ऐसी पद्धति का इस्तेमाल करना होगा, जिससे पानी का बेहतर से बेहतर इस्तेमाल किया जा सके. क्योंकि देश में 60 प्रतिशत खेती बारिश के पानी पर निर्भर है.
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कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार हाइड्रोजेल एक पॉलिमर है, जिसमें पानी को सोख लेने की अकूत क्षमता होती है. यह पानी में घुलता भी नहीं है. हाइड्रोजेल बायोडिग्रेडेबल होता है. इसके कारण इससे प्रदूषण का खतरा भी नहीं रहता है. हाइड्रोजेल के इस्तेमाल से पानी को खेत में ही भंडारित कर रखा जा सकता है. जब फसल को पानी को जरूरत होती है और अधिक समय तक बारिश नहीं होती है, तब हाइड्रोजेल से निकलने वाला पानी फसलों के काम आता है.
इसमें चार गुना पानी सोख लेने की क्षमता होती है. एक एकड़ खेत में महज 1 से 2 किलोग्राम हाइड्रोजेल ही पर्याप्त होता है. यह खेत की उर्वरा शक्ति को जरा भी नुकसान नहीं पहुंचाता है और 40 से 50 डिग्री सेल्सियस तापमान में भी खराब नहीं होता है. इसलिए इसका इस्तेमाल ऐसे क्षेत्रों में किया जा सकता है, जहां सूखा पड़ता है.
कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार हाइड्रोजेल के कण बारिश होने पर या सिंचाई के समय खेत में जाने वाले पानी को सोख लेते हैं. जब बारिश नहीं होती है, तो इनसे खुद-ब-खुद पानी रिसता है, जिससे फसलों को पानी मिल जाता है. यदि फिर बारिश हो, तो हाइड्रोजेल दोबारा पानी को सोख लेता है और जरूरत के अनुसार फिर उसमें से पानी का रिसाव होने लगता है. खेतों में हाइड्रोजेल का एक बार इस्तेमाल किया जाए तो वह 2 से 5 वर्षों तक काम करता है. इसके बाद ही यह नष्ट होता है. यह नष्ट होने पर खेतों की उर्वरा शक्ति पर कोई नकारात्मक असर नहीं डालता है.
जब मिट्टी में नमी की मात्रा कम होने लगती है, तब हाइड्रोजेल का कार्य शुरू होता है. यह अपने कुल वजन का 350-400 प्रतिशत ज्यादा पानी अवशोषित कर सकता है. हाइड्रोजेल मिट्टी में प्रथम इस्तेमाल के बाद 2-5 वर्षों तक के लिए कारगर होता है. यह समय के साथ विघटित भी हो जाता है. इससे मिट्टी के प्रदूषित होने की भी कोई आशंका नहीं होती है. हाइड्रोजेल 40-50 डिग्री सेल्सियस के तापमान में सुगमता से कार्य करता है.
सामान्य तौर पर एक एकड़ के लिए 1.5 से 2.0 किलोग्राम हाइड्रोजेल के उपयोग की सलाह दी जाती है, लेकिन यह स्थान, मिट्टी एवं जलवायु पर भी निर्भर करता है. सर्वोत्तम परिणाम के लिए हाइड्रोजेल को बुआई के समय प्रयोग करना चाहिए. यह बेहतर अंकुरण और जड़ फैलाव में मदद करता है.
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