कश्मीर में पैदा होने वाली केसर की खेती (एयरोफोनिक तकनीक से) मैनपुरी में 63 वर्षीय गृहिणी ने सफलतापूर्वक कर सबको चौंका दिया है. सोशल मीडिया पर कुछ जानकारी जुटाने के बाद इस महिला ने केसर की खेती में सफलता हासिल की. उनके इस प्रयोग में उनके परिवार वालों का भी भरपूर सहयोग रहा. उनके इस सराहनीय प्रयास की काफी चर्चा हो रही है. डीएम मैनपुरी ने खुद जाकर इसे देखा और उनके सफल प्रयोग की सराहना की. अगर हम केसर की खेती की बात करें तो हर किसी के दिमाग में केवल कश्मीर ही आता है.
क्योंकि केसर की खेती केवल ठंडे इलाकों में ही संभव है. और मौसम के अनुकूल न होने पर भी केसर की खेती केवल कश्मीर में ही संभव है. लेकिन जब कोई कुछ अलग करने की ठान लेता है तो एक दिन उसे सफलता जरूर मिलती है. उत्तर प्रदेश के मैनपुरी जिले में अब केसर की खेती सफलतापूर्वक की जा रही है. केसर की खेती का ये सफल कारनामा 63 साल की शुभा भटनागर ने किया है.
दृढ़ इच्छाशक्ति के दम पर शुभा भटनागर ने मैनपुरी जैसे शहर में पांच सौ पचास वर्ग फुट के वातानुकूलित हॉल में बिना मिट्टी और पानी (एयरोफोनिक तकनीक) के केसर की खेती शुरू की और उनकी कड़ी मेहनत और समर्पण ने उनके केसर की खेती के प्रयोग को सफल बनाया. शुभा भटनागर का कहना है कि उन्हें कुछ अलग करना था. केसर की खेती का विचार उनके मन में इंटरनेट पर एक वीडियो देखकर आया. इसके लिए उन्होंने कश्मीर के पंपोर से दो हजार किलोग्राम केसर के बीज खरीदे और अगस्त महीने में केसर के बीज लगाए. एरोफोनिक तकनीक से लकड़ी की ट्रे में बुआई की और अब केसर की फसल नवंबर महीने में तैयार हो जाती है.
शुभा भटनागर बताती हैं कि केसर की खेती में करीब 25 लाख रुपये की लागत आती है. शुभा जी का यह भी कहना है कि वह केसर को बाहर निर्यात नहीं करेंगी, उनके अपने देश में केसर उत्पादन की भारी कमी है. जिसे वह पूरा करने का प्रयास करेंगी. शुभा भटनागर भी कहती हैं कि केसर की इस सफल खेती से कई ग्रामीण महिलाओं को मदद मिलेगी और रोजगार भी मिलेगा. उनकी सफलता में उनके बेटे अंकित भटनागर और बहू मंजरी भटनागर का भी बहुत योगदान है. शुभा भटनागर के केसर की खेती के सफल प्रयोग को देखने के लिए दूर-दूर से लोग आ रहे हैं. जिलाधिकारी मैनपुरी अविनाश कृष्ण सिंह ने केसर की खेती के सफल प्रयोग की सराहना की है.
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