आलू की खेती में इन 5 बातों का रख लें ध्यान, कम खर्च में मिलेगी बेस्ट क्वालिटी की उपज

आलू की खेती में इन 5 बातों का रख लें ध्यान, कम खर्च में मिलेगी बेस्ट क्वालिटी की उपज

जो किसान अक्टूबर महीने में आलू की खेती कर चुके हैं ये खबर उनके लिए है. दरअसल, आलू की बुवाई के 30 से 45 दिनों बाद फसल में कुछ बातों का खास ध्यान रखना बेहद जरूरी होता है. इन बातों का ध्यान रखकर आप आलू की बेहतर उपज पा सकते हैं.

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आलू की खेती में इन 5 बातों का रख लें ध्यान, कम खर्च में मिलेगी बेस्ट क्वालिटी की उपजआलू की खेती

देश के कई राज्यों में रबी की मुख्य फसल आलू की खेती की जा रही है. वहीं, कई राज्यों में किसान इसकी अगेती किस्मों की बुवाई अक्टूबर महीने में कर चुके हैं. लेकिन, अगर किसान अच्छी उपज चाहते हैं तो कुछ बातों का ध्यान रखना बेहद जरूरी होता है. खासतौर से, आलू की फसल के 30 से 45 दिनों की अवस्था में विशेष ध्यान देने की जरूरत होती है क्योंकि यह समय आलू की फसल की विकास की अवस्था होती है. इतने दिनों के भीतर उसमें कीट और रोगों से नियंत्रण रखें और कौन सी खाद कितनी मात्रा में डालें कि उपज दोगुनी हो जाए, इस बारे में जान लेते हैं.

किसान सही उर्वरक का करें चयन

आलू की फसल के लिए सही खाद का चयन करते वक्त सबसे पहले यह ध्यान रखना चाहिए कि मिट्टी की अवस्था और फसल की आवश्यकता के अनुसार खाद का चुनाव किया जाए. आलू की फसल को नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश की जरूरत होती है, क्योंकि ये पौधों के विकास के लिए बेहद महत्वपूर्ण होते हैं. आलू की फसल में जैविक खादों की भी अहम भूमिका रहती है. विशेष रूप से गोबर की खाद या कंपोस्ट का उपयोग सही मात्रा और समय पर करने से आलू की फसल का विकास तेज होता है और उत्पादन में वृद्धि होती है.

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फसल में खाद का क्या है काम

नाइट्रोजन आलू की हरी पत्तियों और तनों के विकास के लिए जरूरी होता है. इस तत्व का सही मात्रा में प्रयोग करने से आलू की पत्तियां स्वस्थ रहती हैं और फसल को पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन मिलता है. अगर हम फास्फोरस की बात करें तो फास्फोरस आलू की जड़ के विकास के लिए जरूरी होता है. इससे आलू की जड़ों में मजबूती आती है और आलू का आकार भी बड़ा होता है. वहीं, आलू के लिए पोटाश की भूमिका भी अत्यधिक महत्वपूर्ण होती है. पोटाश आलू के विकास में मदद करता है, खासतौर से आलू की क्वालिटी को बेहतर बनाने में मदद करता है.

आलू में कीट और रोग का खतरा

आलू की फसल में रोग और कीट का हमला आम बात है, जो फसल की गुणवत्ता को खराब कर सकता है. दुनिया भर में लगभग सात जीवाणु जनित रोग आलू को प्रभावित करते हैं और विशेष रूप से कंदों को गंभीर नुकसान पहुंचाते हैं, जो पौधे का आर्थिक रूप से सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है. इसमें जीवाणु जनित विल्ट और बैक लेग को सबसे महत्वपूर्ण रोग माना जाता है. इसके अलावा, झुलसा रोग, भूरा सड़न, सामान्य पापड़ी और पूर्ण पापड़ी रोग भी फसल को काफी प्रभावित कर सकते हैं.  

फसल में कीट और रोग से नियंत्रण

आलू की फसल में जब रोग या कीट लग जाए उस अवस्था में फसल पर स्प्रे करके को बचाया जा सकता है. दरअसल, फसल में कीटों की रोकथाम के लिए 15 मिलीलीटर किनॉलफॉस को एक लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें. आलू की फसल को अन्य रोगों से बचने के लिए आप टेबुकाजोल 1 मिलीलीटर दवा को एक लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें. वहीं, झुलसा रोग के अलावा, जिंक की कमी होने पर किसानों को अपने खेतों में सिलेक्टेड जिंक का छिड़काव करना चाहिए.

खेती में सिंचाई का रखें ध्यान

आलू की फसल को सही मात्रा में पानी की आवश्यकता होती है, ताकि पौधों का विकास सही तरीके से हो सके. आलू के कंद के अच्छे विकास के लिए मिट्टी की नमी का बनाए रखना महत्वपूर्ण होता है. वहीं, 30-45 दिन के बाद आलू को ज्यादा पानी देने की जरूरत नहीं होती है क्योंकि इस समय आलू के कंद का आकार बढ़ने लगता है. ज्यादा पानी देने से आलू के कंद सड़ सकते हैं और फसल को नुकसान पहुंचा सकते हैं.

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