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ये एक किलो चारा पशुओं का कई लीटर दूध बढ़ा सकता है, छोटे गड्ढे में भी कर सकते हैं इसकी खेती

ये एक किलो चारा पशुओं का कई लीटर दूध बढ़ा सकता है, छोटे गड्ढे में भी कर सकते हैं इसकी खेती

भूमिहीन, सीमान्त, छोटे तथा महिला पशुपालक जिनके पास हरा चारा उत्पादन के लिए पर्याप्त जमीन और संसाधन उपलब्ध नहीं होते हैं. ऐसे किसान आसानी से एक सीमित क्षेत्र में, न्यूनतम संसाधनों तथा कम लागत से अजोला की खेती कर सकते हैं. 

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जानिए अजोला की खेती के बारे में जानिए अजोला की खेती के बारे में

देश के कई राज्यों में पशुओं के ल‍िए पौष्ट‍िक चारे की भारी कमी देखी जा रही है. इसकी पूर्त‍ि के ल‍िए काफी लोग अजोला को व‍िकल्प के रूप में अपना रहे हैं. यह प्रोटीन और खनिज लवण से भरपूर पोषक तत्व है. अजोला एक तेजी से वृद्धि करने वाला जलीय फर्न है. कृष‍ि वैज्ञान‍िकों एमबी रेड्डी, अर्चना रानी, एके वर्मा और राकेश पांडे ने बताया क‍ि इसकी पत्तियों पर एनाबीना नोस्टोका नामक साइनोबैक्टीरियम सहजीवी के रूप में रहते हुए वायुमंडलीय नाइट्रोजन स्थिरीकरण करता है. अजोला की उपयोगिता डेरी, मुर्गीपालन तथा बत्तखपालन में प्रोटीन समृद्ध अनुपूरक वैकल्पिक पशु आहार के रूप में बढ़ रही है. 

भूमिहीन, सीमान्त, छोटे तथा महिला पशुपालक जिनके पास हरा चारा उत्पादन के लिए पर्याप्त जमीन और संसाधन उपलब्ध नहीं होते हैं. ऐसे किसान आसानी से एक सीमित क्षेत्र में, न्यूनतम संसाधनों तथा कम लागत से अजोला की खेती कर सकते हैं. इससे पशु की वृद्धि, उत्पादकता तथा दुग्ध उत्पादन में सीमित लागत पर अधिक लाभ प्राप्त किया जा सकता है. इसका एक क‍िलो चारा भी पशुओं में दूध उत्पादन बढ़ा सकता है. इसके साथ ही इसके प्रयोग से पशु आहार से निर्भरता को 15-20 प्रतिशत तक कम किया जा सकता है. 

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अजोला की वैज्ञानिक खेती

इसकी खेती कम उत्पादन सामग्री तथा सीमित लागत में पूर्ण से अर्द्ध छायादार स्थानों (100-50 प्रतिशत छाया) पर सफलतापूर्वक की जाती है. इसकी खेती के लिए 6.0-8.0 पी-एच का 30-35 सें.मी. गहराई तक भरा हुआ पानी आवश्यक होता है. अच्छी वृद्धि तथा बायोमास उत्पादन के लिए 18-28 डिग्री सेल्सियस (64-820 फारेनहाइट) तापमान तथा सापेक्षिक आर्द्रता 85-90 प्रतिशत अनुकूलतम होती हैं. ध्यान रहे कि 37 डिग्री सेल्सियस से अधिक तापमान अजोला की अच्छी वृद्धि के लिए हानिकारक होता है. अजोला सभी पोषक तत्व, वायु तथा जल से शोषित करता है, परंतु फॉस्फोरस को बाह्य स्रोत (सिंगल सुपर फॉस्फेट) से ही देना पड़ता है. 

अजोला की उत्पादन तकनीक

छोटे पशुपालकों के लिये 8×4×1 घन फीट के गड्ढे से 1.5-2.0 किलोग्राम अजोला प्रतिदिन प्राप्त होता है. चयनित क्षेत्र थोड़ा ऊंचाई पर, साफ-सुथरा तथा समतल होना चाहिए, जिससे बरसात का पानी गड्ढे में न जाए. गड्ढे की दीवारें ईंटों की या कच्चे गड्ढे के ऊपर मजबूत मेड़ के रूप में होनी चाहिए. गड्ढे की भीतरी सतह में प्लास्टिक शीट बिछाकर बाहर की तरफ उसे ईंटों या मजबूत मिट्टी की मेड़ से दबा देना चाहिए. गड्ढे की सतह पर 80-100 क‍िलोग्राम उपजाऊ मिट्टी को छलनी से छानकर, 5-7 क‍िलोग्राम ताजा गोबर तथा 10-15 लीटर पानी की परत बिछा देनी चाहिए. इसमें 18-20 सेमी पानी भरकर 2 क‍िलोग्राम ताजा अजोला कल्चर फैला देना चाहिए. गड्ढेमें पत्तियां, कूड़ा आदि गिरने से बचाने के लिये जाल से ढक दें. 

अजोला की जरूरत क्यों 

कृष‍ि वैज्ञान‍िकों का कहना है क‍ि जनसंख्या वृद्धि के साथ-साथ दूध, दुग्ध उत्पादों तथा मांस की बढ़ती मांग से पशुपालन पर दबाव अत्यधिक बढ़ता जा रहा है. देश में कृषि के तहत पूरे क्षेत्रफल के मात्र 4.9 प्रतिशत क्षेत्रफल (9.13 मिलियन हेक्टेयर) में ही चारा उत्पादन किया जाता है. देश में हरे चारे, शुष्क चारे तथा दाना मिश्रण की आवश्यकता तथा उपलब्धता में काफी कमी है. इसल‍िए पशुओं की अच्छी वृद्धि तथा उत्पादकता को बढ़ाने के लिए वैकल्पिक, किफायती तथा वर्ष भर उपलब्धता वाले चारा स्रोतों को विकसित किया जाना चाहिए. अजोला अच्छे प्रोटीन से भरपूर चारा है.

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