देश की बढ़ती हुई जनसंख्या की खाद्यान मांग को पूरा करना एक बहुत बड़ी चुनौती बनती जा रही है. दरअसल जिस प्रकार मनुष्य और जानवरों को संतुलित आहार की आवश्यकता होती है, उसी प्रकार फसलों के लिए भी संतुलित आहार (पोषक तत्वों) की आवश्यकता होती है. इसके लिए खेत की मिट्टी का स्वस्थ होना बहुत जरूरी है क्योंकि मिट्टी की जांच से ही पता चलता है कि भूमि में कौन सा पोषक तत्व उचित, अधिक या कम मात्रा में है. वहीं खेती में बढ़िया उत्पादन के लिए भी मिट्टी की जांच कराना बहुत जरूरी है. ऐसे में आइए मृदा जांच के लिए इन चार विधियों को जान लें.
1. किसान अपने खेत में मिट्टी की जांच के लिए पहली विधि में एक एकड़ क्षेत्र में लगभग 8 से 10 जगहों से V आकार के 6 से 9 इंच गहरे गड्ढे बनाएं. इसके बाद खुरपी की मदद से V आकार के किनारों से 1 से 2 सेमी मोटी परत को खर्च कर मिट्टी को एक साफ थैले में एकत्रित कर लें.
2. इसके बाद किसान सभी 8 से 10 जगह से प्राप्त नमूने यानी मिट्टी को एकत्रित करके उसे मिला लें. फिर इसमें मौजूद कंकड़, पत्थर, घास, पत्ती आदि को निकाल लें.
3. उसके बाद मिट्टी की ढेर को फर्श पर वृत्ताकार बिछाकर उसे चार हिस्सों में बांट लें. फिर दो आमने सामने के हिस्सों में रख लें और बचे हुए दो हिस्सों को फेंक दें.
4. इस तरह से तैयार मिट्टी के नमूनों को छाया में सुखाकर फिर उसको थैले में भरकर मिट्टी के नमूने में एक पेज पर किसान का नाम, पिता का नाम, गांव का नाम, खाता नंबर, खसरा नंबर, पहले उपजाई गई फसल, आगे कौन सी फसल लगानी है उसकी जानकारी और साथ में मिट्टी के नमूना लेने का उद्देश्य लिखिए,.इसके बाद उस थैले को प्रयोगशाला में भेज दें.
मिट्टी जांच में मिट्टी के पीएच, कार्बन, नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश, आयरन और जिंक का प्रतिशत, टेस्ट कर उसके अनुसार खाद-फर्टिलाइजर और उसकी मात्रा की सिफारिश की जाती है. मिट्टी जांच की प्रक्रिया में खेतों से मिट्टी के सही नमूने लेने से लेकर मिट्टी के नमूने को स्वायल टेस्ट लैब तक सही तरीके से पहुंचाना होता है. इस काम को बड़ी सावधानी पूर्वक निपटाना चाहिए क्योंकि अगर आपने मिट्टी का गलत नमूना लिया है तो परिणाम भी गलत मिलेंगे.
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