देश में रबी फसल का सीजन चल रहा है और इस सीजन की मुख्य तिलहन फसल अब तैयार होने को है. इस बीच मौसम में भी काफी उतार चढ़ाव देखने को मिल रहा है. ऐसे में सरसों की फसलों को नुकसान हो सकता है. किसानों को इस नुकसान से बचाने और अच्छी पैदावार बढ़ाने के लिए हरियाणा कृषि विभाग की ओर से किसानों के लिए सलाह जारी की गई है. दरअसल, सरसों में अब फूल आने शुरू हो गए हैं. ऐसे में उसमें कीट का खतरा मंडरा रहा है. इसे लेकर किसान थोड़े चिंतित दिख रहे हैं क्योंकि इस बार लगातार पड़ रही ठंड और शीतलहर के बाद बढ़ते हुए तापमान से फसलों में सफेद रतुआ बीमारी के लक्षण देखे जा रहे हैं.
साथ ही चेपा का भी प्रकोप फसलों में तेजी से बढ़ रहा है. वहीं, अगर किसान फसलों में लगने वाले कीट से बचाने का प्रयास नहीं करेंगे तो नुकसान के साथ-साथ उत्पादन में भी भारी कमी आ सकती है. ऐसे में कृषि विभाग ने किसानों को प्रबंधन करने की सलाह दी है. आइए जानते हैं कैसे करें प्रबंधन.
व्हाइट रस्ट, जिसे हिंदी में सफेद रतुआ कहते हैं, सरसों में फंगस के कारण होने वाली बीमारी है. इसके लक्षण शुरू में पत्तों पर नजर आते हैं. पत्तों के निचले भाग में सफेद धब्बे होने लगते हैं. उसके बाद सफेद पाउडर सा बन जाता है, जो फसलों के लिए काफी हानिकारक होता है. इस प्रकार के लक्षण दिखाई देने पर समय रहते उपाय कर नुकसान से बचा जा सकता है.
*सरसों व राया*
— Dept. of Agriculture & Farmers Welfare, Haryana (@Agriculturehry) February 7, 2024
• रोग प्रबंधन
॰ किसान भाई अपने खेतों में निगरानी रखें और सफ़ेद रतुआ व अल्टरनेरिया ब्लाइट बीमारी के लक्षण नजर आते ही 600-800 ग्राम मैंकोजेब (डाइथेन एम-45) को 250 से 300 लीटर पानी में मिला कर प्रति एकड़ की दर से 15 दिन के अंतर पर 2-3 बार छिड़काव करें। pic.twitter.com/dXvHSlWVvr
तापमान में हो रहे उतार-चढ़ाव को देखते हुए किसानों को अपनी फसलों की निगरानी रखनी चाहिए. ऐसे में सरसों की फसलों में सफेद रतुआ के लक्षण दिखते ही 600 से 800 ग्राम मैंकोजेब को 250 से 300 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ की दर से 15 दिनों के अंतर पर 2 से 3 बार छिड़काव करें.
सरसों की फसल में हल्के हरे-पीले रंग का चेपा कीट छोटे-छोटे समूहों में रहकर पौधे के विभिन्न भागों कलियों, फूलों, फलियों और टहनियों पर रहकर रस चूसता है. इसका आक्रमण जनवरी के प्रथम पखवाड़े से शुरू होता है और फरवरी के महीने तक रहता है. जब औसत तापमान 10 से 20 डिग्री सेल्सियस तक होती है. रस चूसे जाने के कारण पौधे की बढ़वार रूक जाती है, वहीं, सरसों की फलियां कम हो जाती हैं और दानों की संख्या में भी कमी आ जाती है.
चेपा का प्रकोप सरसों के खेत में जनवरी से फरवरी महीने के बीच शुरू होता है. जैसे ही इसका प्रकोप खेत में दिखे किसानों को इससे प्रभावित पौधों को उखाड़कर उसे नष्ट कर देना चाहिए. साथ ही इस कीट के रोकथाम के लिए डायमेथोएट 250 से 400 मिली के साथ 250-400 लीटर पानी में प्रति एकड़ का छिड़काव करें.
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