बरसीम रबी मौसम में दलहनी चारे की एक महत्वपूर्ण फसल है. यह चारा घास नवंबर से मई तक 4-6 कटाई देती है. यह एक पोषक, रसीला एवं स्वादिष्ट चारा है. इसलिए इसे दुधारू पशुओं को खिलाने से दूध में वृद्धि तथा शारीरिक स्वास्थ्य के प्रति अच्छे परिणाम मिलते हैं. बरसीम दलहनी फसल होने के कारण मृदा की उर्वरता में वृद्धि करती है. इसका प्रयोग हरी खाद के रूप में करना भी लाभदायक होता है. इसके साथ-साथ बरसीम उगाने से मृदा के भौतिक, रासायनिक और जैविक गुणों में वृद्धि होती है, जिसके परिणामस्वरूप फसल की बेहतर उपज प्राप्त होती है.
बरसीम में प्रोटीन, रेशा तथा शारीरिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए अन्य खनिज लवण जैसे कैल्सियम, मैग्नीशियम, फास्फोरस, सोडियम तथा पोटेशियम आदि पर्याप्त मात्रा में पाये जाते हैं. चारा की पहली कटाई 50 दिनों पर तथा उसके बाद की 5-6 कटाई 28 दिनों के अंतराल पर करें. पहली कटाई करते समय ध्यान रहे कि कटाई 5-6 सें.मी. ऊपर से की जाये ताकि बाद में वृद्धि अच्छी हो. वैज्ञानिक तरीके से उगाई गयी फसल से 320-440 क्विंटल हरा चारा प्रति एकड़ प्राप्त होता है.
बरसीम, ठंडी जलवायु के अनुकूल है. ऐसी जलवायु सर्दी व वसंत के मौसम में उत्तरी भारत में पाई जाती है,जो उत्पादक क्षेत्र के रूप में जाना जाता है.बरसीम की बुआई तथा विकास के लिए उचित तापमान 25 डिग्री सेल्सियस है.
बुआई का समय एक महत्वपूर्ण कारक है, जो अंकुरण, कटाई की संख्या तथा उत्पादन को प्रभावित करता है. जब तापमान 25-27 डिग्री सेल्सियस हो तब बुआई करनी चाहिए. इसलिए पंजाब, हरियाणा व उत्तर प्रदेश में बुआई का उचित समय अक्टूबर है. बंगाल व गुजरात में फसल की नवम्बर में बुआई की जा सकती है.
उन्नत प्रजातियां बरसीम लुधियाना, मिस्कावी, पूसा जायन्ट, बी एल.-180, टाईप-526, टाईप-678, टाईप-780, जे.बी.-1, जे.बी.-2, बुन्देल-2, वरदान, टी-5 एवं टी-26, जे.एच.पी.-146, वी.एल.-10, .वी एल.-2, वी.एल.-1, वी.एल.-22, यू.पी.वी.-110 तथा यू.पी.वी.-103 आदि हैं.
अच्छी जल निकास वाली क्ले व क्ले दोमट, ह्यूमस, कैल्शियम व फॉस्फोरस युक्त मृदा बरसीम के लिए उपयुक्त है. बरसीम को खार वाली मिट्टी में भी उगाया जा सकता है.पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से तथा बाद की 2 याउजुताई देसी हल या कल्टीवेटर से करें.
बुवाई से एक महिना पहले 4-5 टन गोबर की खाद को अच्छी तरह से खेत मे मिला दें. बरसीम मेंअंतिम जुताई या बुआई के समय 8 कि.ग्रा. नाइट्रोजन व 32 कि.ग्रा. फॉस्फोरस प्रति एकड़ उचित है. इसके लिए 18 किलो यूरिया के साथ 200 किलो सिंगल सुपर फास्फेट का इस्तेमाल करें.या सिर्फ 70 किलो डीएपी प्रति एकड़ का बुवाई के समय इस्तेमाल करें. फसल के अच्छे प्रारंभिक बढ़वार और जड़ों के विकास के लिए समुंदरी शैवाल से बने पौध विकास प्रोत्साहकसागरिका Z++ @ किलोग्राम प्रति एकड़ की दर से बुवाई के समय 8-10 जरूर डालें.
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