गन्ने की खेती में अपनाएं 'पंचामृत' टिप्स, बंपर पैदावार के साथ पाएं शानदार मुनाफा

गन्ने की खेती में अपनाएं 'पंचामृत' टिप्स, बंपर पैदावार के साथ पाएं शानदार मुनाफा

गन्ने की खेती पारंपरिक तरीकों से करने पर लागत अधिक आती है, लेकिन मुनाफा उम्मीद के मुताबिक नहीं होता. गन्ने की पैदावार और इसकी खेती मुनाफा बढ़ाने के उद्देश्य से, कृषि विशेषज्ञों ने "पंचामृत" नामक एक वैज्ञानिक टिप्स तैयाप किया है. यह मॉडल पांच शक्तिशाली तकनीकों का एक संयोजन है, जो पैदावार बढ़ाने के साथ-साथ खेती का खर्च भी काफी कम कर सकता है. आइए, इन पांच विधियों को विस्तार से जानते हैं.

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गन्ने की खेती में अपनाएं 'पंचामृत' टिप्स, बंपर पैदावार के साथ पाएं शानदार मुनाफागन्ने की वैज्ञानिक तरीके से खेती

गन्ना भारत की एक मुख्य नकदी फसल है, जिस पर लाखों किसानों की आजीविका निर्भर करती है, खासकर उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में. इस समय किसान शरदकालीन गन्ने की बुवाई की तैयारी कर रहे हैं, और सही तकनीक का चुनाव करने का यह सबसे उत्तम समय है. अक्सर देखा जाता है कि पारंपरिक तरीकों से खेती करने पर लागत अधिक आती है, लेकिन मुनाफा उम्मीद के मुताबिक नहीं होता. इसी समस्या को दूर करने और किसानों की आय बढ़ाने के लक्ष्य से, कृषि वैज्ञानिकों और गन्ना विकास विभाग नेपंचामृत" नाम का एक टिप्स तैयार किया है. यह पांच वैज्ञानिक विधियों का एक समूह है, जिन्हें अपनाकर किसान अपनी उपज बढ़ाने के साथ-साथ खेती का खर्च भी काफी कम कर सकते हैं. इन पांच अमृत समान विधियों को विस्तार से समझते हैं.

ट्रेंच विधि से बुवाई करने पर अधिक पैदावार 

ट्रेंच विधि, गन्ने की बुवाई का एक आधुनिक तरीका है. इसमें खेत में गहरी नालियां बनाकर गन्ने के टुकड़ों को बोया जाता है. यह साधारण बुवाई से कहीं ज़्यादा फायदेमंद है. ट्रेंच में बुवाई करने से गन्ने की जड़ें ज़्यादा गहराई तक जाती हैं, जिससे पौधा मज़बूत होता है और तेज़ हवा में गिरता नहीं है. इस विधि में बीज कम लगता है और खाद सीधे पौधे की जड़ों के पास डाली जाती है, जिससे बर्बादी नहीं होती. नालियों में निराई-गुड़ाई करना आसान हो जाता है. विभाग के अनुसार, इस विधि से खेती करने पर 15 से 20 प्रतिशत तक अधिक उपज मिलती है.

सहफसली खेती से डबल कमाई

सहफसली खेती का मतलब है मुख्य फसल के साथ-साथ खाली जगह में कोई दूसरी छोटी अवधि की फसल उगाना. गन्ने की दो पंक्तियों के बीच काफी जगह खाली रहती है, जिसका सही इस्तेमाल करके अतिरिक्त आमदनी कर सकते हैं. गन्ने के साथ आप आलू, लहसुन, प्याज, मटर, मसूर या धनिया जैसी फसलें उगा सकते हैं. अगर किसी कारण से गन्ने की फसल को नुकसान होता है, तो दूसरी फसल से आय सुनिश्चित हो जाती है. खेत की खाली जगह का पूरा उपयोग होता है. दलहनी फसलें सब्जी मटर मसूर उगाने से मिट्टी में नाइट्रोजन की मात्रा बढ़ती है, जिससे उसकी उर्वरता में सुधार होता है.

ड्रिप सिंचाई से कम खर्च में ज्यादा उपज

पानी की कमी आज खेती के लिए एक बड़ी चुनौती है. ड्रिप सिंचाई या टपक सिंचाई इस समस्या का सबसे अच्छा समाधान है. इस तकनीक में पाइपों के माध्यम से पानी सीधे पौधे की जड़ों तक बूंद-बूंद करके पहुंचाया जाता है. पारंपरिक सिंचाई की तुलना में 50-60% तक पानी बचाती है. सिंचाई पर होने वाले बिजली या डीजल के खर्च में भारी कमी आती है. पौधे को जरूरत के हिसाब से पानी मिलने से उसकी बढ़त अच्छी होती है, जिससे पैदावार बढ़ती है.

रैटून मैनेजमेंट से दूसरे साल भी मिलेगी बंपर उपज

गन्ने की एक फसल काटने के बाद उसी की जड़ से जो दूसरी फसल उगती है, उसे रैटून या पेड़ी कहते हैं. अक्सर किसान पेड़ी की फसल पर ज़्यादा ध्यान नहीं देते, जिससे उत्पादन बहुत कम हो जाता है. सही प्रबंधन से पेड़ी की फसल से भी बंपर उपज ली जा सकती है. पहली फसल कटने के बाद ठूंठों की सही कटाई, खाली जगहों पर नए गन्ने लगाना और समय पर खाद-पानी देना ज़रूरी है. खेत की तैयारी और बुवाई का पूरा खर्च बच जाता है. सही देखभाल करने से पेड़ी की फसल का उत्पादन 10 से 15 प्रतिशत तक बढ़ाया जा सकता है.

ट्रैश मल्चर का प्रयोग कर उपजाऊ खेत बनाएं

गन्ने की कटाई के बाद खेत में बड़ी मात्रा में सूखी पत्तियां बच जाती हैं, जिसे किसान अक्सर जला देते हैं. इससे न केवल प्रदूषण फैलता है, बल्कि मिट्टी के पोषक तत्व भी नष्ट हो जाते हैं. ट्रैश मल्चर मशीन इस समस्या का एक शानदार समाधान है. यह मशीन पत्तियों को छोटे-छोटे टुकड़ों में काटकर खेत में ही फैला देती है. यह कटी हुई पत्तियां धीरे-धीरे सड़कर जैविक खाद बन जाती हैं. मिट्टी को मुफ़्त की जैविक खाद मिलती है, जिससे उसकी उपजाऊ शक्ति बढ़ती है. पत्तियों की परत मिट्टी की नमी को बनाए रखती है, जिससे सिंचाई की जरूरत कम पड़ती है. इन "पंचामृत" तकनीकों को अपनाकर न केवल गन्ने की पैदावार बढ़ा सकते हैं, बल्कि अपनी खेती को टिकाऊ और पर्यावरण के अनुकूल भी बना सकते हैं.

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