Tea Farming: 2050 तक आपके कप से गायब हो सकती है चाय! चाय की खेती के लिए खतरा बना क्लाइमेट चेंज, ये वैज्ञानिक कर रहे बचाने के लिए रिसर्च

Tea Farming: 2050 तक आपके कप से गायब हो सकती है चाय! चाय की खेती के लिए खतरा बना क्लाइमेट चेंज, ये वैज्ञानिक कर रहे बचाने के लिए रिसर्च

टीआरआई के वैज्ञानिक प्रतिकूल पर्यावरणीय परिस्थितियों में अच्छी चाय की खेती सुनिश्चित करने के लिए प्रयोगशाला और क्षेत्र दोनों प्रयोग कर रहे हैं. टीआरआई में जलवायु और जीआईएस लैब ने भविष्य के जलवायु परिदृश्यों की नकल करने के लिए दो ऐसे कमरे बनाए हैं जो ऊपर से खुले हुए हैं.

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चाय की खेती के लिए खतरा बना क्लाइमेट चेंज, ये वैज्ञानिक कर रहे बचाने के लिए रिसर्चचाय की खेती

जलवायु परिवर्तन (Climate Change) असम के चाय उद्योग के लिए एक बड़ी चुनौती साबित हो रहा है. जलवायु अनुमानों के अनुसार, 2050 से 2070 तक अधिकांश वर्तमान चाय बागान बढ़ते तापमान और बढ़े हुए कार्बन डाइऑक्साइड के स्तर के कारण खेती के काबिल नहीं रहेंगे. इस बात को संज्ञान में लेते हुए असम के जोरहाट में टोकलाई चाय अनुसंधान संस्थान (TRI) ने ऐसी चाय की झाड़ियां विकसित करने के लिए रिसर्च की है जो भविष्य की जलवायु परिस्थितियों का सामना कर सकें.

जलवायु परिवर्तन वैज्ञानिक रूपांजलि देब बरुआ एएनआई से बातचीत में कहती हैं, "2018 में एथिकल टी पार्टनरशिप के साथ किए गए एक अध्ययन में, यह प्रकाशित हुआ था कि अगर हालात नहीं बदले तो 2050 और 2070 तक अधिकांश चाय उगाने वाले क्षेत्र वर्तमान जलवायु परिस्थितियों को देखते हुए चाय बागानों के लिए उपयुक्त नहीं होंगे. हालांकि, एक विकल्प है. अगर हम उचित अनुकूलन और शमन रणनीतियों को अपनाते हैं तो हम प्रभाव को कम कर सकते हैं. चाय की खेती में जलवायु परिवर्तन को संबोधित करने के लिए ये दो प्रमुख स्तंभ हैं."

कैसे हो रही रिसर्च?
टीआरआई के वैज्ञानिक प्रतिकूल पर्यावरणीय परिस्थितियों में अच्छी चाय की खेती सुनिश्चित करने के लिए प्रयोगशाला और क्षेत्र दोनों प्रयोग कर रहे हैं. टीआरआई में जलवायु और जीआईएस लैब ने भविष्य के जलवायु परिदृश्यों की नकल करने के लिए दो ऐसे कमरे बनाए हैं जो ऊपर से खुले हुए हैं.

इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (IPCC) के निर्धारित दिशानिर्देशों का पालन करते हुए रिसर्चर्स ने इन कमरों के अंदर कार्बन डाइऑक्साइड को 550 पीपीएम तक बढ़ा दिया है. उनके अध्ययन से पता चलता है कि तापमान और कार्बन डाइऑक्साइड के स्तर में अनुमानित वृद्धि चाय की झाड़ियों को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकती है. इससे उपज और गुणवत्ता दोनों प्रभावित हो सकती हैं.

टीआरआई की जलवायु और जीआईएस लैब में अनुसंधान सहयोगी डॉ अज़मिरी सुल्ताना रहमान कहती हैं, "हमारे विभाग ने हमारे प्रयोगों के लिए यहां दो ओपन-टॉप चैंबर सुविधाएं स्थापित की हैं. हमारे एक्सपेरिमेंट के लिए हमने कार्बन डाइऑक्साइड को 550 पीपीएम तक बढ़ा दिया है.

डॉ सुल्ताना ने बताया कि उन्होंने 550 पीपीएम चुना क्योंकि आईपीसीसी दिशानिर्देशों के अनुसार 2050 तक तापमान और सीओ₂ दोनों स्तरों में वृद्धि होने की उम्मीद है. उनका उद्देश्य चाय की ऐसी फसल को पहचानना था जो 2050 के क्लाइमेट में भी उग सकेगी. ऐसा करने के लिए उन्होंने चाय की 10 फसलें उन कमरों में रखीं.

कैसे हुआ आंकलन?
डॉ सुल्ताना बताती हैं, "इस अध्ययन के लिए हमने पीवी किस्मों और कुछ चाय बीज स्टॉक का उपयोग किया. फिर हमने पौधे की ऊंचाई, तने की मोटाई, पत्तियों की संख्या और डालियों की संख्या सहित कई रूपात्मक मापदंडों को मापा. इसके अलावा जमीन के नीचे के विश्लेषण के लिए हमने माइक्रोबियल बायोमास कार्बन और समग्र बायोमास का आकलन किया."

रोज़ रिकॉर्ड किए गए डेटा का विश्लेषण करके वैज्ञानिकों ने ट्रैक किया कि पौधे कार्बन डाइऑक्साइड के संपर्क में कैसे आते हैं. तीन साल की रिसर्च के बाद उन्होंने ऐसी चाय की फसलों की पहचान की जो भविष्य की जलवायु परिस्थितियों में बेहतर प्रतिक्रिया देने की क्षमता रखती हैं. "
 

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