भारत को विविधताओं का देश कहा जाता है. भारत में सांस्कृतिक से लेकर जलवायु विविधता देखी जाती है. मसलन देश में देश में तापमान 1 डिग्री से लेकर 48 डिग्री तक दर्ज किया जाता है. वहींं उत्तर भारत के अधिकतर राज्यों में अप्रैल से जुलाई तक गर्म, जुलाई से अक्टूबर तक बरसात और नवंबर से फरवरी तक बहुत ठंडा रहता है.ऐसे में खेती-किसानी बेहद ही चुनौतीपूर्ण मानी जाती है. इसके पीछे का मुख्य कारण ये है कि कई उपजों के उत्पादन के लिए तापमान एक सामान रहना चाहिए, जिसमें सब्जियां सबसे आगे हैं. ऐसे में किसानों की राह पॉली हाउस और शेड नेट आसान बनाते हैं. किसान तक की सीरीज खरीफनामा की इस कड़ी में पॉली हाउस और शेड नेट पर पूरी रिपोर्ट...
परम्परागत खेती की तुलना में पॉली हाउस और शेड नेट संरचनाओं के जरिए किसान में सब्जियों की खेती से पांच से दस गुना तक उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं. दरअसल पॉलीहाउस और शेड नेट की तकनीक थोडी महंगी है, जिसमें लाखों का खर्च आता है. परंपरागत खेती के मुकाबले 10 गुना तक पैदावार ली जा सकती है, लेकिन क्या आपको मालूम है कि ऐसी नई तकनीकों को बढ़ावा देने के लिए सरकार सब्सिडी दे रही है .
भारतीय कृषि अनुंसधान संस्थान (आईएआरआई ) पूसा के सब्जी विज्ञान के प्रधान वैज्ञानिक और संरक्षित खेती के एक्सपर्ट डॉ अवनी सिंह ने किसान तक से बातचीत में कहा कि अगर किसान पॉलीहाउस, ग्रीन शेड नेट जैसी संरचनाओं से खेती करना चाहते है. तो अभी से योजना बना लें_ उन्होंने कहा कि हाई-टेक पॉलीहाउस में खेती करना चाहते हैं तो उसके लिए के लिए एक स्ट्रक्चर तैयार किया जाता है.इस स्ट्रक्चचर में सिंचाई के लिए ड्रिप इरीगेशन सिस्टम लगाया जाता है, जिससे पानी को फिल्टर करके पौधों तक पहुंचाया जाता है. ड्रिप सिस्टम के जरिए ही पौधों को उर्वरक भी दिया जाता है. तापमान को कंट्रोल करने के लिए स्प्रिंकलर और फॉगर लगाया जाता है. लोगों की जरूरत के हिसाब से ऑफ-सीजन या बाजार की मांग के अनुसार फसलों का उत्पादन लिया जा सकता है.
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इस तकनीक की खासियत ये है इसके माध्यम से स्वॉयल लेस खेती यानी बिनी मिट्टी की खेती बड़ी आसानी से की जा सकती है और बंपर उत्पादन लिया जा सकता है. इस तकनीक से पहाड़ी एरिया, रेगिस्तान कम उपजाऊ वाली जमीन और बिना मिट्टी के हाइड्रोपोनिक, एरोपोनिक ,एक्वापोनिक तरीके से खेती कर कम जमीन से अधिकतम उत्पादन लिया जा सकता है.
किसान तक से बातचीत में डॉ अवनी सिंह ने कहा कि हाई-टेक पॉलीहाउस के जरिए उच्च क्वालिटी की नर्सरी पौध लगाई जा सकती है. सब्जी वाली फसलों में फ्रेंचबीन, शिमला मिर्च, टमाटर, खीरा जैसी फसलें लगा सकते हैं. वहीं आप कार्नेशन, डच रोज, ग्लेडियोलस, लिली, एंथुरियम जैसी फूल वाली फसलों की खेती करके सुगंध और सुंदरता के साथ बेहतर कमाई भी कर सकते हैं. यह तकनीक थोड़ी महंगी तो है, लेकिन इस तकनीक में निवेश करें तो यह बहुत ज्यादा फायदा देने वाली तकनीक है. किसान तक से बातचीत डॉ अवनी सिंह ने कहा अगर किसान समान्य पॉलीहाउस बनाते हैंं, जिसे नेचुरल हवादार पॉलीहाउस कहते हैंं, इसमे 9 से 10 महीने तक की फसल यानी बीज रहित खीरा, टमाटर खरबूजे, और रंगीन शिमला मिर्च की खेती की जा सकती है. नेचुरल हवादार पॉलीहाउस, मैन्युअल रूप से संचालित होता है. क्योंकि इसमें हाई टेक पॉलीहाउस की तरह तापमान नियंत्रण और नमी नियंत्रण के लिए कोई उपकरण नहीं होता है.
संरक्षित खेती के एक्सपर्ट डॉ अवनी ने कहा कि शेड नेट हाउस में रोशनी आधी ही अंदर आ पाती है. यह गर्मी और ठंड के मौसम में फसलों को लगाने के लिए अच्छा होता है. गर्मी में सूर्य के विकिरण और उच्च तापमान के कारण सब्जियों की खेती करना मुश्किल होता है, लेकिन किसान साल भर शेड नेट में पूरे साल विदेशी सब्जी (लैट्यूस,पाकचोय, चाइनीज कैबेज) पालक, धनिया, पुदीना और पत्तेदार सब्जियों के अलावा शिमला, खीरा, टमाटर, बैंगन और गर्मी की नर्सरी लाभकारी तरीके से की जा सकती है. उन्होंने कहा कि शेड नेड शुष्क क्षेत्रों में यह सूर्य के विकिरण और उच्च तापमान को झेलने में सक्षम है. शेड नेट-हाउस विभिन्न रंगों के काले, हरे और सफेद रंग के होते हैं, फसल को 30, 50 से लेकर 75 प्रतिशत छाया प्रदान करने वाले शेडनेट होते हैं .इसमे आसानी से सब्जियों और सजावटी फूलों की खेती कर सकते हैं.
किसान तक से बातचीत में डॉ अवनी सिंह ने कहा कि संरक्षित खेती के लिए हमेशा ऐसी फसलों का चुनाव करें, जिनकी बाजार में मांग अधिक हो और वे अच्छी कीमत पर बिक सकें. उन्होंने कहा कि मंहगी खेती तो इंतजाम भी महंगे होंगे. ऐसा सोचना कुछ हद तक गलत होगा. क्योंकि संरक्षित खेती में सभी संसाधनों के बेहतर उपयोग से गुणवत्ता से भरपूर बंपर पैदावर ली जा सकती है, बस जरूरत है, किसान अपने आपको थोड़ा चुस्त-दुरस्त रखें क्योंकि इसमें खाद-पानी देने का फिक्स टाइम होता है और अगर आपसे इन सब में थोड़ी सी भी चूक हुई तो इसका खामियाजा आपको कम उपज के रूप में उठाना पड़ सकता है.
किसान तक से बातचीत में डॉ अवनी सिंह ने कहा कि किसान सरकार से सब्सिडी का लाभ प्राप्त कर पॉलीहाउस और शेडनेट लगा सकते हैं. उन्होंने कहा कि केन्द्र सरकार की तरफ से नेशनल हार्टिकल्चर मिशन और राज्य सरकारों के कृषि हार्टिकल्चर विभाग भी सब्सिडी देने के साथ और बैंकों से लोन दिलवाने में भी मदद करते हैं. इसके लिए डिटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट बना कर अपने जिला के उद्यान विभाग और बैंक को देनी पड़ती है. अपने जमीन के कागजात, एरिया और फसल के बारे में बताना होता है फिर विभाग अपने निरीक्षण में तकनीकी रूप से सही होने पर वो प्रोजेक्ट पास कर देता है. केन्द्र सरकार की तरफ से 50 फीसदी तो वहीं अलग अलग राज्यों 25 से 30 फीसदी तक सब्सिडी देने का प्रावधान है. इस तरह किसानों को 70 से 80 फीसदी सब्सिडी का लाभ मिल जाता है.
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