Hydroponics Farming: हमारा देश आजादी के बाद बढ़ती जनसंख्या और घटती जमीन की चुनौती में है. इस बीच भारत बड़ा खाद्यान्न निर्यातक देश बन गया है, लेकिन इस प्रगति के बीच, लोगों के लिए जरूरी पोषक तत्वों की जगह हानिकारक तत्व मिल रहे हैं, जिससे लोगों का स्वास्थ्य खराब हो रहा है. दूसरी ओर खेतों का विविधिकरण, मृदा का उपजाऊपन और खेती के लिए जल और जमीन की कमी हो रही है. ऐसे में वह दिन दूर नहीं जब भविष्य में शुद्ध पानी और भोजन की कमी का सामना करना पड़ेगा. तभी इन समस्याओं का समाधान हाइड्रोपोनिक खेती को बताया जा रहा है. इसे सरल भाषा में कहें तो हाइड्रोपोनिक खेती मिट्टी के बिना की जाती है. इस तकनीक से गांव हो शहर, छत या फिर कमरे, कहीं भी खेती की जा सकती है. हाइड्रोपोनिक भविष्य की खेती है. इस तकनीक में फसलों को बिना खेत में लगाए, सिर्फ पानी और पोषक तत्वों की मदद से उगाया जाता है. पौधों में वृद्धि और विकास के लिए पोषक तत्वों का इस्तेमाल घुलनशील रूप में किया जाता है.
हाइड्रोपोनिक खेती मिट्टी के बिना की जाती है. इस तकनीक में पौधों के लिए पोषक तत्वों की आपूर्ति पानी के माध्यम से की जाती है, जो पानी में घुलनशील हैं. हाइड्रोपोनिक्स में मिट्टी को कोको पिट पैसिव मीडिया द्वारा प्रतिस्थापित किया जाता है. यह तकनीक पौष्टिक और मंहगी पत्तेदार सब्जियां सहित स्ट्राबेरी, टमाटर, शिमला मिर्च, मिर्च और फ्रेंच बीन्स जैसी फसलें उगाने के लिए काफी बेहतर है.
हाइड्रोपोनिक खेती को मल्टीलेबल तरीके से करने से आर्थिक रूप से काफी फायदा होता है. इसमें परत के ऊपर परतें बनती हैं. इसमें घुले पानी को पाइप के जरिए पौधों तक पहुंचाया जाता है. नियमित अंतराल पर पौधों को पानी देने के लिए एक हाइड्रोपोनिक पंप लगाया जाता है. पानी में जरूरी पोषक तत्व निर्धारित अनुपात में मिलाए जाते हैं और पौधों की जड़ों तक ले जाया जाता है. यह क्वालिटी निर्धारित उपज देता है. अपने स्थान की उपलब्धता और अन्य प्राथमिकताओं के आधार पर अन्य मॉड्यूल जैसे जिग-जैग, रेन टॉवर मॉड्यूल आदि के साथ भी काम कर सकते हैं.
हाइड्रोपोनिक खेती में आप कृत्रिम प्रकाश में कमरे में भी खेती शुरू कर सकते हैं, क्योंकि प्रकृति पर निर्भरता लगभग नगण्य हो जाती है. इसके अलावा शहर में छतों, बालकनियों और ऊंची इमारतों के हिस्सों पर खेती की जा सकती है. इस खेती का एक लाभ यह है कि इसमें बहुत कम पानी का उपयोग होता है और लगभग 95 फीसदी पानी की बचत होती है. फसल में कीट-बीमारी की आशंका भी बेहद कम रहती है और खरपतवार के प्रबंधन से छुटकारा मिल जाता है. इससे लागत में अच्छी-खासी कमी आती है.
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इस खेती में सबसे बड़ा फायदा ये है कि 3 से 4 गुना तक पैदावार ली जा सकती है. दूसरे देशों में इस तरह की खेती बेहद सफलता से की जा रही है. अपने देश में विशेषज्ञ इसकी सलाह दे रहे हैं कि शहर में लोगों को साफ-सुथरी शुद्ध और ताज़ा सब्जी नसीब नहीं है. यही कारण है कि लोग ज्यादा बीमार पड़ते हैं. रोग भगाने वाली पालक भी अगर रोगी बनाने लगे तो भला क्या किया जाए? ऐसे में शुद्ध-देसी और बिना केमिकल के बिल्कुल ऑर्गेनिक तरीक़े से हाइड्रोपोनिक फार्म में उपजाई गई सब्जियों का इस्तेमाल एकमात्र उपाय है.
हाइड्रोपोनिक फार्म शहर के अंदर या उसके पास बनाए जाएं तो परिवहन और भंडारण आदि में ज्यादा खर्च नहीं होता है. ताजा सब्जियों और फलों की गुणवत्ता और आपूर्ति बढ़ाने के लिए कृषि कंपनियां इसका पूरा फायदा उठा सकती हैं. बुनियादी ढांचे की स्थापना के लिए एकमुश्त निवेश की जरूरत होती है. हालांकि, शुरुआती स्थापना के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करने वाली कृषि संस्थाएं इच्छुक कृषि कंपनियों को वित्तीय सहायता और संसाधन प्रदान करती हैं. इसे न्यूनतम 25 हजार से एक लाख रुपये की लागत से शुरू किया जा सकता है.
अगर कोई इस तकनीक का इस्तेमाल घर में करके सब्जियां पैदा करता है तो उसे 30-40 हजार रुपये महीने की आमदनी होती है. इसके बाद परिस्थिति के अनुसार सालाना लाखों रुपये की कमाई की जा सकती है. इस तकनीक से हमारे देश के हाईप्रोपाईल युवा किसान बनकर लाखों में कमाई कर रहे हैं.
भारत में जगह की कमी और बढ़ती आबादी और भोजन में पोषक तत्वों के समस्या निवारण के लिए हाइड्रोपोनिक अच्छा विकल्प है. इस तकनीक से विपरीत परिस्थितियों में उन क्षेत्रों में भी पौधे उगाए जा सकते हैं, जहां जमीन की कमी है या जहां की मिट्टी उपजाऊ नहीं है. इस तकनीक से बेहद कम खर्च में पौधे और फसलें उगाई जा सकती हैं.
अगर हाइड्रोपोनिक्स तकनीक का बड़े स्तर पर इस्तेमाल किया जाता है तो कई तरह की शाक-सब्जियां बड़े पैमाने पर अपने घरों और बड़ी-बड़ी इमारतों में भी उगाई जा सकेंगी. हाइड्रोपोनिक खेती हिमपात, मूसलाधार बारिश और अन्य प्राकृतिक आपदा वाली परिस्थिति में भी असानी से की जा सकती है. अपने देश में पहाड़ी राज्य सरकारें तेजी से हाइड्रोपोनिक्स को बढ़ावा दे रही हैं. परंपरागत तकनीक से पौधे और फसलें उगाने की अपेक्षा हाइड्रोपोनिक तकनीक के कई लाभ हैं. भारत में, हाइड्रोपोनिक उद्योग में भविष्य उज्जवल है.
हाइड्रोपोनिक खेती तकनीकी रूप से उन्नत, सुविधाजनक, आर्थिक रूप से लाभदायक और टिकाऊ खेती की दिशा में बेहतर अवसर दे सकती है. आप इस छोटे स्तर पर अपनाकर सफलता मिलने पर एक उद्यमी रूप में हाईड्रोपनिक खेती में कदम उठा सकते हैं. आज के समय में लोगों की आमदनी बढ़ रही है तो क्वालिटी फूड के लिए लोग पैसा चुकाने के लिए तैयार हैं.
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आईसीएआर-भारतीय बागवानी अनुसंधान संस्थान, बेंगलुरु (आईआईएचआर) ने सब्स्ट्रेट के रूप में कोकोपीट का उपयोग करके हाइड्रोपोनिक का एक प्रकार, "कोकोपोनिक्स" या सब्जियों का मिट्टी रहित उत्पादन तकनीक विकसित की है. इसे कई सब्जी फसलों में तुलनात्मक रूप से अधिक सफल पाया गया है. संस्थान ने तोरई, रंगीन गोभी, मिर्च, बैंगन, पालक, ऐमारैंथस, धनिया, ककड़ी, फ्रेंच बीन, मटर, लोबिया, डोलिचोस की खेती कर सकते हैं. इसे खुले के साथ ही संरक्षित परिस्थितियों में खेती करके ज्यादा लाभ कमाया जा सकता है. विभिन्न क्षमता निर्माण कार्यक्रमों के माध्यम से पिछले 3 वर्षों के दौरान आईसीएआर-आईआईएचआर में 3000 से अधिक शहरी निवासियों, कोकोपीट उत्पादकों, हाइड्रोपोनिक स्टार्ट अप आदि को प्रशिक्षित किया गया है.
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