
एग्रीकल्चर इंजीनियरिंग के क्षेत्र में बहुत तरक्की हो चुकी है फिर भी वैज्ञानिक अभी तक किसानों के लिए जरूरत की मशीनें नहीं बना पाए हैं. इसलिए देश में कई जगहों से कबाड़ से जुगाड़ तैयार करने की खबरें आती रही हैं. इसी कड़ी में महाराष्ट्र के एक किसान ने छोटे किसानों के लिए कबाड़ से जुगाड़ कर नई मशीनें बना ली है. ये जुगाडू किसान महाराष्ट्र के वर्धा निवासी योगेश माणिकराव लीचड़े हैं, जिन्होंने छोटे किसानों के लिए बड़े काम की मशीनें बनाई हैं. इस युवा किसान ने कोई इंजीनियरिंग की पढ़ाई नहीं की है, लेकिन खेती की जरूरतों से प्रेरित होकर पावर विडर, पावर टिलर और छोटा ट्रैक्टर बना लिया है, जिसकी पूरे क्षेत्र में चर्चा है.
योगेश ने किसान तक से बातचीत में बताया कि उन्होंने करीब डेढ़ सौ मशीनें बेची हैं. वो पहले पूना की एक कंपनी में हेल्पर का काम करते थे, जिसमें हर महीने मात्र 7000 से 8000 रुपये मिलते थे, तब उन्होंने खेती करने का फैसला किया. खेती शुरू की तो लगा कि खेत बहुत छोटे होने की वजह से अब छोटी मशीनों की जरूरत है. तब उन्होंने कबाड़ से जुगाड़ वाला फार्मूला अपनाया. फिर छोटा पावर टिलर और पावर विडर बनाना शुरू किया.
किसान योगेश माणिकराव लीचड़े ने बताया कि अभी, जो चीन से मशीनें आ रही हैं वो कारगर नहीं हैं. क्योंकि उन्हें यहां की मिट्टी के हिसाब से नहीं बनाया गया है. यहां की मिट्टी काली और ठोस है. उसके लिए सबसे छोटी और मजबूत मशीनें बनाईं हैं. इसलिए स्थानीय किसानों ने उसे काफी पसंद किया. एक तरह से कस्टमाइज्ड काम करने से लोकप्रियता बढ़ी है. पांच हार्सपावर के पम्पिंग सेट से छोटा ट्रैक्टर बनाया जिसमें सिर्फ 75000 रुपये की लागत आई.
यह युवा किसान वर्धा जिले के अरवी तालुका के कांकीड़ा गांव का रहने वाला है. दावा है कि इन मशीनों से किसानों को फायदा हो रहा है, इसलिए उनके पास अलग-अलग जरूरत की मशीनों की डिमांड आ रही है. उन्होंने खरपतवार नियंत्रण के लिए भी मशीन बनाई है. गांव में कृषि कार्य के लिए मजदूर अब कम उपलब्ध हैं. इसलिए उनकी मशीनें किसानों के लिए बहुत काम की साबित हो रही हैं. उनका कहना है कि खेती कम होने के कारण ट्रैक्टर भी जल्दी किराए पर नहीं मिलते थे. इसलिए ट्रैक्टर बनाया. अलग-अलग हार्सपावर का इंजन लगाकर अलग-अलग क्षमता का ट्रैक्टर बनवाए जा सकते हैं.
किसान योगेश का दावा है कि इन मशीनों से उत्पादन लागत कम हो रही है. मजदूरी का खर्च काफी कम हुआ है. उन्होंने बताया कि उन्होंने छोटा पावर वीडर विकसित किया है, जिसका उपयोग पैदल अपनी खेती के लिए किया जाता है.उनका बनाया पांच हॉर्स पावर की क्षमता वाला ट्रैक्टर तीन लीटर डीजल पर छह घंटे तक चल सकता है. इस ट्रैक्टर में इंजन और गेयर सेक्शन अलग-अलग रखे गए हैं. उनका कहना है कि चार एकड़ जमीन की जुताई में एक जोड़ी बैल को दो दिन का समय लगता है. खर्च आता है चार हजार रुपये, जबकि मिनी ट्रैक्टर से एक हजार रुपये प्रति एकड़ में काम हो जाता है और समय की भी बचत होती है.
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