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Fragrance Farming : 'खुशबू की खेती' में हैं करियर की अपार संभावनाएं, यहां मिलती है साल भर ट्रेनिंग

Fragrance Farming : 'खुशबू की खेती' में हैं करियर की अपार संभावनाएं, यहां मिलती है साल भर ट्रेनिंग

यूपी में कन्नौज fragrance farming यानी 'खुशबू की खेती' के लिए दुनिया भर में मशहूर है, इस खेती की बदौलत कन्नौज में सदियों से सुगंध का करोबार फल फूल रहा है. यहां सुगंधित फूलों से ही नहीं, बल्कि मिट्टी से भी इत्र बनाया जाता है. खुशबू के रूप में कन्नौज को मिले कुदरत के तोहफे को बतौर सुगंध की खेती, भावी पीढ़ी के लिए करियर संवारने का जरिया भी बन गई है.

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कन्नौज में खुशबू की खेती के प्रशि‍क्षण का जायजा लेते केन्द्रीय एमएसएमई मंत्री भानु वर्मा, फोटो: साभार एफएफडीसी कन्नौज में खुशबू की खेती के प्रशि‍क्षण का जायजा लेते केन्द्रीय एमएसएमई मंत्री भानु वर्मा, फोटो: साभार एफएफडीसी
मुगल काल में बने देश के सबसे पुराने राजमार्ग, 'ग्रांट ट्रंक रोड' पर दिल्ली से कोलकाता की ओर सफर करते हुए जब हवा में केवड़ा, खस और चंपा चमेली की खुशबू तैरने लगती है, तब कन्नौज से गुजरने का अहसास खुद ब खुद हो जाता है. यह वहीं कन्नौज है जिसमें खुशबू की खेती और सुगंध का कारोबार सदियों से होता आ रहा है. अब इस विधा के पारंपरिक ज्ञान को आधुनिक विज्ञान से जोड़कर इत्र की खेती को संगठित उद्योग बनाने पर जोर दिया जा रहा है.इस मकसद को पूरा करने में केन्द्र सरकार द्वारा कन्नौज में स्थापित Fragrance & Flavour Development Centre यानी सुगंध एवं सुरस विकास केंद्र (एफएफडीसी) महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है.

केन्द्रीय सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योग मंत्रालय के तहत संचालित हो रहे इस संस्थान में तमाम तरह के इत्र से जुड़े खुशबूदार पौधों की पारंपरिक खेती को नई तकनीक की मदद से उन्नत बना कर किसानों को इत्र के अत्याधुनिक कुटीर उद्योग लगाने के लिए भी प्रोत्साहित किया जा रहा है. सिर्फ कन्नौज ही नहीं, देश दुनिया के तमाम हिस्सों से लोग, इस संस्थान में खुशबू की खेती के गुर सीखते हैं. इसके लिए यहां किसानों और कारोबारियों को तरह तरह की ट्रेनिंग भी दी जाती है.

समर कैंप हुआ शुरू

संस्थान द्वारा चालू वित्त वर्ष 2023-24 के लिए जारी किए गए ट्रेनिंग मॉड्यूल के मुताबिक इस साल लगभग 33 प्रकार की ट्रेनिंग दी जाएगी. इसमें खुशबू को पहचानने से लेकर इसकी खेती करने और इत्र, अगरबत्ती आदि तमाम उत्पाद बनाने के तरीके सिखाए जाते हैं.

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संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) के सहयोग से केन्द्र एवं यूपी सरकार द्वारा 1991 में स्थापित इस संस्थान का मूल मकसद खुशबूदार वनस्पतियों की खेती को संरक्षित करने एवं इसके कारोबार को तकनीक की मदद से उन्नत बनाना है. संस्थान के सहायक निदेशक और प्रशिक्षण इकाई के प्रभारी ए पी सिंह ने बताया कि इस मकसद को पूरा करने के लिए किसानों एवं उद्यमियों को नई तकनीक से रूबरू कराने के लिए ट्रेनिंग दी जाती है. साल भर चलने वाले ट्रेनिंग मॉड्यूल के तहत संस्थान में 1 जून से समर ट्रेनिंग शुरू हुई है.

सिंह ने बताया कि इस कोर्स में सुगंधित तेल, खुशबू, और रस की पहचान से अवगत कराते हुए इनकी खेती करने, उपज की प्रोसेसिंग करने और इसको उपभोक्ताओं तक पहुंचाने की जानकारियों से लैस किया जाता है. एक महीने तक चलने वाले अंडर ग्रेजुएट लेवल के इस कोर्स के लिए स्नातक होना अनिवार्य है. इस कोर्स के लिए 22 सीटें हैं और इसकी फीस 29 हजार रुपये है.  इस कोर्स में खस, केवड़ा, गुलाब, मोगरा, बेला, चंपा, लैवेंडर और पचौली सहित दर्जनभर से ज्यादा खुशबूदार वनस्पतियों की खेती के तरीके, इनसे खुशबू निकालना, पैकिंग करना और रखरखाव आदि का प्रशिक्षण दिया जाता है.

साल भर में 33 कोर्स

सिंह ने बताया कि खुशबूदार वनस्पत‍ियों की खेती और इनके व्यवसायिक इस्तेमाल को लेकर संस्थान में साल भर ट्रेनिंग कोर्स चलते रहते हैं. अप्रैल 2023 से मार्च 2024 तक संस्थान द्वारा अलग अलग लेवल के 33 ट्रेनिंग कोर्स कराए जाएंगे. इनमें 2 दिन के कैप्सूल कोर्स से लेकर एक सप्ताह और एक महीने तक चलने वाले कोर्स शामिल हैं. उन्होंने स्पष्ट किया इन सभी ट्रेनिंग कोर्स के लिए 4 हजार रुपये से लेकर 33 हजार रुपये तक फीस लगती है. इसमें ट्रेनिंग के दौरान संस्थान में रुकने ठहरने और भोजन का खर्च भी शामिल है. 
 
उन्होंने बताया कि इनमें कुछ कोर्स ऑनलाइन कराए जाते हैं, जबकि तमाम रोगों का खुशबू से इलाज से जुड़ी 'एरोमाथेरेपी' तथा परफ्यूम एवं खुशबूदार तेलों के प्रयोग पर हर साल जुलाई में एक वर्कशॉप बेंगलुरु में और अक्टूबर में एक वर्कशॉप दिल्ली में की जाती है. इसके अलावा 'अरोमा टेक्नोलॉजी' में 4 एडवांस सर्टिफिकेट कोर्स और 4 मास्टर्स सर्टिफिकेट कोर्स भी कराए जाते हैं. ये कोर्स पूरी तरह से अरोमा टेक्नॉलॉजी की तकनीकी जानकारियों पर आधारित होते है. उन्होंने बताया कि इनमें से कुछ ट्रेनिंग प्रोग्राम कन्नौज के अलावा अहमदाबाद, चंडीगढ़, चेन्नई और दिल्ली में भी विशेष मांग पर आयोजित किए जाते हैं.

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इत्र से लेकर अगरबत्ती बनाने तक, बहुत कुछ है सीखने को

सिंह ने बताया कि संस्थान में खुशबूदार पौधों, फूलों और फलों से भांति भांति की सुगंध को ठोस, द्रव और गैस अवस्था में लेने के तरीकों को सिखाने के अलावा इनकी खेती के गुर भी किसानों को सिखाए जाते हैं. उन्होंने बताया कि इस इलाके में फूलों के रस से ही नहीं, बल्कि खस और मिंट जैसी घास एवं मिट्टी की सौंधी सुगंध तक से, इत्र बनाने का काम कुटीर उद्योग के रूप में होता है. 
 
उन्होंने कहा कि इस इलाके में सदियों से खुशबू की खेती और कारोबार होता आ रहा है. इसकी समृद्ध परंपरा को जिंदा रखते हुए किसानों और उद्यमियों को नई तकनीक से लैस करने के लिए यह संस्थान कौशल एवं अन्य संसाधन मुहैया कराता है. कौशल विकास के क्रम में संस्थान द्वारा दिए जाने वाले प्रशि‍क्षण में खुशबूदार वनस्पतियों की उन्नत खेती के साथ इत्र और परफ्यूम बनाने के अलावा, गुलाब जल, गुलकंद, फेसपैक, कॉस्मेटिक क्रीम और खुशबूदार तेल भी बनाना सिखाया जाता है. इतना ही नहीं, इस संस्थान में अगरबत्ती, धूपबत्ती एवं हवन सामग्री बनाने और इनके व्यवसाय से जुड़े तकनीकी कौशल को भी सीखा जा सकता है. इसके साथ ही इन वस्तुओं की दुनिया भर में मांग को देखते हुए इनकी आकर्षक पैकिंग और मार्केटिंग के गुर भी यहां सिखाए जाते हैं.