देश में अमरूद की बात हो तो इलाहाबादी अमरूद का नाम सबसे पहले लोगों की जुबां पर आता है. देश काल के बढ़ते क्रम में इलाहाबाद का नाम भले ही प्रयागराज हो गया है. लेकिन, अमरूद की पहचान आज भी पूरी दुनिया में इलाहाबादी अमरूद के नाम से होती हैं. यह नाम लोगों की जुबां पर पीढ़ियों से रचा बसा है. ये सब ऐसे ही नहीं है. इसके पीछे इस क्षेत्र की मिट्टी की विशेषता, मुगलकालीन इतिहास में दर्ज कहानियां, संगम नगरी की गंगा-जमुनी सांस्कृतिक विरासत और किसानों की मेहनत की अहम भूमिका है. जिसको लेकर मशहूर शायर अकबर इलाहाबादी ने क्या खूब कहा...
इलाहाबादी अमरूद की बात करें तो सेबिया किस्म से शुरुआत करना लाजिमी है, जिसे देखकर ये शक करना जायज है कि ये सेब है या अमरूद है. असल में इलाहाबादी सेबिया अमरूद की एक किस्म है, जो बिल्कुल सेब की तरह दिखती है. वहीं इलाहाबाद की सबसे मशहूर सफेदा और सुर्खा प्रजाति की अमरूदों की महक विदेश के कोने- कोने तक फैली हुई है.इलाहाबादी सुर्खा की सबसे ज्यादा डिमांड है.इसकी पहचान लाल रंगत और लाजवाब स्वाद है. सर्दियों के मौसम में प्रयागराज में सेब से महंगी कीमतों पर इलाहाबादी अमरूद बिकता है.
इलाहाबादी अमरूद का स्वर्णिम इतिहास
इलाहाबाद में संगम किनारे अकबर के द्वारा बनवाया हुआ किला आज भी मजबूती के साथ खड़ा है. तो वहीं इलाहाबाद के खुसरो बाग का अमरूद पूरी दुनिया में मशहूर है. मुगल काल में 1605 ईसवीं में अकबर के पुत्र सलीम उर्फ जहांगीर ने एक बाग का निर्माण करवाया. इस बाग में स्मारक के अलावा अलग-अलग तरह के कई फलों के पेड़ भी थे. वहीं यहीं एक अमरूद की विशेष किस्म भी लगाई गई थी. खुसरो बाग से निकलने वाले अमरूद की महक, इसका स्वाद के दीवाने मुगल बादशाह जहांगीर और उनके बेटे शहजादा खुसरो थे. फिर इसकी प्रसिद्धि धीरे-धीरे दूसरे देशों तक पहुंची.यहां से अमरूद की इस किस्म को दूसरे प्रदेशों में लगाने की कोशिश हुई. लेकिन, ये प्रयोग सफल नहीं रहा. इलाहाबाद की जलवायु और यहां की मिट्टी में वह खास बात है जो इस अमरुद को खास पहचान देती हैं. 500 सालों से इलाहाबादी सफेदा अमरूद का सफर 21वीं सदी तक पहुंच चुका है. आज भी इसके गुणों में कोई खास गिरावट नहीं हुई है.
इलाहाबादी सफेदा और सुर्खा अमरूद के दीवाने पूरे देश में है.आज भी यहां से गुजरने वाली ट्रेनों और बसों से जाने वाले लोग अपने साथ कोई मिठाई नहीं, बल्कि सर्दियों के मौसम में इलाहाबादी अमरूद को ले जाना पसंद करते हैं. क्योंकि इसका स्वाद और रंग के सामने देश के नामी हलवाई के हाथों से बनी मिठाई भी फीकी हैं. यहीं वजह है कि प्रयागराज में रहने वाले लोग आज भी सर्दियों के मौसम में अपने मेहमानों को इलाहाबादी खास अमरूद को भेंट करते हैं.
उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में स्थित केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान के वैज्ञानिक इलाहाबादी अमरूद की सफेदा, सुर्खा प्रजाति के अमरूदों का संरक्षण करने का काम कर रहा है.लखनऊ के रेहमान खेड़ा के केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान के परिसर में अब अलग तरीके से इलाहाबादी अमरूद के बाग को तैयार किया गया है. इस बाग में इलाहाबादी अमरूद अपने रंग और स्वाद के साथ-साथ महक से भी राजधानी के लोगों दीवाना बना रहा हैं. यहां तैयार की गई नर्सरी को किसान अपने खेतों तक पहुंचा रहे हैं.
अमरूद के विशेषज्ञ प्रधान कृषि वैज्ञानिक डॉ केके श्रीवास्तव ने बताया इलाहाबादी सुरखा सफेदा अमरूद की खास प्रजाति है, जो सबसे प्राचीन मानी जाती है.यह प्रजाति आज भी पूरी तरीके से सुरक्षित और संरक्षित है. उनके यहां तैयार नर्सरी से किसान बड़ी संख्या में इन प्रजाति के अमरूदों को ले जाते हैं और अपने बागों में लगाते हैं. इलाहाबादी अमरूद अपनी खास रंग और स्वाद के चलते लोगों को खूब पसंद आता है.
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