यूपी में उद्यान एवं खाद्य प्रसंस्करण विभाग कम पानी की उपलब्धता वाले बुंदेलखंड इलाके में केला, खजूर और स्ट्रॉबेरी सहित अन्य फल और सब्जियों की खेती अपनाने के लिए किसानों को लगातार प्रोत्साहित कर रहा है. बीते दिनों प्रदेश में मौसम के बिगड़े मिजाज ने किसानों की फसलों को नष्ट कर दिया. किसान इस संकट से जूझ रहे थे, तभी सरकार की तरफ से पिछले साल खरीफ की फसलों काे हुए नुकसान का हर्जाना, बीमा के माध्यम से दिया गया.
फसल बीमा की लेटलतीफी और बीमा के दायरे में फल एवं सब्जियां सभी जिलों में एक समान रूप से शामिल नहीं होने के कारण किसान, बागवानी फसलों की तरफ रुख करने से कतरा रहे हैं. उद्यान विभाग के अधिकारी भी दबी जुबान यह बात स्वीकारते हैं कि राज्य के स्तर पर बीमा का दायरा एक समान नहीं होना, नई फसलों की तरफ रुख कर रहे किसानों के लिए जोखिम और शंका को बढ़ाता है.
किसानों को फसल बीमा का लाभ देने के लिए प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना, देशव्यापी स्तर पर लागू है. इस योजना का संचालन केंद्र सरकार के मार्फत होता है. योजना के वित्त पोषण एवं संचालन में राज्य सरकारों की आंशिक जिम्मेदारी रहती है. यूपी जैसे बड़े राज्य में अगर बागवानी फसलों की बात की जाए तो सिर्फ 7 फसलें (केला, आम, पान, टमाटर, मिर्च, मटर और शिमला मिर्च) ही बीमा के दायरे में हैं.
इन फसलों के बीमा का लाभ पूरे राज्य के किसान नहीं उठा सकते हैं. जिन जिलों में इन फसलों की उपज ज्यादा होती है, उन्हीं जिलों में इनका बीमा हो सकता है. इस प्रकार कुल 75 जिलों वाले यूपी में इन 7 बागवानी फसलों का बीमा 51 जिलों में ही हो सकता है. ऐसे में 24 जिलों के किसान इनमें से किसी फसल का बीमा नहीं करा सकते हैं.
बीमा के दायरे वाली 7 बागवानी फसलों का जिन 51 जिलों में बीमा कराया जा सकता है, उनमें भी हर फसल के लिए अलग अलग जिले निर्धारित हैं. उद्यान विभाग शिमला मिर्च की खेती के लिए किसानों को पॉली हाऊस लगाने तक के लिए अनुदान दे रहा है, जिससे इस तरह की व्यावसायिक फसलों को किसान ज्यादा से ज्यादा अपनाएं. मगर, शिमला मिर्च का बीमा सिर्फ 5 जिलों (फिरोजाबाद, मुरादाबाद, बदायूं, बरेली और शाहजहांपुर) में हाे सकता है.
ललितपुर जिले के बागवानी किसान धर्मेंद्र सिंह का कहना है कि वह चाहते हुए भी शिमला मिर्च की खेती नहीं कर सकते हैं. जबकि उद्यान विभाग, बाजार में ऊंची कीमत पर बिकने वाली इस तरह की बागवानी फसलों को निरंतर बढ़ावा दे रही है. बांदा के प्रगतिशील बागवानी किसान प्रेम सिंह का कहना है कि फसल बीमा का आधा अधूरा सुरक्षा कवच होने से किसानों का गैर पारंपरिक फसलों के प्रति रुझान करने के लिए मन में शंका होना जायज है.
बागवानी फसलों के बीमा के दायरे में प्रदेश के जिन 51 जिलों काे शामिल किया गया है, उनमें केला की फसल का बीमा लखनऊ, गोरखपुर, फतेहपुर, बाराबंकी, प्रयागराज, बहराइच, कुशीनगर, कौशांबी, महाराजगंज, देवरिया, गोंडा, लखीमपुर, खीरी, अयोध्या, गाजीपुर, बलरामपुर, बलिया और कानपुर (नगर एवं देहात) जिले शामिल हैं.
इसी प्रकार मिर्च की खेती करने वाले जिले बदायूं, शाहजहांपुर, बरेली, कानपुर नगर, बाराबंकी, फिरोजाबाद, फतेहपुर, उन्नाव, वाराणसी, कौशांबी और मुरादाबाद के किसान अपनी फसल का बीमा करा सकते हैं.
रबी के सीजन में लगने वाले टमाटर के किसान सहारनपुर, हमीरपुर, बलरामपुर, शाहजहांपुर, कन्नौज, सोनभद्र, फिरोजाबाद, आगरा, बाराबंकी, एटा, अयोध्या, उन्नाव, कानपुर नगर, गाजीपुर, मैनपुरी, सीतापुर, अंबेडकरनगर, आजमगढ़ और मिर्जापुर जिलों में फसल बीमा करा सकते हैं.
मटर की उपज का बीमा कराने की सुविधा जालौन, झांसी, गोंडा, बाराबंकी, बस्ती, हमीरपुर, सुल्तानपुर, वाराणसी, प्रयागराज, बहराइच, देवरिया और एटा जिलों के किसानों को दी गई है. इन जिलों में किसानों को इन फसलों की बीमा राशि का 5 प्रतिशत प्रीमियम देना पड़ता है.
किसानों को फसल बीमा की पर्याप्त जरूरत होने के बावजूद फसल बीमा योजना का दायरा संकुचित होने के सवाल पर उद्यान विभाग के अधिकारियों ने दबी जुबान इतना ही कहा कि यह योजना पूरी तरह से केंद्र सरकार द्वारा संचालित है. इसके नियम भी केंद्र सरकार ही तय करती है. राज्य सरकार की जिम्मेदारी सिर्फ प्रीमियम राशि में अपना अंशदान करना और योजना को लागू करने तक ही सीमित है.
हालांकि अधिकारियों ने मौसम की बार बार की बेरुखी से किसानों के समक्ष फसल के जोखिम का संकट तेजी से गहराने की बात को स्वीकारते हुए माना कि केंद्र सरकार को किसानों की इस व्यवहारिक दिक्कत को समझते हुए फसल बीमा योजना का दायरा बढ़ाना चाहिए.
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