उत्तर प्रदेश ने मछली के उत्पादन में काफी तरक्की की है. प्रदेश के गोरखपुर के तराई इलाकों में इन दिनों तेजी से मछली पालन का कार्य बड़े पैमाने पर किया जा रहा है. गोरखपुर का तराई इलाका लो लैंड होने के कारण मछली पालन के लिए पूरी तरीके से मुफीद माना जाता है. देवरिया जिला में भी काफी बड़ा क्षेत्र लो लैंड है यहां पर 30 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में पानी जमा रहता है. ऐसे में जिलाधिकारी ने इस भूमि का उपयोग मखाना की खेती के लिए भी शुरू कराया है. मखाना सिर्फ बिहार के दरभंगा जिले में ही नहीं बल्कि अब उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले में भी होने लगा है. यहां किसानों के द्वारा मखाना और मछली पालन एक साथ किया जा रहा है जिससे उनकी आय में काफी इजाफा हुआ है. वहीं दूसरे किसान भी अब मखाना उत्पादन में तेजी से आगे बढ़ चढ़कर हिस्सा ले रहे हैं.
बिहार का दरभंगा जिला मखाना के उत्पादन में पूरे देश में जाना जाता है लेकिन अब उत्तर प्रदेश में भी मखाने की खेती देवरिया जिले में शुरू हो चुकी है. जिले के काफी बड़े इलाके में मखाने की पौधे की रोपाई किसानों द्वारा शुरू हो गई है. जिले के डीएम ने किसानों के लिए मखाने की खेती में पूरी मदद की है. जिले का 30000 हेक्टेयर भूमि आज भी लो लैंड माना जाता है. यहां की जलवायु मिथिला से काफी मिलती है. इसलिए अब यहां के किसान भी मखानाकी खेती करने लगे हैं.
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देवरिया जिले में मछली पालन का कार्य तो पहले से ही चल रहा था क्योंकि यहां के काफी बड़े क्षेत्र में भूमि जलमग्न रहती है जिसमें किसानों के द्वारा मछली पालन किया जाता है. वहीं अब इस तरह के लो लैंड भूमि में मखाना की खेती शुरू हो गई है. किसानमखाना की खेती के साथ-साथ मांगुर मछली का पालन भी एक साथ कर रहे हैं जिससे उनकी आमदनी में काफी इजाफा हुआ है. कृषि विशेषज्ञ डॉ. डी.एन पांडे ने बताया की किसान गंगा शरण श्रीवास्तव ने मछली पालन के साथ मखाना की खेती शुरू की है. मखाना के दो पौधों के बीच की दूरी 2 मीटर होनी चाहिए. मखाने को तैयार होने में 9 महीने तक समय लगता है. इस खेती के साथ मछली पालन भी सफलतापूर्वक किया जा सकता है.
कृषि विशेषज्ञ डॉ. डी.एन पांडे ने बताया कि देवरिया की मिट्टी और जलवायु पूरी तरीके से दरभंगा की तरह है. यहां मखाना की खेती के लिए स्वर्ण वैदेही प्रजाति सबसे उपयुक्त है. इसे काला हीरा नाम से भी जाना जाता है. मखाना मीठे जल की फसल है. मखाना की फसल तैयार होने में 9 मा का समय लगता है. वही प्रति हेक्टेयर 28 से 30 क्विंटल पैदावार होती है. वहीं प्रति क्विंटल मखाना का बाजार मूल्य 40000 रुपये तक है.
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