धान की कटाई शुरू होने के साथ ही पराली जलाने की घटनाएं भी होने लगी हैं. पिछले साल के मुकाबले इस बार पराली जलाने के मामले लगभग डबल हो गए हैं. इसके साथ ही प्रदूषण को लेकर भी चर्चा शुरू हो गई है. साथ ही ये भी कहा जा रहा है कि पराली जलाने से मिट्टी को नुकसान होता है और खेत में आग लगाने से मिट्टी में रहने वाले दोस्त कीटाणु मर जाते हैं, लेकिन पराली जलाने से मिट्टी को होने वाले नुकसान पर बात सिर्फ धान की पराली और पंजाब के किसानों के लिए ही क्यों होती है? पराली प्रदूषण के लिए धान और पंजाब ही सबसे ज्यादा कोसे जाते हैं. लेकिन, अगर पराली जलाने की घटनाओं पर ही बात करें तो गेहूं की फसल और मध्य प्रदेश का रिकॉर्ड भी बहुत खराब है. जहां पर गेहूं की पराली सबसे अधिक जलाई जाती है, लेकिन उससे होने वाले प्रदूषण पर कोई चर्चा तक नहीं होती.
गेहूं की पराली जलाने की वजह से सूखे चारे का संकट बढ़ रहा है. जब से गेहूं की कटाई मशीनों से शुरू हुई है तब से खेतों में गेहूं के पौधों का अवशेष छूट जाता है और उसे किसान जला देते हैं. उससे भी जमीन की उर्वरता खराब हो रही है. कायदे से समझा जाए तो मिट्टी के स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए पराली जलाने से रोकने के लिए एक राष्ट्रीय गाइडलाइन्स तैयार की जानी चाहिए. चाहे वो धान की पराली हो या फिर गेहूं की.
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दरअसल, किसान गेहूं के अवशेषों को भी जलाते हैं लेकिन वायु प्रदूषण फैलाने के लिए सबसे ज्यादा बदनाम धान ही होता है. क्योंकि जब अक्टूबर-नवंबर में धान की पराली जल रही होती है तब हवा की रफ्तार अप्रैल-मई जैसी नहीं होती. यही नहीं तब ओस भी पड़नी शुरू हो जाती है जिससे धूल और धुआं मिलकर सेहत के लिए खतरनाक हो जाते हैं. धान की पराली सबसे ज्यादा पंजाब में जलती है. जब यह धुआं दिल्ली की तरफ आता है तो मुद्दा बड़ा हो जाता है.
साल 2022 के सिर्फ दो महीने में ही 56 हजार से अधिक जगहों पर गेहूं की पराली जलाई गई थी. मध्य प्रदेश और पंजाब में सबसे ज्यादा घटनाएं हुई हैं. लेकिन हवा चलने की वजह से धुएं का उतना असर नहीं होता जितना इन दिनों धान की पराली जलाने से होता है. गेहूं की पराली जलाने की मॉनिटरिंग सिर्फ दो महीने तक (एक अप्रैल से 31 मई 2022) तक की गई थी और इस दौरान सिर्फ पांच राज्यों ही 56157 केस सामने आए थे. जबकि धान की पराली जलाए जाने की मॉनिटरिंग ढाई महीने (15 सितंबर से 30 नवंबर 2022) के बीच छह राज्यों में की गई और इसमें 69,615 मामले आए थे. ऐसे में गेहूं पराली जलाने के मामले कहीं भी धान से कम नहीं दिखाई दे रहे हैं. लेकिन बदनाम सिर्फ धान है.
केंद्र सरकार ने इस साल पांच राज्यों पंजाब, हरियाणा, यूपी, दिल्ली और मध्य प्रदेश में गेहूं के अवशेष जलाने के मामलों की सैटेलाइट से मॉनिटरिंग करवाई है. एक अप्रैल से 31 मई तक दो महीनों के दौरान हुई मॉनिटरिंग में पता चला है कि मध्य प्रदेश में सबसे ज्यादा 27759 जगहों पर गेहूं की पराली जलाई गई है. इस मामले में दूसरे नंबर पर पंजाब था जहां पर 14511 घटनाएं हुईं. देश के सबसे बड़े गेहूं उत्पादक उत्तर प्रदेश में इसके 10981 मामले दर्ज किए गए. हरियाणा में 2878 मामले दर्ज किए गए. जबकि दिल्ली में 28 केस सामने आए थे.
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गेहूं की पराली जलाने के मामले में मध्य प्रदेश का होशंगाबाद पहले नंबर पर है, जहां एक ही सीजन में 4067 केस सामने आए थे. दूसरे नंबर पर विदिशा है जहां पर 3756 केस हुए. रायसेन में 2661 केस आए थे. चौथे नंबर पर यूपी का सिद्धार्थ नगर है जहां पर 2541 केस हुए थे. यहां के महराजगंज में 1495 जबकि पंजाब के फिरोजपुर में 1429 केस सामने आए थे.
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