भिंडी की सब्जी जितनी खाने में स्वादिष्ट और गुणकारी है वहीं इसकी खेती करने वालों के लिए भी इसकी खेती फायदे का सौदा है. ग्रीष्मकालीन भिंडी की फसल लेने के कुछ अतिरिक्त फायदे हैं. इस मौसम में आमतौर पर दूसरी सब्जियां कम उपलब्ध होने के कारण बाजार मूल्य अच्छा मिलता है. यही नहीं इस दौरान मोजैक रोग का प्रकोप बहुत ही कम होता है. इसलिए इस मौसम में भिंडी की वे किस्में भी बो सकते हैं जो मोजैक के प्रति संवेदनशील होती हैं. ग्रीष्मकालीन भिंडी के उत्पादन की उन्नत तकनीकी को अपनाकर अधिक उपज प्राप्त कर सकते हैं. लेकिन, किसान को असल में तब इसका ज्यादा फायदा मिलेगा जब उत्पादन अच्छा होगा. अच्छा उत्पादन के लिए उर्वरकों का संतुलित इस्तेमाल बहुत जरूरी है.
खाद और उर्वरक की मात्रा भूमि में उपस्थित पोषक तत्वों पर निर्भर करती है. कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार 15 से 20 टन सड़ी गोबर की खाद प्रति हेक्टेयर की दर से बुवाई के 25 से 30 दिनों पूर्व खेत में मिला लेनी चाहिए. इसके अतिरिक्त 40 किलोग्राम नाइट्रोजन, 40 किलोग्राम फॉस्फोरस और 40 किलोग्राम पोटाश को प्रति हेक्टेयर की दर से बुआई से पूर्व आखिरी जुताई के समय देना चाहिए. खड़ी फसल में 40 से 60 किलोग्राम नाइट्रोजन को दो बराबर भागों में बांटकर पहली मात्रा बुआई के 3-4 सप्ताह बाद पहली निराई-गुड़ाई के समय तथा दूसरी मात्रा फसल में फूल बनने की अवस्था मे देना लाभप्रद है.
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भिंडी की फसल को लगभग सभी प्रकार की भूमि पर उगाया जा सकता है. गर्मियों की फसल के लिए भारी दोमट मृदा अधिक उपयुक्त रहती है. इस मृदा में नमी अधिक समय तक बनी रहती है. बरसात वाली फसल के लिए बलुई दोमट भूमि का चयन करना चाहिए, जिसमें जल निकास अच्छा हो. खेत की एक बार मिट्टी पलटने वाले हल से तथा तीन-चार बार हैरो या देसी हल से जुताई करके मिट्टी को भुरभुरा बनाकर खेत को समतल कर लेना चाहिए. बुआई के समय खेत में उपयुक्त नमी होनी अति आवश्यक है. यदि भूमि में नमी की कमी हो तो खेत की तैयारी से पहले एक सिंचाई अवश्य कर लेनी चाहिए. इससे पैदावार अच्छी होगी.
गर्मी के मौसम में आवश्यकतानुसार 6-7 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करते रहना चाहिए अन्यथा नमी के अभाव में पौधे सूखने लगते हैं. इसके अलावा अच्छी पैदावार के लिए फसल में 2-3 बार निराई-गुड़ाई करके खरपतवारों को निकाल देना चाहिए. इससे खरपतवार नियंत्रण के साथ भूमि में वायु संचार भी ठीक रहेगा.
खेत की तैयारी के समय अंतिम जुताई के साथ कटुआ कीट के नियंत्रण के लिए भूमि में दानेदार फ्यूराडॉन 25 किलोग्राम अथवा थिमेट (10 जी) 10-15 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से मिला लेनी चाहिए.
बुवाई के पहले बीज को 24 घंटे पानी मे भिगो लें. इसके बाद बीजों को निकालकर कपड़े की थैली में बांधकर गर्म स्थान में रख दें तथा अंकुरण होने लगे तभी बुआई करें. बीजजनित रोगों की रोकथाम के लिए बुवाई से पूर्व थायरम या कैप्टॉन (2 से 3 ग्राम दवा प्रति किग्रा) से बीज को उपचारित कर लेना चाहिए.
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