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यूपी में पराली से किसानों की होगी बंपर कमाई, मात्र 20 रुपये में बदलेगी किस्मत, जानिए एक्सपर्ट से पूरा प्रोसेस

यूपी में पराली से किसानों की होगी बंपर कमाई, मात्र 20 रुपये में बदलेगी किस्मत, जानिए एक्सपर्ट से पूरा प्रोसेस

खास बात यह भी है कि वेस्ट डीकम्पोजर ऐसे तत्व फसल अवशेषों से खुद लेकर बढ़ाता है, जिनकी जरूरत होती है. दूसरा जो जमीन में उर्वरक के पोषक तत्व (लोहा, बोरान, कार्बन आदि) पड़े हैं उन्हें घोलकर पौधे के लायक बनाता हैं.

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रायबरेली के सहायक विकास अधिकारी कृषि दिलीप कुमार सोनी (Photo-Kisan Tak) रायबरेली के सहायक विकास अधिकारी कृषि दिलीप कुमार सोनी (Photo-Kisan Tak)

Parali News: गेहूं और रबी फसलों की कटाई करने के बाद किसान कई बार खेत में ही उसकी पराली जला देते हैं. इस वजह से खेत में अगली फसल की खेती करने पर किसानों को अच्छी उपज नहीं मिलती है. फसलों की कटाई के बाद देश में पराली जलाने की समस्या एक गंभीर मुद्दा बन जाती है. किसान अब पराली जलाने की बजाय इसे हरित खाद में परिवर्तित कर सकते हैं. जिससे पर्यावरण भी सुरक्षित रहेगा और उनके खेत की उर्वरा शक्ति भी बढ़ेगी.

पराली जलाने से पर्यावरण को नुकसान

रायबरेली के राजकीय कृषि केंद्र शिवगढ़ के सहायक विकास अधिकारी कृषि दिलीप कुमार सोनी ने बताया कि रबी की फसल की कटाई का समय चल रहा है. ऐसे में किसान कटाई के बाद निकलने वाली पराली को खेतों से साफ करने के लिए उसे जला देते हैं. जिससे भारी मात्रा में धुंआ व गैसें निकलती हैं जो हवा में मिलाकर हमारे पर्यावरण को नुकसान पहुंचती हैं. साथ ही हमारी कृषि भूमि भी प्रभावित होती है. यही वजह है कि फसलों की पैदावार घटती जा रही है क्योंकि पराली जलाने से खेत की उर्वरक क्षमता घटती है और खेत में मौजूद सूक्ष्म जीवाणु भी जल जाते हैं. 

उन्होंने बताया कि वैज्ञानिक आंकड़ों के अनुसार एक टन कृषि अवशेष के जलाए जाने से यहां दो किलोग्राम सल्फर डाइ ऑक्साइड, 60 किलोग्राम कार्बन मोनो ऑक्साइड, 1460 किलोग्राम कार्बन डाई ऑक्साइड, 3 किलोग्राम पार्टिकुलेट मैटर, 199 किलोग्राम तक राख निकलती है. जिससे बड़े स्तर पर प्रदूषण फैलना लाजिमी है.

जानिए हरित खाद बनाने का प्रोसेस

सहायक विकास अधिकारी कृषि दिलीप कुमार सोनी बताते हैं कि जैव अपघटक के अंदर जिंदा कीटाणु होते हैं जो हमारी फसल से निकले कृषि अवशेष मे पहुंचते ही उसे 30 से 35 दिनों में डीकंपोज कर हरित खाद बना देते हैं. ऐसा करने के लिए आपको जैव अपघटक लेना होगा. जो आप राजकीय कृषि केंद्र से इसे निशुल्क प्राप्त कर सकते हैं. उसके बाद किसी बड़े बर्तन में पहले 200 लीटर पानी से भरे हुए एक ड्रम में डाला लें. इसमें दो किलो गुड़ दें. इसे सुबह एवं शाम में दो बार लकड़़ी से मिलाने की प्रक्रिया को पांच से 6 दिन करें. 5-6 दिनों तक इस विधि को अमल में लगाने से घोल में मौजूद ऊपरी सतह पर जब झाग बन जाएगा.

मात्र 20 रुपए में तैयार ये मिश्रण

खास बात यह भी है कि वेस्ट डीकम्पोजर ऐसे तत्व फसल अवशेषों से खुद लेकर बढ़ाता है, जिनकी जरूरत होती है. दूसरा जो जमीन में उर्वरक के पोषक तत्व (लोहा, बोरान, कार्बन आदि) पड़े हैं उन्हें घोलकर पौधे के लायक बनाता हैं. एक लीटर का घोल बनाने में मात्र 20 रुपए का खर्च आएगा. 

छिड़काव से खेतों की बढ़ेगी उर्वरा शक्ति

दिलीप सोनी बताते हैं कि 6 दिन बाद उस घोल में आपको जीवाणु दिखने लगे तो आप इस का छिड़काव अपने खेतों में कर दें. छिड़काव करने के 30 से 35 दिन बाद पराली पूरी तरह से गलकर हरित खाद बन जाएगी जो आपके खेतों की उर्वरा शक्ति बढ़ाएगी.

यूपी में पराली जलाने के मामलों में आई कमी

कंबाइन से कटाई के बाद खेतों में ही फसल अवशेष जलाने की आम परंपरा रही है. हालांकि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के प्रयासों से इसमें काफी कमी आई है. सरकार पराली जलाने से पर्यावरण, जमीन की उर्वरता आगजनी के खतरे और पशुओं के चारे के आसन्न संकट को लेकर व्यापक जागरूकता अभियान चला रही है. साथ ही फसल अवशेष को सहजने के लिए अनुदान पर कृषि यंत्र इनकी कंपोस्टिंग के के बायो डी कंपोजर भी उपलब्ध करा रही है.

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