इस साल देश में किसान गन्ने की बंपर बुवाई कर रहे हैं. आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, इस वर्ष गन्ने के रकबे में 4.5 प्रतिशत का इजाफा हुआ है. ऐसे में एक्सपर्ट का कहना है कि इससे मिलों को 2024-25 चीनी सत्र के लिए पेराई कार्य शुरू करने पर अधिक मात्रा में गन्ने उपलब्ध मिलेंगे. खास बात यह है कि इस साल अधिक गर्मी और लू पड़ने की वजह से फसल भी अच्छी होने की उम्मीद है. खास कर उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र में गन्ने की फसल में अभी तक किसी तरह के रोग नहीं लगे हैं.
बिजनेस लाइन की रिपोर्ट के मुताबिक, कई राज्यों से प्राप्त गन्ने की बुवाई के नए आंकड़ों के अनुसार, 7 जून तक देश में गन्ने का कुल रकबा 54.21 लाख हेक्टेयर दर्ज किया गया है, जो एक साल पहले की समान अवधि में 51.88 लाख हेक्टेयर (एलएच) था. एक आधिकारिक सूत्र ने बताया कि हमने इस साल गन्ना क्षेत्र के भौतिक सर्वेक्षण के साथ-साथ रिमोट सेंसिंग तकनीक की मदद ली है और पौधे (पहली फसल) को पेड़ी (दूसरी फसल) से अलग किया है, जो पहले कभी नहीं किया गया था. इससे हमें गन्ना उत्पादन का वास्तविक अनुमान लगाने में मदद मिलेगी, क्योंकि प्रत्येक किस्म में उपज अलग-अलग होती है.
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उत्पादन लक्ष्य अधिकारी ने बताया कि सरकार इस महीने के अंत में खरीफ बुवाई अपडेट के साथ गन्ना रकबे का डेटा जारी करेगी. पेड़ी फसल की तुलना में पेड़ी फसल की उपज 10-20 प्रतिशत कम है. 2024-25 के लिए गन्ने का लक्षित उत्पादन 470 लाख मीट्रिक टन है, जबकि 2023-24 में अनुमानित उत्पादन 442.53 लाख मीट्रिक टन था. उत्तर प्रदेश के शामली जिले के किसान जितेंद्र हुड्डा ने कहा कि इस साल फसल बहुत अच्छी स्थिति में है. अत्यधिक गर्मी के कारण खरपतवार की समस्या सामने नहीं आई है, जिससे खरपतवारनाशकों पर हमारा खर्च बच गया है.
हुड्डा ने कहा कि एकमात्र समस्या बारिश की होगी और अगर लाल सड़न रोग पर काबू पा लिया जाता है, तो इस साल गन्ने की पैदावार सबसे अधिक हो सकती है. जून 2022 से सरकार ने चीनी निर्यात को प्रतिबंधित श्रेणी में डाल दिया है, जिसे केवल परमिट के साथ ही भेजा जा सकता है. चालू सीजन में सरकार ने राजनयिक अनुरोधों पर राष्ट्रीय सहकारी निर्यात लिमिटेड (एनसीईएल) के माध्यम से कुछ देशों को छोड़कर किसी भी निर्यात की अनुमति नहीं दी है. भारत का चीनी निर्यात 2022-23 सीजन में 6.3 मिलियन टन, 2021-22 में 11 मिलियन टन, 2020-21 में 7 मिलियन टन, 2019-20 में 5.9 मिलियन टन और 2018-19 में 3.8 मिलियन टन था.
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