महाराष्ट्र में सोयाबीन उत्पादक किसानों की समस्या कम होने का नाम नहीं ले रही हैं. पिछले कुछ महीनों से किसानों सोयाबीन का उचित दाम नहीं मिल रहा हैं.राज्य की अधिकांश मंडियों में किसानों को सोयाबीन कीमतों में भारी गिरावट देखी जा रही है. जबकि सोयाबीन की गिनती दलहन-तिलहन दोनों फसलों में होती है. सही दाम नहीं मिलने से किसान निराश है उनका कहना हैं कि सोयाबीन खेती छोड़ दूसरी फसल की खेती करेंगे. मनमाड मंडी में 28 फरवरी को किसानों को मात्र 3501 रुपये प्रति क्विंटल के न्यूनतम दाम पर सोयाबीन बेचने पर मजबूर होना पड़ा. जालना जिले मंडी में किसानों को न्यूनतम दाम सिर्फ 30 रुपये किलो मिला. किसानों को इस साल एमएसपी से कम भाव मिल रहा है.
ऐसा भी नहीं है कि महाराष्ट्र में आवक बहुत ज्यादा हो इसलिए भाव कम मिल रहा हो कई मंडियों आवक कम पहुंच रहा है इसके बावजूद किसानों सही दाम नहीं मिल रहा हैं. व्यापारी किसानों से सोयाबीन 4100 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से खरीद रहे हैं, जिससे किसान काफी हैरान हैं. क्योंकि 4600 रुपये तो इसकी एमएसपी है. महाराष्ट्र में सोयाबीन प्रमुख फसल है. इसे नकदी फसल माना जाता है इसीलिए इसकी खेती बड़े पैमाने पर की जाती है. किसानों का कहना हैं कि मिल रहे कम भाव से अपनी लागत भी नहीं निकाल पा रहे हैं.
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महाराष्ट्र स्टेट एग्रीकल्चर प्राइस कमीशन के पूर्व चेयरमैन पाशा पटेल दावा करते हैं कि महाराष्ट्र में सोयाबीन उत्पादन की लागत प्रति क्विंटल 6234 रुपये आती है. जबकि केंद्र सरकार ने सोयाबीन की लागत प्रति क्विंटल 3029 रुपये ही बताई है. उधर, केंद्र सरकार ने सोयाबीन की एमएसपी में 300 रुपये का इजाफा करके 2023-24 के लिए इसे 4600 रुपये प्रति क्विंटल किया है. किसानों का कहना है कि अगर मंडियों में इतना दाम भी मिल रहा है तो उसे संतोषजनक माना जाएगा. लेकिन ज्यादातर मंडियों में इससे कम दाम ही चल रहा है. हालांकि किसानों को उम्मीद है कि इस साल भाव आगे चलकर बढ़ेगा.
महाराष्ट्र में कपास, प्याज और गन्ने के अलावा सोयाबीन भी महत्वपूर्ण फसल है. सोयाबीन को तिलहन और दलहन दोनों फसल माना जाता है लेकिन खाद्य तेलों की कमी की वजह से इसका इस्तेमाल तिलहन में अधिक होता है. भारत खाद्य तेलों पर दूसरे देशों पर ही निर्भर है. इसके बावजूद इसके किसानों को अच्छा दाम नहीं मिलता यह काफी निराशाजनक है. महाराष्ट्र के मराठवाडा भाग में किसान सोयाबीन कि खेती पर ही निर्भय रहते हैं ऐसे में मिल रहे कम भाव के चलते किसान आर्थिक संकट में नज़र आ रहे हैं. किसानों का कहना हैं कि अगले साल से इसकी खेती बंद कर देंगे.
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