वैज्ञानिकों ने नेट हाउस में उगाया केसर, अब इस राज्य के आदिवासी किसान भी कर सकते हैं इसकी खेती

वैज्ञानिकों ने नेट हाउस में उगाया केसर, अब इस राज्य के आदिवासी किसान भी कर सकते हैं इसकी खेती

कृषि वैज्ञानिकों और बागवानी में अनुसंधान सहयोगी डॉ.वामशी कृष्ण सुदाला के साथ चर्चा के बाद एक संरचित योजना तैयार की गई है. इस योजना के तहत अगस्त, सितंबर और अक्टूबर महीने के दौरान अलग- अलग तारीखों में केसर की बुवाई की गई. इस दौरान छाया जाल, ग्लास हाउस और खुले मैदान में केसर बोया गया.

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वैज्ञानिकों ने नेट हाउस में उगाया केसर, अब इस राज्य के आदिवासी किसान भी कर सकते हैं इसकी खेतीअब आंध्र प्रदेश में किसान कर सकते हैं केसर की खेती. (सांकेतिक फोटो)

आंध्र प्रदेश में भी किसान अब केसर की खेती सकते हैं. यहां के अल्लूरी सीतारमा राजू (एएसआर) जिले के चिंतापल्ले के क्षेत्रीय कृषि और अनुसंधान स्टेशन (आरएआरएस) के वैज्ञानिकों ने केसर की खेती करने में सफलता पाई है. कई महीनों की कड़ी मेहनत और शोध के बाद आरएआरएस को यह सफलता हाथ लगी है. कहा जा रहा है कि आरएआरएस के वैज्ञानिकों ने ग्लास हाउस और नेट हाउस के अंदर केसर उगाया है. शोधकर्ताओं की माने तो ग्लास हाउस में केसर की फसल की ग्रोथ तेजी से हुई. उसके बीज नेट हाउस के मुकाबले ग्लास हाउस ने जल्दी अंकुरित हुए. ऐसे में आरएआरएस के शोधकर्ताओं को उम्मीद है कि केसर की खेती से स्थानीय किसानों की किस्मत बदल सकती है.

टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, लोगों को लगता है कि केसर की खेती सिर्फ कश्मीर में ही की जाती है. लेकिन वैज्ञानिकों ने इस सोंच को बदल दिया है. आरएआरएस की सफलता के बाद दक्षिण भारत में भी किसान केसर की खेती कर सकते हैं. वैज्ञानिकों के अनुसार, चिंतापल्ले और एएसआर जिले के कुछ अन्य हिस्सों में मौसम ठंड रहता है. ऐसे में यहां का मौसम केसर की खेती के लिए अनुकूल है. वैज्ञानिकों का कहना है कि खुले मैदान में भी केसर की बुवाई की गई थी, लेकिन अंकुरण नहीं हुआ. वहीं, छायादार जालों में बोई गई केसर की फसलें लहलहा रही हैं.

खुले मैदान में केसर बोया गया

वहीं, अनुसंधान निदेशक डॉ. प्रशांति के अनुरोध पर अन्नामय्या जिले में कमरे के अंदर केसर की खेती करने की उपलब्धि हासिल करने वाले पी श्रीनिधि ने चिंतापल्ले का दौरा किया था. कृषि वैज्ञानिकों और बागवानी में अनुसंधान सहयोगी डॉ.वामशी कृष्ण सुदाला के साथ चर्चा के बाद एक संरचित योजना तैयार की गई है. इस योजना के तहत अगस्त, सितंबर और अक्टूबर महीने के दौरान अलग- अलग तारीखों में केसर की बुवाई की गई. इस दौरान छाया जाल, ग्लास हाउस और खुले मैदान में केसर बोया गया.

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खुले मैदान में केसर की खेती में सफलता नहीं मिल पाई

डॉ. वामशी कृष्ण सुदाला ने कहा कि अगस्त, सितंबर और अक्टूबर के दौरान कुल 6,500 कॉर्म बोए गए थे. लेकिन, ग्लास हाउस खेती में सबसे अधिक अंकुरण दर देखी गई. इसके बाद छाया जाल विधि में भी फसल की अच्छी ग्रोथ हुई. जबकि खुले मैदान में बारिश और कुछ अन्य स्थितियों के कारण केसर का कम अंकुरण हुआ. उन्होंने कहा, ग्लास हाउस में केसर की खेती करने पर अच्छे परिणाम मिले हैं. वहीं, बारिश के कारण खुले मैदान में केसर की खेती में सफलता नहीं मिल पाई.

केसर की फसलें खिलने लगी हैं

डॉ. वामशी कृष्ण सुदाला ने कहा कि अगस्त और सितंबर के दौरान शेड नेट में बोई गई केसर की फसलें खिलने लगीं, जबकि ग्लास हाउस में बोई गई फसल खिलने के कगार पर पहुंच गई है. उन्होंने कहा कि ऐसे केसर की फसल अवधि 90 से 110 दिन है. इसके प्रत्येक पौधे में तीन से चार फूल लगते हैं. उन्होंने कहा कि हमने कुछ ग्राम केसर की कटाई की है और हम केसर को तेज गर्मी में रखे बिना सुखाने का काम कर रहे हैं. हम चिंतापल्ले में उगाए गए केसर को आने वाले दिनों में गुणवत्ता परीक्षण के लिए भेजेंगे. डॉ.एम सुरेश कुमार, एडीआर, आरएआरएस चिंतापल्ली ने कहा कि अनुसंधान ने साबित कर दिया है कि क्षेत्र में केसर की खेती के लिए जलवायु अनुकूल है.

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