महंगाई पर लगाम लगाने के लिए केंद्र सरकार पूरी कोशिश कर रही है. उसे उम्मीद है कि खरीफ फसलों का रकबा बढ़ने से देश में खाद्य पदार्थों का उत्पादन बढ़ेगा. इससे बढ़ती कीमतें नियंत्रित होंगी. एक अधिकारी ने कहा कि अगर धान सहित तमाम खरीफ फसलों की बुवाई में तेजी आती है, तो यही अच्छी बात है. इससे खाद्य पदार्थों की कीमतों को कम करने में मदद मिलेगी. वहीं, एक दूसरे अधिकारी ने कहा कि इस साल अप्रैल लेकर शुरुआती जून तक कई राज्यों में भीषण गर्मी पड़ी है. इससे हरी सब्जियों पर बुरा असर पड़ा. उत्पादन में गिरावट आने की वजह से हरी सब्जियां महंगी हो गई हैं. खास कर आलू और प्याज के रेट में कुछ ज्यादा ही बढ़ोतरी हुई है. एक साल में प्याज 106 फीसदी महंगा हो गया है.
हिन्दुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, एक साल पहले की तुलना में 30 जून को प्याज की औसत थोक कीमतें 106 फीसदी बढ़कर 1,260.66 रुपये प्रति क्विंटल से 2,603.55 प्रति क्विंटल हो गईं. वहीं, थोक आलू की कीमतें 2,116 प्रति क्विंटल से बढ़कर 1,076.14 प्रति क्विंटल हो गईं. यानी एक साल यह 96 प्रतिशत की वृद्धि है. ऐसे में एक्सपर्ट का कहना है कि देश में महंगाई दर में सब्जियों की हिस्सेदारी 6 फीसदी है. एचटी विश्लेषण के अनुसार, खास कर आलू, प्याज और टमाटर जैसी तीन सब्जियां पर एक परिवार के मासिक खर्च का 44 फीसदी हिस्सा बनाती हैं.
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2 जुलाई को प्याज की देशव्यापी मॉडल दर (औसत का एक प्रकार) 42.21 रुपये प्रति किलो थी, जो एक साल पहले की तुलना में 81 फीसदी अधिक है, जब कीमत 23.29 प्रति किलो थी. वहीं, आलू का खुदरा मूल्य एक साल पहले की तुलना में 57 फीसदी बढ़कर 21.91 रुपये प्रति किलो से 34.4 रुपये प्रति किलो हो गया है. पिछले साल अगस्त में, खुदरा प्याज की कीमतें चौगुनी हो गई थीं, जिससे सरकार को जनता को सब्सिडी वाले प्याज बेचने की शुरुआत करनी पड़ी. अनियमित वर्षा के कारण 2023 में प्याज का उत्पादन 20 फीसदी कम हो गया. पिछले साल खराब मॉनसून के लंबे समय तक चलने वाले प्रभावों ने रबी या सर्दियों में बोए गए प्याज के उत्पादन को पिछले वर्ष के 23.7 मिलियन टन की तुलना में 20 फीसदी घटाकर 19 मिलियन टन कर दिया. रबी प्याज महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह देश की वार्षिक आपूर्ति का 75 प्रतिशत तक आपूर्ति करता है.
दुनिया के सबसे बड़े प्याज उत्पादक देश भारत ने पिछले साल दिसंबर में इस वस्तु के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया था, जिसे 4 मई को हटा लिया गया. 40 फीसदी शुल्क के साथ निर्यात की अनुमति दी गई थी. अप्रैल से लगातार बढ़ते तापमान और जलाशयों के गिरते स्तर ने मौसमी सब्जियों के उत्पादन को प्रभावित किया है, जिनके स्टॉक की संघीय निगरानी नहीं की जाती है, जैसे कि भिंडी, लौकी, बीन्स, गोभी और शलजम. व्यापारियों के अनुसार, गर्म हवाओं के कारण ताजी सब्जियां भी खराब हो गई हैं, जिससे कीमतों पर असर पड़ा है.
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