टमाटर और प्याज की तरह, भारत में आलू का सेवन बारहमासी रूप से किया जाता है. इसकी खपत अधिक है इसलिए आलू की खेती भी बड़े पैमाने पर की जाती है. यह जमीन के अंदर उगाई जाने वाली एक कंदीय फसल है, जिसकी खेती करना बहुत आसान है, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में आलू की पैदावार कम होने के कारण अब बहुत कम लोग इसकी खेती करना पसंद करते हैं.
इसके पीछे जलवायु संबंधी कारण समझें या बाजार में आलू की कीमतों में उतार-चढ़ाव. कृषि विशेषज्ञों के मुताबिक आलू की खेती से बेहतर उत्पादन प्राप्त करना कोई बहुत मुश्किल काम नहीं है. इसके लिए सबसे पहले मिट्टी की जांच, उन्नत किस्म के बीजों का उपयोग (टॉप पोटेटो सीड्स) और खेती की सही विधि जानना जरूरी है.
मौसम की स्थिति को देखते हुए सितंबर के अंत से आलू की खेती शुरू हो जाती है. इसकी अगेती बुआई के लिए सबसे उपयुक्त समय 15 से 25 सितम्बर तथा देर से बुआई के लिए 15 से 25 अक्टूबर तक है. कई किसान आलू की पछेती बुआई 15 नवंबर से 25 दिसंबर के बीच भी करते हैं.
बुआई से पहले खेत की मिट्टी को जैविक विधि से तैयार किया जाता है, ताकि आलू की अच्छी पैदावार प्राप्त हो सके. इसके अलावा बीज उपचारित करने से भी आलू की फसल में नुकसान की संभावना को कम किया जा सकता है.
केंद्रीय आलू अनुसंधान संस्थान, शिमला द्वारा आलू की कई उन्नत किस्में विकसित की गई हैं, जो सामान्य किस्मों की तुलना में 152 से 400 क्विंटल तक उत्पादन देती हैं. कुफ़ारी आलू की ये किस्में मात्र 70 से 135 दिनों में पक जाती हैं.
इसमें कुफरी अलंकार, कुफरी चंद्र मुखी, कुफरी नवताल जी 2524, कुफरी ज्योति, कुफरी लालिमा, कुफरी शीलमान, कुफरी स्वर्ण, कुफरी सिन्दूरी, कुफरी देवा आदि शामिल हैं. इसके अलावा कुफरी चिप्सोना-2, कुफरी गिरिराज, कुफरी चिप्सोना-1 और कुफरी आनंद की गिनती आलू की नवीनतम विकसित किस्मों (टॉप पोटैटो वेरायटीज) में की जा रही है.
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