महाराष्ट्र में प्याज के दाम लगातार बढ़ रहे हैं. राज्य की कई मंडियों में इसका थोक दाम 55 से 60 रुपये प्रति किलो तक पहुंच गया है. राज्य में खरीफ सीजन के प्याज इस साल लगभग एक महीने देरी से आएगा, क्योंकि राज्य के कई हिस्सों में सूखा पड़ा था. इसलिए जो फसल अब आ जानी चाहिए वो नवंबर मध्य तक आने का अनुमान है. इसलिए अगले एक महीने तक दाम कम होने का अनुमान नहीं है. अब किसानों के पास भी ज्यादा प्याज नहीं बचा है. प्याज का स्टोर अब व्यापारियों के पास ज्यादा है. राज्य में प्याज़ के हालात ऐसे बता रहे हैं कि इसके दाम 100 रुपये प्रति किलो तक पहुंच सकते हैं.
प्याज उत्पादन में महाराष्ट्र देश में पहले नंबर पर है. यह देश का लगभग 43 प्रतिशत उत्पादन करता है. यहां नासिक में करीब 20 बड़ी प्याज मंडियां हैं. एशिया की सबसे बड़ी प्याज मंडी लासलगांव भी यहीं है. इसलिए महाराष्ट्र में प्याज़ का दाम बढ़ने की वजह से पूरे देश में दाम बढ़ जाता है. राज्य के अधिकांश जिलों में प्याज की खेती होती है वो भी साल में तीन बार. इसमें 65 प्रतिशत प्याज का उत्पादन रबी सीजन में और बाकी अर्ली खरीफ और खरीफ सीजन में होता है. इस बार खरीफ सीजन की फसल राज्य में कम भी है और लेट भी हो गई है.
महाराष्ट्र कांदा उत्पादक संगठन के अध्यक्ष भारत दिघोले का कहना है जो दाम बढ़ा है उससे कुछ किसानों के घाटे की थोड़ी सी भरपाई हो जाएगी. क्योंकि पिछले काफी समय से किसान घाटे में प्याज़ बेच रहे हैं. इसी वजह से राज्य के काफी किसानों ने इसकी खेती कम कर दी है. अब किसानों के पास प्याज बहुत कम है, ट्रेडर्स को फायदा मिल रहा है. बहुत कम किसान हैं जिनके पास ज्यादा प्याज बचा है. कुछ किसानों के पास ज्यादा प्याज बचा भी है तो उन्हें इस दाम के बढ़ने से मुनाफा नहीं हो रहा, बल्कि उनका पुराना घाटा पूरा हो रहा.
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किसान काफी समय से प्याज का सही दाम न मिलने से परेशान हैं. इसलिए वो खेती कम कर रहे. नंदुरबार में कुछ किसानों ने प्याज की खेती कम कर मक्का और कलिंदर (तरबूज) की बुवाई करने की तैयारी कर ली है. कलिंदर की फसल 60 से 65 दिन में आ जाती है. मक्के की फसल प्याज की फसल से भी कम लागत पर पैदा होती है और दाम अच्छा मिल जाता है. यही हाल राज्य के दूसरे हिस्सों के भी है, जहां किसान प्याज के बदले दूसरी फसल की खेती के बारे में सोच रहे हैं.
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