निर्यातबंदी की वजह से जहां महाराष्ट्र की कई मंडियों में प्याज के भाव काफी गिरे हुए हैं तो वहीं कुछ में किसानों को अच्छा रेट भी मिल रहा है. जिन मंडियों में आवक बहुत कम है उनमें दाम ठीक है, लेकिन जहां आवक ज्यादा है वहां दाम गिर गए हैं. महाराष्ट्र एग्रीकल्चरल मार्केटिंग बोर्ड के अनुसार 2 मई को नागपुर जिले की हिंगना मंडी में सिर्फ 4 क्विंटल प्याज की आवक हुई, जिसकी वजह से किसानों को न्यूनतम दाम भी 20 रुपये प्रति किलो मिला, जबकि अधिकतम दाम 22 रुपये किलो रहा, जो उत्पादन लागत से थोड़ा अधिक है. यही नहीं जलगांव जिले का यावल में सिर्फ 160 क्विंटल प्याज बिकने के लिए आया, इसलिए किसानों को न्यूनतम दाम भी 12.4 रुपये प्रति किलो मिला.
राज्य की अधिकांश मंडियों में अब प्याज की आवक काफी कम हो गई है. इसे देखकर ऐसा लगता है कि किसान प्याज को मंडी में बेचने की बजाय उसे स्टोर कर रहे हैं. क्योंकि उन्हें लगता है कि लोकसभा चुनाव के बाद सरकार प्याज का निर्यात खोल देगी. ऐसा होते ही दाम बढेगा, जिससे पिछले नुकसान की भरपाई हो सकती है. हालांकि, अगर सरकार ने निर्यातबन्दी खत्म नहीं की तो दाम का नुकसान तो होगा ही साथ ही स्टोरेज में सड़ने का भी नुकसान झेलना पड़ेगा.
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देश के सबसे बड़े प्याज उत्पादक महाराष्ट्र में तीन सीजन में प्याज की खेती होती है, जबकि देश के बाकी हिस्सों में प्याज उत्पादन दो सीजन रबी और खरीफ में पैदा होता है. खरीफ सीजन के प्याज को तुरंत बेचना पड़ता है क्योंकि इसकी स्टोरेज क्षमता बहुत कम होती है.
दूसरी ओर, कृषि विशेषज्ञों के अनुसार 70 फीसदी प्याज रबी सीजन में होता है. रबी सीजन का प्याज ही स्टोर करने लायक होता है. यह मार्च से मई तक पैदा होता है और फिर सितंबर से अक्टूबर तक काम आता है.
हालांकि इस दौरान वजन कम हो जाता है और सड़ने की वजह से काफी प्याज खराब हो जाता है. इसके बावजूद रबी सीजन के प्याज को तुरंत बाजार में बेचने की बजाय स्टोर करने का भी विकल्प होता है. किसान इन वक्त यही विकल्प अपना रहे हैं.
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