प्रमुख तिलहन फसल सरसों की कीमत में गिरावट जारी है. देश के तीसरे सबसे बड़े सरसों उत्पादक हरियाणा में तो इसका भाव एमएसपी से 1500 रुपये प्रति क्विंटल तक कम हो गया है. रबी मार्केटिंग सीजन 2023-24 के लिए सरसों का एमएसपी 5450 रुपये प्रति क्विंटल तय किया गया है. लेकिन हरियाणा में इसका न्यूनतम दाम 3,950 रुपये प्रति क्विंटल तक आ गया है. अगर पिछले साल से तुलना करें तो किसानों को 3000 रुपये प्रति क्विंटल तक का नुकसान झेलना पड़ रहा है. यह हालात तब हैं जब खाद्य तेलों के मामले में सरसों भारत आत्मनिर्भर नहीं है. भारत ने पिछले साल 1.41 लाख करोड़ रुपये का खाद्य तेल आयात किया. इसके बावजूद उचित दाम न मिलना किसानों के लिए चिंता की बात है.
दरअसल, केंद्र सरकार ने खाद्य तेलों की इंपोर्ट ड्यूटी लगभग खत्म कर दी है. वर्तमान में कच्चे पाम, सोयाबीन और सूरजमुखी के तेल के आयात पर केवल 5 फीसदी कृषि इन्फ्रास्ट्रक्चर उपकर और 10 फीसदी शिक्षा उपकर लगता है. जिसका मतलब कुल 5.5 फीसदी टैक्स है. जबकि रिफाइंड खाद्य तेल के मामले में प्रभावी आयात शुल्क 13.75 फीसदी है. किसान संगठनों का आरोप है कि इस साल इसी वजह से सरसों का दाम बहुत कम हो गया है. इसीलिए वो खाद्य तेलों पर इंपोर्ट ड्यूटी पहले की तरह 45 फीसदी करने की मांग कर रहे हैं.
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दरअसल, इस साल अब तक सिर्फ 7.13 लाख मीट्रिक टन सरसों की खरीद हुई है. जबकि केंद्र सरकार के नियमों के मुताबिक 31.25 लाख मीट्रिक टन सरसों की खरीद होनी चाहिए. केंद्र ने यह तय किया है कि तिलहन फसलों के कुल उत्पादन की 25 फीसदी खरीद एमएसपी पर की जाएगी. लेकिन हरियाणा को छोड़कर किसी भी राज्य ने खरीद का लक्ष्य पूरा नहीं किया है. राजस्थान में सबसे अधिक 15 लाख मीट्रिक टन सरसों खरीदने का टारगेट सेट किया गया है लेकिन यहां अब तक सिर्फ 1,32,201 मीट्रिक टन ही सरसों खरीदा गया है. किसानों का कहना है कि राज्यों द्वारा कम खरीद करने की वजह से ओपन मार्केट में अच्छा दाम नहीं मिल रहा है. हरियाणा में एमएसपी पर 3,47,105 मीट्रिक टन सरसों खरीदा गया है. लेकिन दूसरे राज्यों में खरीद न होने का असर यहां भी दिख रहा है.
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